शहर का मुद्दा, ट्रैफिक में हमः 6 लाख आबादी के वक्त बना था रिंग रोड अब 40 लाख पर फेल अधूरा सर्कल

स्वतंत्र समय, इंदौर

शहर का 30 किलोमीटर लंबा रिंग रोड आज से तीन साल पहले बनना शुरू हुआ और उस वक्त के हिसाब से यह प्लान काम करते नजर आया। हालांकि इंदौर की अवैध बसाहट, प्रशासन की ढीलपोल और राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते आज तक यह रिंग रोड अधूरा है और योजना समाप्त होने की वजह से अब कभी पूरा भी नहीं होगा। रिंग रोड यानी 360 डिग्री का सर्कल जिसे स्मार्ट सिटी में तीन दशक बाद भी पूर्णता नहीं मिली है। पश्चिमी क्षेत्र चंदन नगर के चंदू वाला रोड पर आकर रिंग रोड का काम ऐसा थमा कि इंदौर विकास प्राधिकरण के जतन, स्कीमें आकर फेल हो गईं। यही स्थिति पूर्वी क्षेत्र में बॉम्बे हॉस्पिटल के आगे भी लंबे वक्त तक बनी रही। सर्कल अधूरा होने का लाभ शहरवासियों को नहीं मिल पाया।

रिंग रोड की विफलता के चलते ही प्रशासन अपनी नाकामी अब आउटर रिंग रोड से ढंकने की कोशिश कर रहा है। आउटर रिंग रोड शहर से 25 किलोमीटर दूर कटेगा, ऐसे में शहर के घने ट्रैफिक को इससे कोई फायदा हासिल होना नहीं है। बायपास और भारी वाहनों को ही इससे डायवर्शन मिलेगा। सिटी के ट्रैफिक का भला नहीं होने से रिंग रोड की उपयोगिता आम सडक़ जैसी हो गई है। इससे दिन-ब-दिन बढ़ते यातायात के दबाव को रिंग रोड का फायदा नहीं मिल पा रहा है। ऐसें में रिंग रोड पर जाम सामान्य बात होकर रह गई है। सामान्यत: यह सडक़ यातायात की समस्या दूर करने के लिए बड़े शहरों में बनाई जाती है। दुर्भाग्य से इंदौर का रिंग रोड प्लान ही फ्लॉप शो साबित हुआ।

बढ़ती आबादी और वाहनों के दबाव ने रिंग रोड को सिटी रोड बना दिया

  • 1993 योजना 126 के तहत बनना था पूर्वी रिंग रोड
  • 2006 में भूमिपूजन की तैयारी, 1993 की योजना पुनजीर्वित की
  • 100 फीट चौड़ी सड़क का प्रस्ताव बना
  • 850 बाधक निर्माण चिह्नित किए गए थे
  • 02 किलोमीटर में सडक़ बनाना प्रस्तावित
  • 400 रहवासियों को मिले थे प्लॉट

दूरदर्शिता की कमी से फेल हुआ रिंग रोड

इंदौर के रिंग रोड की विफलता की सबसे बड़ी वजह दूरदर्शिता की कमी रही। इसे मौजूदा आबादी, वाहन दबाव और तात्कालिक जरूरतों के मद्देनजर बनाया गया था। साथ ही यह काम इतनी सुस्ती से चला कि 30 साल बाद भी पूरा नहीं हो सका। 90 के शुरुआत में 6 लाख की आबादी से शुरू हुआ सफर अब मौजूदा 40 लाख की आबादी को कवर करने में नाकाम है।

रिंग रोड तो अब सिटी रोड

शहर पिछले दस साल या कहें 2000 के बाद तेजी से पसरा है और रिंग रोड के दोनों ओर ही बड़ी-बड़ी कॉलोनियों के साथ ही टाउनशिप व बसाहटों का डेरा बन गया है। ऐसे में यह रिंग रोड की बजाय सिटी रोड हो गया है। ऐसे में शहर का यातायात आज भी एमजी रोड, जवाहर मार्ग और सुभाष मार्ग पर रेंगने को मजबूर है।

