स्वतंत्र समय, इंदौर
खातेगांव सीट पर भाजपा ने कांग्रेस को 25 साल से जीत से महरूम रखा है। यहां कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद जीत नहीं हासिल कर पाई है। इसमें भी कमाल की बात यह है कि इन सालों में एक भी स्थानीय उम्मीदवार यहां चुनाव नहीं जीता है। इसमें चुनाव के तमाम प्रत्याषी कन्नोद के रहे हैं। 1993 में आखिरी बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से कांग्रेस यहां अदद जीत के लिए तरस रही है। इस बार भाजपा के दिग्गज दीपक जोशी के कांग्रेस में जाने से समीकरण बदल गए हैं और भाजपा के हाथ-पैर फूले हुए हैं कि कैसे दीपक की आंधी से इस सीट को बचाए। एक वजह यह है कि खातेगांव ब्राह्मण बाहुल्य सीट है और दीपक जोशी को अगर कांग्रेस ने इस सीट से उतारा तो भाजपा प्रत्याशी के सामने फजीहत हो सकती है।
आशीष शर्मा के सामने हो सकती है दिक्कत
इस सीट पर लगातार दो बार से आशीष शर्मा भाजपा के टिकट पर विजयश्री हासिल कर रहे हैं। इस बार उनकी राह में दीपक जोशी रोड़ा बन सकते हैं। भाजपा के विधायक आशीष शर्मा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ओम पटेल को 7 हजार 734 वोटों से हराया था। आशीष शर्मा को 71 हजार 984 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के ओम पटेल को 64212 लोगों ने वोट दिया था। बीजेपी विधायक आशीष शर्मा की इस सीट पर लगातार यह दूसरी जीत थी।
सज्जन सिंह वर्मा का दावा
खातेगांव सीट को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा ने दावा किया है कि इस सीट पर इस बार चौंकाने वाले नतीजेे भाजपा को मिलेंगे। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने प्रदेश की 66 सीटों पर पुख्ता रणनीति बनाई है। भाजपा 1998, 2003, 2008, 2013, 2018 के चुनावों में विजयी चल रही है। माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार इस सीट पर बीजेपी से कांग्रेस में आए पूर्व मंत्री कैलाश जोशी के पुत्र और पूर्व मंत्री दीपक जोशी को चुनाव मैदान में उतार सकती है। दीपक जोशी खातेगांव-कन्नौद क्षेत्र के जमीनी कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क साधने में जुटे हैं।
कांग्रेस के पास आधा दर्जन दावेदार
कांग्रेस के लिए इस सीट से दीपक जोशी उतारना भी इतना आसान नहीं है। कांग्रेस भितरघात का शिकार हो सकती है। हालांकि खातेगांव ब्राह्मण बाहुल्य सीट हैं, ऐसे में दीपक जोशी के चुनाव मैदान में उतरने से पार्टी को फायदा होगा। वैसे इस सीट से कांग्रेस के लक्ष्मीनारायण बंडावाला, मनीष चौधरी, गौतम बंटू गुर्ज, मनोज होलानी और ओम पटेल भी दावेदारी कर रहे हैं। हाटपिपल्या से उपचुनाव हारने वाले राजवीर सिंह को भी यहां से टिकट मिल सकता है, लेकिन कांग्रेस यहां से नए चेहरे पर भी दांव लगा सकती है।
अनुसूचित जाति की भी भूमिका
इस सीट पर अनुसूचित जाति के वोटर्स की बात करें तो यह करीब 14 प्रतिशत तक जाती है। वहीं इस वर्ग की जनसंख्या 24 फीसदी है।मूल रूप से ब्राह्मण वोटर्स चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। ऐसे में ब्राह्मण प्रत्याशी होने से पार्टी को इसका फायदा मिलता रहा है।
25 साल से खातेगांव वासियों को टिकट नहीं
विधानसभा सीट खातेगांव में कन्नौद के उम्मीदवारों का बोलबाला रहा है। खातेगांव से 1993 में आखिरी बार कमला अग्रवाल को भाजपा ने टिकट दिया, हालांकि वे चुनाव नहीं जीत पाईं। इसके बाद दोनों ही दलों ने कभी खातेगांव के नेताओं को टिकट नहीं दिया। कांग्रेस के कैलाश कुंडल, राजकुमारी कुंडल भाजपा के ब्रजमोहन धूत, आशीष शर्मा ये सभी कन्नौद के हैं। नारायण चौधरी, श्याम होलानी, ओम पटेल जैसे अन्य सीटों से आकर यहां चुनाव लड़े या लड़ रहे हैं।
सीट से जुड़े मुद्दे
यहां लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। उचित इंतजाम नहीं होने से इंदौर या देवास के चक्कर लगाना मजबूरी है। दूसरी ओर खातेगांव में अवैध उत्खनन भी बड़ा मुद्दा रहा है। भाजपा भी इस दिशा में कुछ नहीं कर पाई है। खातेगांव की लंबे समय से जिला बनने की मांग की जा रही है, इस पर अब तक कुछ घोषणा नहीं हुई है।