पीथमपुर में प्रदूषण से बांझपन, जहरीली हवा से नस्लों पर भी असर, निसंतान दंपती बढ़े

स्वतंत्र समय, इंदौर

प्रदूषण को लेकर दुनिया-भर में अध्ययन हुए हैं और यह सर्वमान्य तथ्य माना गया है कि घातक वायु प्रदूषण से संतानोत्पत्ति की क्षमता प्रभावित होती है। यह प्रदूषण स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ही घातक है। इससे बड़ी बात यह है कि ऐसे माहौल में गर्भवती महिला भी हाईरिस्क में है और एक और खतरा होने वाले शिशु को रहता है। नवजात में जन्मजात विकृतियों की आशंका रहती है। शहर से सटे पीथमपुर में बांझपन की समस्या बढ़ी है। यहां बरसों सेवा देने वाले डॉक्टरों ने माना कि पीथमपुर में औद्योगिक प्रदूषण की वजह से नि: संतान दंपतियों की तादाद बढ़ रही है। यहां तक कि कई परिवार नौनिहालों की आस में इस क्षेत्र से पलायन को मजबूर हो गए हैं।

डॉक्टर बता रहे हैं कि इस दिशा में प्रदूषण को लेकर स्वतंत्र और गहन शोध करने की जरूरत है। असल में प्रदूषण और संतानोत्पत्ति को लेकर इस इलाके में शोध नहीं किया गया। हां, यह जरूर है कि इस मामले में केस स्टडी जरूर सामने आ रही है। इससे प्रदूषण और गर्भधारण का रिश्ता सामने आ रहा है। हवा का प्रदूषण दो ढंग से प्रभावित कर रहा है। पहला प्रभाव इसका अल्पकालिक है जिसमें त्वचा पर असर, खांसी, अस्थमा जैसी समस्या हो रही है। वहीं इसके दीर्घकालिक प्रभाव के रूप में नि:संतानता, कैंसर जैसे मर्ज हो रहे हैं जिसकी वजह से मरीज डॉक्टर से स्थायी रूप से जुड़ रहा है और जीवन-भर में इसे भोगने को अभिशप्त हो रहा है।

700 से ज्यादा छोटी-बड़े उपक्रम, पीथमपुर में बढ़े नि: संतान दंपतियों के मामले

शहर के नजदीक पीथमपुर जो कभी छोटा सा कस्बा था आज औद्योगिक गतिविधियों के चलते तीन लाख की आबादी के साथ राज्य का सबसे बड़ा विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र (एसईजेड) बन चुका है। इसमें मल्टीनेशनल कंपनियों से लेकर करीब सात सौ छोटे-बड़े उपक्रम हैं। प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यहां भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और पीथमपुर में डॉक्टर विशेषकर स्त्रीरोग विशेषज्ञ दावा करते हैं कि इसकी वजह से ही यहां नि:संतान दंपतियों के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। स्थिति इतनी विकट है कि कई लोगों ने पीथमपुर से पलायन शुरू कर दिया है।

प्रदूषण और संतानहीनता से जुड़े शोध यह कहते हैं…

  • एक प्रयोग साल 2018 में चेन्नई में हुआ था और पुरुषों को होने वाली परेशानियों को लेकर प्रयोग चीन में ऐसा प्रयोग हुआ था जिसमें 30 हजार पुरुषों पर इसके प्रभावों को परखा गया था।
  • शोधों में पाया है कि वायु प्रदूषण से संतानहीनता, तनाव, गर्भपात, महिलाओं की माहवारी में रुकावट जैसी समस्याएं हो रही हैं। वहीं पुरुषों में भी भी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है।
  • वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मंजू गुप्ता ने बताया कि हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा शोध में पता चला है कि हवा में भारी धातु तत्व और पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएच) का संबंध हार्मोन असंतुलन से है। इस कारण महिलाओं का मासिक चक्र प्रभावित होता है और इनके जननांगों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
  • शोध के मुताबिक इंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल्स (ईडीसी) के चलते महिला जननांगों में संतानोपत्ति क्षमता के साथ ही हार्मोन्स स्त्राव में बदलाव देखा गया है। इस कारण अंडाशय के सुचारु कार्यप्रणाली के साथ ही संतानहीनता के लक्षण पैदा हो रहे हैं। वहीं मासिक चक्र भी प्रभावित हो रहा है।
  • शोध बता रहे हैं कि वायु प्रदूषकों की वजह से गर्भधारण में चुनौतियां पैदा हो रही हैं। हवा में मौजूद ठोस हानिकारक पदार्थ महिलाओं में प्लेसेंटा यानी बीजाण्डासन या अपरा को प्रभावित कर रहे हैं जिससे भ्रूण का विकास रुक रहा है।

संतानहीता से परेशान मरीज बढ़े

इस इलाके में बीते करीब बीस वर्ष से काम कर रहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा पवैया हैं। वे कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में उनके अस्पताल में  गर्भवती महिलाओं के अलावा उनके अस्पताल में संतानहीनता से परेशान सबसे ज्यादा मरीज़ आते हैं। वे आगे बताती हैं कि महिलाएं इन हालातों में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब होती है वे शारीरिक रूप से तो चुनौती का सामना कर ही रहीं होती हैं व साथ ही सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी वे लगातार प्रताडि़त होती हैं।पीथमपुर के नज़दीक सागौर कभी एक छोटा सा गांव हुआ करता था, लेकिन आज यहां यहां करीब सौ से अधिक छोटे-बड़े कारखाने हैं। सागौर में भी कई संतानहीन दंपत्ति हैं जो लगातार अपनी इस समस्या का इलाज करा रहे हैं।

