सनातन धर्म की जय होऽऽऽ (गई)!

प्रकाश पुरोहित

वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार

जब कोई मदारी असली नाग लेकर चौराहे पर तमाशा दिखा रहा हो, तो कोई डेंडू या रबर का सांप लेकर भीड़ इक_ा करने की कोशिश करे, तो लोग देखते गुजर जाएंगे, वहां खड़े नहीं होंगे।
यदि आप रस्सी को सांप की तरह ऊपर उठाने का मंत्र नहीं जानते हैं तो सिर्फ रस्सी के दम पर तमाशा नहीं हो सकता। मिमिक्री आर्टिस्ट कितना ही अच्छा क्यों ना हो, सुदेश भोंसले या राजू श्रीवास्तव तो हो सकता है, अमिताभ बच्चन या शाहरुख या दिलीप कुमार तो नहीं हो सकता है। ‘इस गली की सबसे अच्छी दुकान’ का बोर्ड लगा लेने से ग्राहक दौड़े नहीं चले आएंगे, वे तो वहीं जाएंगे, जिस दुकान का बोर्ड भी भदरंग हो चुका है, लेकिन वहां का स्वाद उनकी जुबान पर चढ़ा है। अच्छे काम की भी नकल नहीं चलती है तो फिर बुरे का तो चलने का सवाल ही खड़ा नहीं होता है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की बुरी तरह धुलाई का दोष, लाड़ली बहना को देना इसलिए गलत है कि फिर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में क्या कांग्रेस इसलिए हार गई कि ‘लाड़ली बहना’ लागू नहीं की थी या भाजपा ने वादा किया था कि सत्ता में आते ही बारह सौ रुपए महीना जमा होने लगेंगे? कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक में जीत हासिल कर भी यह नहीं सीखा कि धर्म की राजनीति से उसका भला नहीं होना है। कांग्रेस को सिर्फ अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए भाजपा की गलतियों का इंतजार करना था, लेकिन उसने धर्मनिरपेक्ष कपड़े उतार कर रामनामी ओढ़ ली और यहीं से उसका पराभव शुरू हो गया। हिंदुत्व के मामले में भाजपा का एकाधिकार है और उसके पार जाने का रास्ता भाजपा से होकर जाता है। यदि आप भी वही जुबान बोल रहे हैं तो फिर वो लोग कहां जाएं, जो भाजपा से सहमत नहीं हैं!
स्टालिन-पुत्र उदयनिधि मारन ने जब सनातन धर्म के खिलाफ बोला तो भाजपा ने उसे चुनाव का मुद्दा ही बना लिया। कांग्रेस को ऐसे में अपने विचारों के साथ कायम रहना था, तो उसके नेता ‘मेरा मंदिर, तेरे मंदिर से ऊंचा और बड़ा’ बताने लगे। जनेऊ पहन कर परिक्रमा लगाने लगे और जगह-जगह मत्था टेकते नजर आए, जबकि कांग्रेस का यह चरित्र नहीं है। जगह-जगह धर्म का पाखंड नजर आने लगा और यही कांग्रेस को खा गया। जब कोई छवि को तोड़ कर बाहर निकलता है तो असल-नकली नजर आने लगता है। कांग्रेस को लगा, यही चुनाव जीतने का आसान मंत्र है, लेकिन यह याद नहीं रखा कि इस वशीकरण-मंत्र को साधने में भाजपा को आधी सदी लग गई है। कांग्रेस के नेता, आम जनता तक पहुंचने के बजाय बाबाओं और मंदिरों के चक्कर लगाने लगे। तीर्थयात्रा और भंडारे करने लगे। कथाए होने लगीं और प्रवचन सुनाए जाने लगे, बाबाओं की पौ-बारह हो गई! अब जनता को राशन का इतना अनाज तो मिलता ही है कि सोच सके कि ये बगुला अगर एक पैर पर खड़ा हो गया है, तो यह भक्ति-भाव नहीं है, बल्कि शिकार का नया तरीका है।
मध्यप्रदेश में ना तो नंदन-वन उग आया था और ना ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तबाही हो रही थी, फिर भी तीनों जगह के नतीजे एक जैसे नजर आ रहे हैं, तो दोष सिर्फ कांग्रेस का है कि उसने आग को आग से, और जहर को जहर से मारने की कोशिश की। राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का पुण्य-प्रताप कायम रहता, अगर वे खुद को सनातनी हिंदू सिद्ध करने में बावले नहीं हो जाते। कहने को मल्लिकार्जुन खरगे मुखिया हैं, लेकिन राहुल का अंदाज अभी भी कांग्रेस अध्यक्ष वाला ही है, इसीलिए जहां खरगे का असर था, कांग्रेस जीत गई और राहुल को लोगों ने ठेंगा दिखा दिया। पहले भी लिखा गया है कि जो बाउंड्री पर खड़ा होने लायक नहीं है, उसे स्लिप में शार्प कैच पकडऩे के लिए खड़ा कर दिया है, जो खुद के कैच तो छोड़ ही रहा है, विकेट कीपर को भी पकडऩे नहीं दे रहा है।
राजेंद्र माथुर ने लिखा था- ‘कांग्रेस कोई पार्टी नहीं, शासन करने के तरीके का नाम है’ तो यह बात कांग्रेस को ही याद नहीं रही। जब भी कोई सरकार गलती करेगी तो कांग्रेस को शासन चलाने का मौका मिल जाएगा। तेलंगाना में कांग्रेस ने क्या कद्दू उगा लिए थे कि उसे नाक-बचाओ जीत मिल गई? यही कि मौजूदा सरकार से जनता तंग आ गई थी और कांग्रेस ही उन्हें नजर आ रही थी। यहां तो यानी मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस ने भी भगवा ओढ़ लिया था तो समझना मुश्किल था कि भाजपा और कांग्रेस में भेद कहां से शुरू करें। इमरजेंसी में जनता पार्टी ने जब अपने ढंग से सरकार चलानी चाही तो अठारह माह में ही टें बोल गई और लोगों ने फिर से कांग्रेस को ज्यादा सीट देकर कुर्सी पकड़ा दी थी!
अभी मध्यप्रदेश में सारे हालात भाजपा के खिलाफ थे, लेकिन कांग्रेस ने अति-उत्साह में, खुद को गेरुआ दिखाने की ऐसी भद्दी कोशिश की, कि अब हंसी की वजह बन गई है। ‘जिसका काम, उसी को साजे, दूजा करे तो मूरख बाजे…’ ऐसे ही तो नहीं कहा गया है। भाजपा को अपने हिंदुत्व-कार्ड पर भरोसा था और उसने कभी कांग्रेस होने की कोशिश इसलिए नहीं की, कि सत्ता मिल जाएगी। अटलजी के जमाने में सिर्फ दो लोकसभा सीट से अब पूर्ण बहुमत वाली सरकार चल रही है तो इसलिए कि अपनी सोच से विलग नहीं हुए, जबकि कांग्रेस को छोटे-छोटे झटके भी इतना परेशान कर गए कि अपनी चाल ही बदल दी। यह तो आप जानते ही हैं कि जब कोई, दूसरी चाल चलने लगता है, तो खुद की भी भूल जाता है और इसीलिए कांग्रेस आज लडखड़़ा रही है!

(ये लेखक के निजी विचार हैं)