गणेशजी का पेट या कुबेर का धन – कौन बड़ा है?

आज गणेश चतुर्थी है। इस अवसर पर सद्गुरु सुना रहे हैं गणेश की कुछ मजेदार कहानियां जिससे हम यह भी जान पाएंगे कि कैसे हुआ गणेश का जन्म और कैसे मिला उनको हाथी का सिर ?
पार्वती से विवाह करने के बाद शिव उनके साथ कभी-कभार ही रहते थे। कई बार ऐसा लगता था कि वह गृहस्वामी हैं, तो कई बार वह एक तपस्वी की तरह व्यवहार करने लगते थे। कुछ समय के लिए वह पार्वती के साथ रहते और फिर अचानक गायब हो जाते और कुछ ही पलों में दोबारा मानसरोवर झील के तट पर उनके पास लौट आते। कई बार अपने मित्रों के साथ वह लगातार दस से बारह साल तक गायब हो जाते थे। उनके इन मित्रों को गण कहा जाता है। शास्त्रों में गणों की व्याख्या ऐसे विक्षिप्त और विकृत लोगों के तौर पर की गई है, जो हमेशा कर्कश ध्वनि करते रहते थे, जिसे कोई समझ ही नहीं पाता था। गण ऐसे जीव थे, जिनके शरीर के अंगों में हड्डियां नहीं थीं।
पार्वती शिव की संतान को जन्म नहीं दे सकती थीं, क्योंकि शिव यक्ष थे और किसी मानव स्त्री से संतान पैदा नहीं कर सकते थे। एक बार पार्वती में मातृत्व का भाव हावी हो गया। जब वह मानसरोवर झील के किनारे अकेली थीं, उन्होंने अपने शरीर पर लगाए गए चंदन के लेप को उतारा और झील की मिट्टी में उसे मिला लिया। इसके बाद इस मिश्रण से उन्होंने एक बच्चे का निर्माण किया और अपनी योगिक शक्तियों की मदद से उसमें जान डाल दी। बच्चा जीवित हो उठा और बढऩे लगा। पार्वती ने इस बच्चे को अपने बच्चे की तरह देखना शुरू कर दिया।
जब यह बच्चा करीब 10 साल का हुआ, शिव अपने गणों के साथ वापस लौटे। पार्वती उस समय स्नान कर रही थीं। उन्होंने उस बच्चे को रखवाली करने के लिए बाहर बैठा रखा था। हाथ में एक भाला लिए वह बच्चा बाहर पहरा दे रहा था। शिव आए और बच्चे को नजरंदाज कर आगे बढऩे लगे, लेकिन छोटे बच्चे ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि उसने शिव को पिछले दस साल के दौरान कभी देखा ही नहीं था।