पीथमपुर में प्रदूषण के चलते याचिकाएं भी लगीं

पीथमपुर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर कई लोगों ने याचिकाएं लगा रखी हैं जिसकी सुनवाई अदालत में चल रही है। कुछ कारखानों से भूमिगत जल की गुणवत्ता प्रभावित होने की शिकायतें मिली हैं, इस कारण भी याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट की शरण ली है। प्रदूषण के चलते यहां की फसलों पर भी असर पड़ रहा है। दूसरी ओर इस इलाके में उत्खनन को लेकर भी याचिका लगाई गई है।

संतानहीनता के रोजाना करीब 10 मरीज

देशगांव संदर्भ के मुताबिक डॉ. पवैया के पास रोजाना करीब 50-60 मरीज़ आ रहे हैं और इनमें से 8-10 केस बांझपन के हैं। इसमें से करीब 4-5 नए मरीज़ संतानहीनता की समस्या लेकर आती हैं। डॉ. पवैया के मुताबिक बांझपन बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसकी एक अहम वजह इलाके में वायु प्रदूषण है। वे बताती हैं कि वायु प्रदूषण से महिलाएं कई तरह की स्वास्थ्य और सामाजिक परेशानियों का सामना कर रहीं हैं। उनके मुताबिक पिछले कुछ समय में गर्भपात के मामले भी बढ़ रहे हैं।

ऐसे पता चली वजह

राजेश (बदला हुआ नाम) चार साल पहले पीथमपुर छोड़ चुके हैं और अब गुजरात के अहमदाबाद में रहते हैं। वे यहां एक फैक्ट्री में काम करते थे और कुछ समय के लिए एक निजी स्कूल में पढ़ाते थे। स्कूल संचालक के माध्यम से उन्होंने फोन पर हमें बताया कि यहां रहते हुए उनकी संतान नहीं थी और इसके लिए उन्होंने कई तरह का इलाज लिया। उस समय उन्हें मेडिकल टेस्ट से पता चला कि परेशानी उनकी पत्नी में नहीं, बल्कि उनमें हैं। उनके मुताबिक उन्हें बताया गया कि उनकी इस परेशानी का कारण वायु प्रदूषण हो सकता है। इसके बाद उन्होंने पीथमपुर छोड़ दिया।

प्रदूषण के कारण छोड़कर जा रहे पीथमपुर!

संजय सिंह, इसी इलाके में रहते हैं और गुजरात में ऐसी ही एक फैक्ट्री में काम करते हैं, वे कहते हैं कि जो फैक्ट्री चालू होती है तो ऐसा लगता है जैसे नया बादल बन गया हूं अलग-अलग रंगों की दुआएं वाला। समझाते हैं कि अलग-अलग रंगों का धुआं यानी अलग-अलग रसायनों का हवा में आना। इसका सीधा मतलब है कि लोगों में हवा के माध्यम से यह ज़हर फैल रहा है। अनिल सिंह, अब पीथमपुर छोडक़र इंदौर में रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके मुताबिक वहां रहने के लिए बेहतर जगह है और प्रदूषण भी कम है।

महिलाओं पर प्रदूषण के घातक प्रभाव

नोवा आईवीएफ की डॉ. सौम्या शैट्टी कहती हैँ कि वायु प्रदूषण महिलाओं की प्रजनन क्षमता को कई ढंग से प्रभावित करता है। इससे जुड़े कॉम्पलिकेशन्स इस तरह हैं…

1- प्रजनन क्षमता : वायु प्रदूषण में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है। इससे महिलाएं घातक गैसों के ग्रहण करने से प्रजनन क्षमता में कमी से जूझ रही हैं।

2- गर्भधारण में चुनौतियां : प्रदूषण का घातक प्रभाव गर्भधारण पर भी पड़ रहा है। इसमें समय से पूर्व गर्भाधान यानी प्री-मैच्योर डिलीवरी केसेस बढऩा, नवजात का विकास रुकना, पैदाइश के वक्त कम वजन का शिशु होना। खास तौर से प्रदूषक तत्वों में मरक्यूरी यानी पारे का घातक प्रभाव पड़ रहा है।

3- मृत्यु दर : गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण की वजह से मृत्यु दर भी बढ़ रही है। इसमें नवजात की जान को खतरा बना हुआ है।

4- हार्मोन में बदलाव : कई प्रदूषणकारी तत्व महिलाओं के हार्मोन्स में बदलाव ला रहे हैं।  इससे उनका मासिक चक्र बिगड़ रहा है, वहीं अंडाणुओं की सेहत भी प्रभावित हो रही है। इससे प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंच रहा है।

5-  कैंसर का खतरा:  पर्यावरणीय व औद्योगिक प्रदूषण से महिलाओं में मस्तिष्क व अंडाशय के कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं।