भगवान शिवशंकर का दूध से ही क्यों किया जाता है अभिषेक? जानें इसकी धार्मिक मान्यताएं !

भगवान शिव के अभिषेक का प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कृति में एक विशेष स्थान है। भगवान शिव को गंगा जी के जल और मुख्य तौर पर दूध से स्नान कराने की परंपरा जानी जाती है, और इसे शिवाभिषेक के रूप में प्राम्भिक किया जाता है।

इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक मान्यताएं हैं:

इस प्रसंग का महत्वपूर्ण हिस्सा समुद्र मंथन का है, जिसे हिन्दू मिथोलॉजी में “समुद्र मंथन” भी कहा जाता है। यह घटना देवताओं और आसुरों के बीच भगवान धर्मनाथ (शिव) के माध्यम से अमृत प्राप्ति के लिए हुई थी।

समुद्र मंथन के दौरान, देवताओं और आसुरों ने समुद्र को मंथन कर अमृत को प्राप्त करने के लिए प्रयास किया। इस कठिन प्रक्रिया में, समुद्र के मध्य से निकले कई मूर्तियां और विशेष रूप से हालाहल (विष) निकला, जिसे पीने से मृत्यु हो सकती थी।

इस संकट के दौरान, भगवान शिव ने इस भयानक हालाहल को पीने का निश्चय किया, ताकि देवताओं और आसुरों को बचाया जा सके। जब वह विष पी रहे थे, तो उनके गले का रंग नीला हो गया, जिससे उन्हें “नीलकंठ” कहा गया।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूध विश को काटता ( कम ) करता है। भगवान शंकर के इस विश को कम करने के लिए देवताओं ने भगवान् शंकर का दूध से अभिषेक किया। इसके बाद से ही भगवान का विश का प्रभाव कम करने के लिए दूध से अभिषेक किया जाता है।

इसी समय, भगवान शिव की जटाओं में बैठी गंगा माँ ने अपने पवित्र जल को नीलकंठ के गले में डाल दिया, ताकि वह उनकी शीतलता और शक्ति को बढ़ा सके।

इस कथा में दिखाई जाती है कि शिव जी की महानता और उनका आध्यात्मिक महत्व केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उनका निष्कल्प प्रेम और आत्मा की शुद्धता की प्रतीक्षा की जाती है, जो उनके भक्तों को उनके पास आने का मार्ग दिखाता है।