घट्टिया विधानसभाः 2013 में भी यह जोड़ी थी आमने-सामने, कांग्रेस को अपने तीन बार के विधायक पर भरोसा

स्वतंत्र समय, इंदौर

कमजोर सीट पर बेहतर प्रदर्शन करने की रणनीति के तहत घोषित कई उम्मीदवारों का जमकर विरोध हो रहा है। इसमें से उज्जैन जिले की घट्टिया विधानसभा सीट भी है जहां पर भाजपा ने अपने 2013 के विधायक सतीश मालवीय पर दांव खेला है। उनके क्षेत्र में जमकर पुतले फूंके जा रहे हैं और आलाकमान तक कार्यकर्ता विरोध दर्ज करवा कर प्रत्याशी बदलने की मांग कर रहे हैंँ। कार्यकर्ताओं का कहना है कि मालवीय ने अपने कार्यकाल में जमकर भ्रष्टाचार किया था, ऐसे में पार्टी ने उन्हें टिकट से कैसे उपकृत कर दिया। दूसरी ओर माना जा रहा है कांग्रेस के मौजूदा विधायक रामलाल मालवीय ही यह रण संभालेंगे। ऐसे में 2013 में आमने-सामने हुई यह जोड़ी एक बार फिर रिपीट हो सकती है। 2013 में सतीश भारी पड़े थे और 17369 वोटों से कांग्रेस के रामलाल को हार का मुंह देखना पड़ा था।

परिवार की विरासत संभाल रहे सतीश

सतीश मालवीय थावर चंद गेहलोत के ख़ास माने जाते हैं। ये टिकट भी उनका ही माना जा रहा है। सतीश का परिवार दो पीढिय़ों से भाजपा का खास रहा है। उनके पिता स्वर्गीय नागूलाल मालवीय भी 1980 में इस सीट से विधायक रह चुके हैंँ। 2013 में भाजपा ने सतीश पर भरोसा जताया तो वे पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे।

भाजपा से ये भी थे उम्मीदवार

घट्टिया विधान सभा से सत्यनारायण जटिया के पुत्र राजकुमार जटिया और उज्जैन के पूर्व सांसद चिंतामन मालवीय का भी नाम सामने आया था लेकिन सर्वे में जिस नाम पर सबसे भरोसा किया गया उन्हें टिकट मिला है। अजिता परमार, और दिनेशा जाटव भी टिकट के अन्य उम्मीदवार थे। इन चारों में से प्रबल दावेदार सतीश मालवीय निकले। थावरचंद गहलोत के खास होने का उन्हें फायदा मिला।  हालांकि सतीश मालवीय का जमकर विरोध हो रहा है।

सीट का राजनीतिक इतिहास

इस सीट को भाजपा का गढ़ माना जा सकता है। 1977 में जनता पार्टी के गंगाराम परमार विधायक बने थे। इसके बाद भाजपा के नागूलाल मालवीय को विधायक बनने का मौका मिला। वहीं 1985 में कांग्रेस के अवंतिका प्रसाद मर्मत विधायक बने। वहीं 1990 में भाजपा के रामेश्वर अखण्ड विजयी हुए। 1995 में रामेश्वर अखण्ड ने अपना ताज बरकरार रखा।

रामलाल 1998 में पहली बार बने थे विधायक

कांग्रेस का रामलाल पर भरोसा करने का सबसे बड़ा कारण 25 साल पहले विधायकी का ताज पहनना है। 1998 में रामलाल ने भाजपाई दिग्गज रामेश्वर अखंड को 8821 वोटों से हराकर चुनाव जीता था। हालांकि 2003 में भाजपा के नारायण परमार ने रामलाल मालवीय को हराकर हिसाब चुकता कर दिया था। 2008 में एक बार फिर बाजी रामलाल के हाथ आई और भाजपा के डॉ प्रभुलाल जाटव पराजित हुए। 2013 में मालवीय को सतीश के हाथों पराजित होना पड़ा तो वहीं 2018 में उन्होंने प्रेमचंद गुड्डू के पुत्र अजीत बोरासी को पराजित कर तीसरी बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया।

रामलाल के अलावा ये दावेदार

इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक रामलाल मालवीय माने जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बार भी यहीं कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी होंगे। लेकिन किसी वजह से टिकट नहीं मिला तो प्रेमचंद की जगह सरेंद्र मरमट या करण कुमारिया को पार्टी उम्मीदवार बना सकती है।

सतीश मालवीय पर गंभीर आरोप

पार्टी कार्यकर्ता सतीश मालवीय से खासे नाराज हैंँ। दूसरी ओर सतीश ने विधायक रहते हुए 2018 में चुनावी साल में तीनों बड़े भवनों को अपने पिता के नाम करने का प्रस्ताव दिया। विधायक का तर्क था कि उनके पिता का नाम ग्राम पंचायत से होते हुए जनपद पंचायत और जिला योजना समिति तक विधिवत पहुंचा है। इसका कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था। कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग मानता है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने जमकर भ्रष्टाचार किया।

सतीश मालवीय के चक्कर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की ज्वॉइन

उज्जैन के घट्टिया विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी प्रत्याशी सतीश मालवीय से नाराज 50 से अधिक भाजपा के कार्यकर्ता कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस में शामिल हुए कार्यकर्ता महेश चौधरी ने बताया कि भाजपा ने जो प्रत्याशी घोषित किया है उससे हम पूरी तरह असंतुष्ट हैं। कार्यकर्ताओं के मुताबिक पूर्व के 5 साल के कार्यकाल में भी मालवीय ने सभी विभागों से भ्रष्टाचार किया और कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार किया है। इसलिए हम भाजपा छोडक़र कांग्रेस में शामिल हो गए। पूर्व विधायक के भाई जिला कार्य समिति के सदस्य करण परमार ने बताया कि सतीश मालवीय को जो टिकट भाजपा ने दिया है वो गलत है। मालवीय और उनके परिवार की गुंडागिर्दी से क्षेत्र परेशान है। उन्हेल के व्यापारी कार्यकर्ता भी पीडि़त बताए जा रहे हैं।