एक लाख वोट लेकर चिटनीस की सत्ता में वापसी, 31171 वोटों से जीती

स्वतंत्र समय, बुरहानपुर

भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस का शानदार वापसी हुई है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी ठाकुर सुरेंद्रसिंह शेरा को 31171 वोटों से हराया। ठा. सुरेंद्र सिंह 20 में से एक भी राउंड में बढ़त नहीं बना पाए। एआईएमआईएम फिर एक बार कांग्रेस के लिए काल साबित हुई। कांग्रेस वोट बैंक समझा जाने वाले 33 हजार 853 लोगों ने एआईएमआईएम के नफीस मंशा खान को वोट दिया है। जबकि हर्षवर्धनसिंह चैहान 35 हजार 435 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे।

11वें राउंड में शेरा का प्रतिकार

चिटनीस की एकतरफा बढ़त को 11वें राउंड में शेरा ने थामा था। तब चिटनीस को 2458 और ठा. सुरेंद्रसिंह को 4955 वोट मिले थे। तब चिटनीस की बढ़त घटते हुए मात्र 872 पर रह गई थी। इसके बाद चिटनीस ने फिर एकतरफा बढ़त बनाना शुरू किया जो 31 हजार के पार चले गई।

इन परिस्थितियों से खिलाया चिटनीस ने कमल

अर्चना चिटनीस ने चुनाव में पूरी तैयारियां कांग्रेस से लडऩे के लिए की थी। अचानक से हर्षवर्धन सिंह चैहान सामने आ गए, वो भी सबसे बड़े प्रतिद्वंदी बनकर। कांग्रेस के बजाय चिटनीस को हर्षवर्धन से जूझना पड़ा। एक दर्जन से ज्यादा बड़े नेताओं ने भाजपा से इस्तीफा दिया करीब हजार कार्यकर्ता हर्षवर्धन के साथ हो गए। कुछ भाजपा नेता साथ थे लेकिन वे हर्षवर्धन का ही काम कर रहे थे। हर्षवर्धन के निशाने पर चुनाव के दौरान चिटनीस ही रही। लेकिन चिटनीस ने आपा नहीं खोया, वो निर्दलीय ठा. सुरेंद्र सिंह के कार्यकाल को बुरहानपुर के लिए अभिषाप बताते रहीं, साथ ही निर्दलीय के आने से क्या नुकसान होगा यह भी बताया। चिटनीस अपने पिछले विकास कार्यों को जनता के बीच पहुंचाने में सफल हो गई। विकास की जरूरत चिटनीस साबित हुई। लाड़ली बहनों ने मोदीजी, शिवराजसिंह चैहान और चिटनीस का खुलकर साथ दिया।

जीत के तीन नए कारण

  • एक:  विकास के लिए बुरहानपुर के मतदाताओं को चिटनीस का विकल्प नहीं मिला। चिटनीस भी अपने-आप को विकास का पर्याय साबित करने में सफल रहीं।
  • दो: लाड़ली बहना योजना से प्रदेश के साथ चिटनीस को भी अच्छा लाभ हुआ।
  • तीन: हार के बाद भी जनता के बीच पांचों साल सक्रिय रहीं, इससे जनता से जुड़ाव रहा और वह वोटों में कनवर्ट हुआ।