अतीत को भूलें और भविष्य की और देखें :  कैलाश मुनीजी महाराज

स्वतंत्र समय, खिरकिया

श्री जैन श्वे श्रीसंघ खिरकिया के तत्वावधान में प्रभु्गुरु दर्शन यात्रा का आयोजन किया गया। जिसमे जलगाँव में गुरुदेव पूज्यश्री गुलाबमुनिजी मा सा आदि ठाना के दर्शन व्याख्यान सामायिक लाभ, चातुर्मास की विनती हेतु श्री जैन श्वे श्री संघ खिरकिया से तीस सदस्यीय श्रावक श्राविकाओं ने विराजित पूज्य गुरुदेव के दर्शन वंदन का लाभ लिया। श्वेताम्बर श्रीसंघ के अध्यक्ष अनिल जैन ने बताया कि मसा ने प्रवचन में कहा कि अतीत को भुले और भविष्य की और देखे। मनुष्य को जीवन में शांती होनी होगी तो सर्वप्रथम उसने अतीत का रोना बंद करना चाहिये। वर्तमान के जो बेहतरीन कर्म होगे, वो करते रहे और चतुराई से भविष्य का चिंतन करे। किसी भी प्रसंगमे हमारे सामनेवाले व्यक्ती की स्थिती को समझकर लेवे। ’जो प्राप्त हे, वह पर्याप्त है!’ यह मानकर संतोष से रहे। हर किसी के लिए हृदय मे संवेदनशीलता बनाये रखे। ‘आय’ और ‘माय’ के इस चक्र मे न फसे। ‘आय’ यानी ‘मै’ वह ‘शाश्वत’ है, वही ‘माय’ यानी ‘मेरा’ यह ‘अशाश्वत’ है, इस बिच के फर्क को समझ ले और उस अनुसार सांसारिक सुखो की और देखे, क्योकी ‘जड’ का संयोग आत्मा को कभी भी सुख नही दे सकता, यह पक्का स्मरण मे रखे। जन-जन के श्रद्धास्थान एवं स्पष्ट वक्ता परमपूज्य गुलाबमुनीजी महाराज साहब धर्मसभा मे अपने मुखारविंद से विचारपुष्प की सुगंध फैला रहे थे।

प्रवचन के मध्य मे परमपुज्या प्रविणाश्रीजी महाराज साहब इन्होंने सुदेव, सुगुरू, सुधर्म इसके बारे मे समर्पण, ’जिनवाणी’पर अटूट विश्वास और धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा ये शुद्धतम् भक्ती के मार्ग बतलाये। अंधभक्ती, दिखावे की भक्ती और अंत:करण की पवित्रभक्ती ये भक्ती के शुद्ध मार्ग है। तथा यह भक्ती मनुष्य को ‘अज्ञान’ और ‘ज्ञान’ के बिच का फर्क आसानी से समझाती है। ‘धनवान’ और ‘भिखारी’  इनके बिच का फर्क यह मंदिरो मे स्पष्ट रूपसे दिखता है। धनवान व्यक्ती मंदिरो मे जाकर मांगता है, तो भिखारी मंदिरो के द्वार पर बैठ कर मांगता है। इस वस्तुस्थिती को ध्यान मे रखकर सत्य के प्रति समर्पण भाव जरूर रखो।

कैलाश मुनीजी महाराज साहब इन्होने प्रवचन के अंत मे जीवन निर्वाह तथा जीवन निर्माण के बारे में नया दृष्टीकोन उपस्थित सुश्राविका – सुश्रावको को दिया। हमारे इंद्रियो की शक्ती समय के साथ निश्चितरूप से कम हो जाती है किंतू आसक्ती कम नही होती। जीवन निर्माण के लिये मोह, माया, ममत्व का त्याग करना होगा।