इस्कॉन ने क्यों चुना सनातन? कब हुई इसकी शुरुआत ? पढ़िए पूरी जानकारी!

इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉन्शियसनेस (इस्कॉन), जिसे सामान्यत: “इस्कॉन” कहा जाता है, एक वैष्णव हिन्दू संगठन है जो सनातन धर्म की प्रमुख शाखा में से एक है। इस्कॉन का मुख्यालय स्थित है वृंदावन, भारत, और यह ग्लोबल रूप से विश्वभर में धार्मिक और सामाजिक कार्यों का संचालन करता है।

सनातन और इस्कॉन के संबंध

इस्कॉन का उत्थान 1966 में आचार्य भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा किया गया था। स्वामी प्रभुपाद ने सनातन धर्म के मूल तथ्यों को प्रसारित करने का मिशन अपनाया था। इस्कॉन का संकल्प सनातन धर्म की प्रचार-प्रसार में सहायक होना था, और यह उद्देश्य उसके स्थापकों द्वारा सजीव किया गया।

सनातन धर्म का चयन

इस्कॉन ने सनातन धर्म का चयन क्यों किया यह आवश्यक है कि सनातन धर्म एक प्राचीन धार्मिक परंपरा है जो भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा है। इसमें भगवान कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की भक्ति की जाती है, और भक्ति की भावना सनातन धर्म की महत्वपूर्ण भाग है। इस्कॉन ने सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए भक्तिवाद की प्रमुख धारा के रूप में अपनाया है और उनका प्रचार किया है।

इस्कॉन के कार्यक्षेत्र

इस्कॉन ने अपने कार्यक्षेत्र को विश्वभर में फैलाया है और अपने सेवाओं के माध्यम से सनातन धर्म की शिक्षा और प्रचार कार्यों को सुनिश्चित किया है। यह संगठन भक्तिवादी संस्कृति की स्थापना और संरक्षण में संलग्न है और विशेष रूप से भगवान कृष्ण के लिए उपासना करता है।

इस्कॉन ने सनातन धर्म को चुना क्योंकि यह धर्म उसके मूल आदर्शों और धार्मिक विचारधारा के साथ मेल खाता है। इस संगठन का उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार-प्रसार करना और भक्ति की भावना को प्रमोट करना है, और वह इसे विश्वभर में कार्यान्वित कर रहा है।