हुकुमचंद का हक : सरकार ने फिर मांगा टाइम, हाईकोर्ट नाराज

स्वतंत्र समय, इंदौर

हुकुमचंद के हक के लिए अब सरकार बचाव के तमाम रास्ते खोजने में जुट गई है। कुछ दिनों पहले हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने सरकार को दो हफ्ते में मजदूरों के बकाया भुगतान का आदेश दिया था। अब हाउसिंग बोर्ड की ओर से समय मांगा गया है, इस पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। अब इस मामले में गुरुवार यानी 9 नवंबर को हाई कोर्ट फिर सुनवाई होगी। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच में हुई सुनवाई के दौरान सरकार (हाउसिंग बोर्ड) की ओर से चुनाव और बोर्ड बैठक का हवाला देते हुए भुगतान हेतु कोर्ट से समय मांगा गया। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए पूछा कि जब पूर्व में सभी की सहमति से भुगतान किया जाना तय हुआ था तो अभी तक क्यों नहीं हुआ।

दीपावली मनाने की उम्मीद लगाए बैठे थे श्रमिक

मजदूरों की ओर से तर्क में कहा गया कि कोर्ट ने दो सप्ताह में भुगतान प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे, इससे मजदूरों को इस साल दीपावली बेहतर ढंग से मनाने की उम्मीद जागी थी। कोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड की ओर से अधिवक्ता को लंच टाइम तक भुगतान के संबंध में सरकार से इंस्ट्रक्शन लेने के निर्देश देते हुए दोपहर तीन बजे बाद पुन: सुनवाई रखी। लंच बाद कोर्ट ने गुरुवार को पुन: सुनवाई तय की।

मजदूरी की ओर अवमानना याचिका दायर

इधर तय होने के बाद सरकार की ओर से भुगतान में विलंब पर मजदूरों में आक्रोश  है। मजदूरों की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता धीरज सिंह पंवार ने बताया कि हाई कोर्ट ने दो सप्ताह में भुगतान प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए थे, इसका पालन नहीं करने पर हमने अवमानना याचिका लगाई है।

मंत्री परिषद से स्वीकृति मिली थी

मजदूरों की ओर से इस पर आपत्ति लेते हुए वकील ने तर्क रखा कि मजदूर 32 वर्ष से न्याय के लिए भटक रहे हैं। मंत्री परिषद से स्वीकृति मिल चुकी है तो भुगतान में देरी क्यों हो की जा रही है। कोर्ट ने शासन को दो सप्ताह के भीतर मजदूरों के भुगतान के लिए स्वीकृत रकम बैंक में जमा करने को कहा है।

हाउसिंग बोर्ड का एंगल इसलिए

ज्ञात हो कि सुनवाई के दौरान बताया गया था कि मजदूरों के बकाया 174 करोड़ रुपए हाउसिंग बोर्ड देगा। बदले में मिल की जमीन पर कोई स्कीम लाई जाएगी। इसके अलावा ब्याज के 44 करोड़ रुपए के भुगतान का प्रस्ताव मंत्री परिषद की बैठक में स्वीकृत हो गया। बाद में इस मामले में दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट से समय मांगा गया था।