अयोध्या में फिर फेल हुआ कांग्रेस का सिंधी कार्ड, गौड़ परिवार ने दर्ज की सबसे बड़ी जीत

स्वतंत्र समय, इंदौर

गौड़ परिवार का तीस साल का दबदबा आखिर कायम रहा। 1993 में पहली बार मुकाबले में आए लक्ष्मण सिंह गौड़ ने भाजपा के लिए जीत की राह खोली। इसके बाद से भाजपा ने इस सीट पर लगातार गौड़ परिवार को ही मौका दिया। यहां तक कि समय के साथ ही यह सीट अयोध्या कही जाने लगी। कांग्रेस यहां अपने कई दिग्गज नेताओं को उतार कर हार का स्वाद चख चुकी है। इस बार कांग्रेस ने इंदौर 4 में सिंधी बाहुल्य करीब 50 हजार मतदाताओं के मद्देनजर राजा मंधवानी को अपना चेहरा बनाया था। इसका फायदा भी कांग्रेस को चुनाव में नहीं हुआ और मंधवानी करीब 70 हजार वोटों से मुकाबला गवां बैठे। सबसे खास बात यह है कि इस सीट पर यह गौड़ परिवार की अब तक की सबसे बड़ी जीत भी है।

पहले भी खेल चुके जातिगत कार्ड

कांग्रेस ने इस सीट पर पहले भी सिंधी समुदाय का कार्ड खेला लेकिन जीत नसीब नहीं हुई। इसके पहले गोविंद मंधानी इस सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन कांग्रेस के लिए जीत का खाता नहीं खोल पाए। 1998 में मंधानी को लक्ष्मणसिंह गौड़ के हाथों 15977 वोटों से पराजय मिली थी। वहीं 2008 में मालिनी गौड़ ने गोविंद मंधानी को 28033 वोटों से हराया था। इस तरह दोनों ही बार सिंधी समुदाय का उम्मीदवार कोई कमाल नहीं कर पाया।

एक जाजम पर नहीं रही कांग्रेस

राजा मंधवानी का टिकट घोषित होते ही कांग्रेस में उठापटक का दौर शुरू हो गय। अक्षय बम समर्थक विरोध के लिए सडक़ों पर उतर आए। मंधवानी का पुतला फूंका गया। कई कार्यकर्ता भोपाल पहुंचकर टिकट काटने की बात तक कहने लगे।

बिना तैयारी मैदान में कूदे

कांग्रेस आलाकमान ने इस सीट पर एक बड़ी रणनीतिक चूक की। यह इलाका काफी बड़े क्षेत्र को कवर करता है। एक महीने पहले मंधवानी के नाम की घोषणा हुई। यह कांग्रेसियों के लिए चौंकाने वाला नाम था और चुनाव लडऩे की उन्होंने कोई तैयारी भी नहीं की थी। ऐसे में मुश्किल आना स्वाभाविक थी।

मालिनी पूरे समय रहीं आश्वस्त

अयोध्या कही जाने वाली इस सीट पर मालिनी पूरे समय तक आश्वस्त रहीं। यहां तक कि जनसंपर्क के दौरान उन्होंने पूरा इलाका भी कवर नहीं किया। हालांकि विधानसभा क्रमांक चार में वेप्रत्याशी घोषित होने के बाद से योजना बनाने औऱ बैठकों में जरूर लगीं रहीं।

इतिहास :1993 से गौड़मय है सीट

1993 में लक्ष्मणसिंह गौड़ को 70324 वोट मिले और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी उजागर सिंह को 42215 वोट मिले थे। इस तरह 28109 वोटों से उजागर सिंह की हार हुई। 1998 में लक्ष्मणसिंह गौड़ के सामने कांग्रेस के गोविंद मंघानी सामने थे। वे 15977 वोटों से पराजित हुए। 2003 में लक्ष्मणसिंह गौड़ ने कांग्रेस के ललित जैन को 45625 वोटों से हराकर बड़ी जीत दर्ज की।  2008 में मालिनी गौड़ को 63920 वोट मिले तो कांग्रेस के गोविंद मंधानी को 35887 वोट मिले। मालिनी ने 28033 वोट से जीत दर्ज की। 2013 में मालिनी गौड़ ने कांग्रेस के सुरेश मिंडा को 33823 वोटों से हराया।  2018 में मालिनी ने कांग्रेस के सुरजीत सिंह चड्ढा को  43090 वोटों से हराया।