जाम बन गया आम

इंदौर में रिंग रोड का प्रस्ताव कितनी बुरी तरह फेल हुआ इसका अंदाजा बंगाल चौराहे से लगा सकते हैं। यहां मेट्रो की आमद के मद्देनजर प्रशासन को यहां बरसों बाद फ्लाईओवर की सुध बैठी। इससे अकर्मण्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

रोबोट, पालदा, राजीव गांधी, खजराना, बंगाली, चंदन नगर सब जगह जाम

अब रिंग रोड के महत्वपूर्ण चौराहों की बात करें तो इस पर जाम आम बात हो गई है।रोबोट चौराहा काफी चौड़ा होने के बावजूद अक्सर जाम से जूझता रहता है। वहीं पालदा चौराहे पर बसों का कब्जा, भारी वाहनों के साथ ही ऑटो आदि की आवाजाही के चलते फ्लाईओवर होने के बावजूद जाम में राहत नहीं मिलती है। इसी तरह खजराना और बंगाली चौराहे पर कई बार ट्रैफिक चालक सिग्नल पर दो बार रुकने के बाद वाहन पार कर पाते हैं। यहां सिग्नल का समय भी 180 सेकंड है। इसी तरह चंदन नगर के एंड पॉइंट पर जाम रोज की बात है। इसका कोई डायवर्शन भी नहीं है।

दास्तान-ए-चंदन नगर, योजना 156 में आधा दर्जन विभागों की सांस फूली

करीब साढ़े तीन दशक पहले कांग्रेस नेता चंदू कुरील ने अपने नाम से चंदू वाला रोड पर प्लॉट काटे थे। ऐसा नहीं था कि प्रशासन को उस वक्त रिंग रोड रूट के बारे में मालूम नहीं था। प्रशासन सोता रहा और देखते ही देखते लंबे इलाके में घनी बस्ती बस गई। 1993 में चंदन नगर के लिए योजना 126 बनी थी। प्रशासन, आईडीए, नगर निगम, वन विभाग और टीएंडसीपी के अधिकारी रिंग रोड की बाधाएं हटाने के लिए जागे तब तक लगाम हाथ से निकल चुकी थी। यहां मौके के खूब सर्वे हुए, भौतिक सत्यापन कर रिपोर्टें बनी। योजना 156 के तहत रहवासियों को नोटिस भी मिल गए। आईडीए ने दोगुने मुआवजे का प्रस्ताव दे डाला। यहां तक कि बाधक निर्माण वालों को प्लॉट तक आवंटित कर दिए। ऐनवक्त पर राजनीति आड़े आ गई। पिछले वर्ष आईडीए अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा ने इस प्रोजेक्ट के स्वत: समाप्त होने की घोषणा की। अब न यहां सडक़ बनेगी और न फ्लाईओवर।

शहर ने यह खामियाजा भुगता

  • 30 किलोमीटर लंबाई में रिंग रोड एयरपोर्ट से स्कीम-71 तक बन चुकी। चार किलोमीटर की सडक़ बन जाती तो शहर की रिंग पूरी हो जाती।
  • अधूरी रिंग रोड के कारण बड़ा गणपति मार्ग से ट्रैफिक का दबाव हमेशा बना रहता है।
  • पश्चिम क्षेत्र से एयरपोर्ट रोड तक जाने के लिए लोगों को चार किमी की ज्यादा दूरी तय करना पड़ती है।

लापरवाही के चलते खत्म हुई योजना

इंदौर विकास प्राधिकरण ने इस क्षेत्र में खासी उंघ और नींद ली। 30  सालों में इस योजना में 10 प्रतिशत विकास कार्य भी नहीं किया। इधर, मप्र ग्राम निवेश अधिनियम में हुए संशोधन के बाद छह माह के भीतर प्राधिकरण ने नई स्कीम भी घोषित नहीं की। अधिनियम की संशोधित धारा 50(ख) में 25 साल पुरानी ऐसी योजनाओं को खत्म करने का प्रावधान है। इस कारण चंदन नगर योजना स्वत: खत्म हो गई।