‘संतान’ मोह से बड़ा हुआ ‘सत्ता’ मोह…?

ललित पटेल, मंदसौर ।

पांच राज्यों में चुनाव सिर पर है और इन सभी राज्यों में ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिनकी खुद की अगली पीढ़ी चुनाव लडऩे के काबिल होने के बावजूद वे उन्हें लॉन्च करने की बजाय खुद का सत्ता मोह त्यागने में अक्षम नजऱ आ रहे हैं। ऐसी ही कहानी मंदसौर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के दो बड़े चेहरों नरेंद्र नाहटा और सुभाषकुमार सोजतिया की है, जो खुद जिस उम्र में विधायक बन चुके थे उसी उम्र में आज उनकी अगली पीढ़ी पहुंच चुकी है किंतु वे अब भी अपनी टिकट के ख्वाब संजोए बैठे हैं और सूत्र बता रहे हैं आला कमान ने नाहटा का नाम मनासा से व सोजतिया का नाम गरोठ विस से तय भी कर दिया है।

कांग्रेस में गॉड फादर वाली राजनीति कोई आज की नहीं है। यदि इतिहास उठाकर देखें तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री स्व अर्जुनसिंह के ज़माने से कांग्रेस में गुटबाजी की राजनीति को तगड़ी हवा मिलती रही है। इसको लेकर कई बार कांग्रेस की सिर फुटव्वल सडक़ों तक भी पहुंची। किन्तु बीते 2 दशकों से गॉड फादरों द्वारा खुद की नैया बचाने के चक्कर में अपने छर्रों को भूल जाने की भी एक नई परम्परा कांग्रेस में जन्म ले चुकी है, जिसकी एक लंबी सूची में अविभाजित मंदसौर जिले के कई छोटे और बड़े कार्यकर्ता है। यहाँ तक कि अब साल 2023 आते-आते कुछ गॉड फादर तो अपनी स्वयं की अगली पीढ़ी को मौका देने में भी शायद गुरेज कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस से मनासा सीट पर सोमिल नाहटा का नाम नहीं आते हुए उनके ताऊजी नरेंद्र नाहटा का नाम तय माना जा रहा, तो वहीं गरोठ विधानसभा से कांग्रेस की यूथ ब्रिगेड को लगभग भरोसा था कि इस बार सुभाषकुमार सोजतिया की बिटिया टोनू यहाँ से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं, किन्तु एन आते-आते अब यह टिकट वापस उनके पिता सोजतिया की जेब में जाता दिख रहा है। खैर कांग्रेस की अपनी सियासत है और यहाँ जितनी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की चल रही है उतनी ही अप्रत्यक्ष रूप से सुनवाई पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की भी हो रही है और नाहटा, सोजतिया के टिकट फायनल मैच में पहुंच जाने का चमत्कार भी राजाजी की छड़ी से ही माना जा रहा है।

39 के नाहटा पहली बार बने थे विधायक नाहटा

गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी ने साल 1985 के विस चुनाव में कांग्रेस से टिकट वितरण के लिए प्रतिभा खोज अभियान चलाया था। तब सांसद भंवरलाल नाहटा उस समय के बड़े नेता अर्जुनसिंह के खास कहे जाते थे। ऐसे में भंवरलाल नाहटा के बड़े पुत्र नरेंद्र की पढ़ाई भी सबसे अधिक थी, उनके पास जीवाजी राव यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री थी। सो यह प्रतिभा देखते हुए राजीव गांधी के प्रतिभा खोज अभियान तहत नरेंद्र नाहटा का सियासी डेब्यू हुआ, जो इतना सफल रहा कि उनने उस वक्त के जनसंघ बड़े चेहरे सुन्दरलाल पटवा को पटखनी दे दी थी। बस फिर क्या राजीव गांधी की यह खोज इसके बाद अब तक 6 बार विधायक की टिकट प्राप्त कर 3 बार विधानसभा में पहुंची और 2 मंत्री भी बनी। वर्तमान में इनकी उम्र 77 की हो चली है।

38 के सोमिल पर आया आला कमान का दिल

कुछ सियासि चाणक्यों की माने तो पीली कोठी के भावी सियासी राजकुमार कहे जाने वाले 38 वर्षीय सोमिल नाहटा पर कांग्रेस के आला कमान का दिल मनासा से टिकट देने के लिए आ चुका था। सूत्र बता रहे हैं कि कमलनाथ के युवा थिंक टैंक में मनासा के लिए सोमिल कब से गोते लगा रहे थे और खुद कहीं न कहीं कमलनाथ भी इस बात के लिए मन बना चुके थे किंतु राघवगढ़ के किले से आए फरमानों के पुलिंदे ने मंदसौर की पीली कोठी के इस सियासी राजकुमार के अरमानों पर ऐसा पानी फेरा की वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। बता दें कि सोमिल एक बार जनता की कसौटी पर नपा चुनाव में तोले जा चुके हैं। हालांकि उस समय इनका वजन कम पडऩे का बड़ा कारण भाजपा से स्व प्रहलाद बंधवार जैसा जनहितैषी चेहरा सामने होना था। नपा चुनाव हारने के बावजूद सोमिल के फ्रेंड फॉलोविंग में कमी आने के बावजूद बढ़ोतरी ही हुई है, जिसे भुनाने का वर्तमान विस चुनाव सबसे बेहतर समय था।

25 की उम्र में पहली बार विधायक बने थे सोजतिया

गरोठ-भानपुरा विस सीट से 4 बार विधायक रहे सुभाष कुमार सोजतिया भले ही उम्र में नरेंद्र नाहटा से छोटे हों लेकिन सियासी करियर उनसे बड़ा है। जी हाँ सोजतिया को महज 25 की नोजवान उम्र में ही विधायक बनने का अवसर मिल चुका था। यह दौर था साल 1980 का जब प्रदेशभर में कांग्रेस मजबूत स्थिति में हुआ करती थी। इसके बाद सोजतिया परिवार का या यों कहें कि खुद सुभाषकुमार सोजतिया का तगड़ा अधिपत्य हो गया। कांग्रेस के आला कमान के पास भी इस क्षेत्र से लगभग हर चुनाव में यहां से कोई नया चेहरा उभर का नहीं आया ऐसे में अब तक इन्हें लगभग 7 बार पार्टी टिकट से नवाज चुकी है, जिसमें से वे 4 बार विधायक रहे इसमें 3 बार मंत्री पद की शपथ ली। यही तक कि एक उपचुनाव में भी कांग्रेस ने इन्हीं पर दाव लगाया और अब 2023 में ये 77 के हो चले हैं तब भी इनकी टिकट लगभग फाइनल में है।

टोनू के राजतिलक का यह शुभ मुहूर्त

सियासी जानकारों की माने तो उम्र के इस पड़ाव में पूर्व मंत्री सुभाषकुमार सोजतिया को अपनी बिटिया टोनू का सियासी डेब्यू करना था। सोजतिया परिवार के इस अगले राजतिलक के लिए यह समय इसलिए भी सबसे उचित था क्योंकि हाल ही में टोनू राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में बड़ी सक्रियता से शामिल हुई उनने स्वयं राहुल से अपना परिचय स्थापित भी किया, जिसके फ़ोटो भी सोशल मीडिया और वायरल हुए, जिन्हें देख यह कयास शुरू हो चुके थे कि 2023 के सियासी संग्राम में टोनू का राजतिलक पक्का है किंतु यहाँ भी सूत्र वही राघवगढ़ राजघराने के फरमान की कहानी सुना रहे हैं, जिसके चलते दिग्गी राजा सरकार के चहेते मंत्रियों में शामिल सुभाषकुमार सोजतिया का टिकट होना तय माना जा रहा है। ऐसे में गरोठ विस पर कांग्रेस की जीत पर उम्र की अड़चने अधिक मानी जा रही है। जबकि टोनू की लॉन्चिंग इन तमाम कयासों पर पूर्ण विराम लगाते हुए कांग्रेस की जीत की अग्रिम गाथा लिख देती।