इस बार कांग्रेस ने जिले के किसान नेता पर ठोंकी तालः भाजपा को मौजूदा विधायक पर भरोसा, 25 साल से जीत के लिए तरस रही

स्वतंत्र समय, इंदौर

भाजपा ने नीमच सीट पर अपने विधायक दिलीप सिंह परिहार पर भरोसा जताते हुए चुनावी रण में उतारा है। परिहार तीन बार के विधायक हैं और चौथी बार चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस ने आखिरी बार यहां पर 1998 में जीत हासिल की थी और 25 साल से जीत की बांट जोह रही है। इस बार कांग्रेस ने उमराव सिंह गुर्जर को मैदान में उतारा है। वे किसान नेता के तौर पर गांव-गांव में पकड़ रखते हैं और कांग्रेस ने गहन जनसंपर्क होने की वजह से परिहार के मुकाबले सटीक उम्मीदवार माना है। ऐसे में भाजपा के इस गढ़ में इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। नीमच सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो मध्य भारत राज्य के समय इस सीट पर पहली बार चुनाव 1951 में हुआ और कांग्रेस के सीताराम जाजू विधायक बने। उनका नाम बेहद श्रद्धा से इलाके में आज भी लिया जाता है। उनके नाम पर शहर का नामवर कॉलेज भी है। इसके बाद मध्यप्रदेश का गठन हुआ तो भी पहले विधायक बनने का श्रेय नीमच से सीताराम जाजू को ही मिला।

15 बार चुनाव, 5 बार कांग्रेस जीती

देखा जाए तो यह सीट जनसंघ और भाजपा का गढ़ रही है। शुरुआती दो चुनाव के बाद इस सीट पर जनसंघ को मौका मिल गया और आगे चलकर भाजपा की जड़ें मजबूत होती गईं। इस सीट पर अब तक हुए 15 चुनावों में से जनसंघ को दो बार, एक बार जनता पार्टी और सात बार भारतीय जनता पार्टी को मौका मिला है।

खुमान सिंह रहे बड़े नाम, अटलजी के थे खास

खुमान सिंह शिवाजी इस इलाके के बड़े माननीय हुए और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटलजी के वे खास थे। 1962 में जनसंघ की झोली में सबसे पहली जीत डालने वाले खुमान सिंह ही थे। अगला चुनाव यानी 1967 में भी जनसंघ के खुमान सिंह ही विजयी हुए। 1972 में कांग्रेस के रघुनंदन प्रसाद वर्मा ने जीत हासिल की। वहीं इमरजेंसी यानी 1977 में जनता पार्टी उम्मीदवार कन्हैयालाल डूंगरवाल विजयी हुए। 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और रघुनंदन प्रसाद वर्मा फिर विधायक बने। 1985 में भी यह सीट कांग्रेस के कब्जे में रही। करीब 23 साल बाद फिर भाजपा के टिकट पर खुमान सिंह तीसरी बार विधायक बने। इसी के साथ 1993 में भी जनता ने उनके नाम पर मुहर लगाई।

1998 में कांग्रेस के नंदकिशोर जीते

1985 के बाद जीत की राह देख रही कांग्रेस को नदंकिशोर पटेल ने राहत दी और उन्होंने कांग्रेस की झोली में जीत डाली। 1998 के बाद भाजपा अब तक यहां विजयी बनी हुई। 2003 में भाजपा ने मौजूदा विधायक दिलीप सिंह परिहार को पहली बार आजमाया और वे परीक्षा में सफल रहे। 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने वरिष्ठ कद्दावर नेता खुमान सिंह शिवाजी को फिर मैदान में उतारा और वे कांग्रेस उम्मीदवार रघुराज सिंह चौरडिय़ा को पराजित कर 13843 वोटों से जीते। यह खुमान सिंह का आखिरी चुनाव था। इस तरह वे इस सीट पर सर्वाधिक पांच  बार विधायक चुने जाने वाले राजनेता रहे हैं।

परिहार का समय शुरू हुआ

इसी तरह 2013 में नीमच विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह परिहार को जीत हासिल हुई थी और उन्होंने 73320 वोट हासिल किए थे. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार नंदकिशोर पटेल को 51653 वोट मिल सके थे, और वह 21667 वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर रहे थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजप के दिलीप सिंह परिहार को 87197 वोट मिले। उनके कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी सत्यनारायण को 72340 वोट हासिल हुए। परिहार ये मुकाबला 14857 वोटों से हार गए थे।

इस चुनाव में उमराव का दावा इसलिए मजबूत रहा

नीमच विधानसभा क्षेत्र में उमराव सिंह गुर्जर वर्षों से सक्रिय हैं और उनकी दावेदारी काफी मजबूत थी।  गुर्जर नीमच जनपद उपाध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, कृषि मंडी अध्यक्ष सहित पार्टी में भी कई महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं। पार्टी ने पिछले चुनाव में उन्हें मनासा से उम्मीदवार बनाया था। जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि पार्टी ने उस समय अचानक से मनासा भेज दिया जबकि उनकी दावेदार उस समय भी नीमच से थी। हालांकि इस बार पार्टी ने भूल सुधार करते हुए इस बार उन्हें गृह क्षेत्र नीमच से टिकट दिया है।

भाजपा में इस बार दावेदारों की लाइन थी

नीमच से भाजपा के दिलीप सिंह परिहार चौथी बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। दिलीप सिंह तीन बार में विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2003, 2013 और 2018 के चुनाव जीत चुके हैं। पहले से ही विधायक दिलीप सिंह परिहार की दावेदारी काफी हद तक मजबूत मानी जा रही थी। हालांकि, दिलीप सिंह परिहार के सामने कई दिग्गज दावेदार जिनमें भाजपा जिला अध्यक्ष पवन पाटीदार, जिला पंचायत अध्यक्ष सज्जन सिंह चौहान, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष राकेश जैन थे। जिन्हें पार्टी ने दरकिनार कर दिलीप सिंह परिहार पर अपना चौथी बार विश्वास जताया है।

पिछड़ा वर्ग सबसे हावी

नीमच सीट पर सबसे अधिक ओबीसी समुदाय के वोटर्स हैं। ओबीसी वोटर्स में यहां पर सबसे अधिक गुर्जर-पाटीदार और सौंधिया समाज के लोग हैं। ब्राह्मण वर्ग के वोटर्स भी इस सीट की हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस बार कांग्रेस ने ऐसे उम्मीदवार को चुना है जो गांव-गांव में पकड़ रखता है। यह नतीजा बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।

सिंचाई सबसे बड़ा मुद्दा

यहां के लोगों की शिकायत है कि पालसोड़ा सहित आसपास के दर्जनभर गांवों को पहले जारी की गई सूची में गांधी सागर सिंचाई परिजनों में नहीं जोड़ा गया है। इससे उक्त क्षेत्र को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। किसानी बेल्ट होने से यहां कृषि गत मामले हावी हैं।