कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा करने तक सीमित रह जाते हैं प्रशासनिक नुमाइंदे

स्वतंत्र समय, सतना

विगत बीस वर्षो से प्रदेश में भाजपा सरकार काबिज है,आगामी दिनों में भी प्रदेश में भाजपा सरकार बनने जा रही है। इन बीस वर्षों के भाजपा शाासनकाल में लगातार पत्रकारों के अधिकारों का हनन करने के मामलों में वृद्धि हुई है। पत्रकार देश के चौथे स्तम्म माने जाते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश का चौथा स्तम्भ खतरे में पड़ सकता है।
एक तरफ जहां भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह आये दिन अपने भाषणों में बोलते हैं कि पत्रकारों के साथ अत्याचार पर शख्त कार्रवाई होगी। लेकिन सरकार की यह सब बातें भाषणों तक सिमटकर रह गई है।

मामला एक नजर में

विगत दिनों 28 नवंबर 2013 को दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार पंकज मिश्रा के साथ वन विभाग के रेंजर व एसडीओ के द्वारा सरेआम अपहरण कर बल पूर्वक वन मंडल सतना के रेस्ट हाउस में ले जाया जाता है। वन विभाग के डीएफओ विपिन पटेल द्वारा मारपीट क र प्रताडि़त किया जाता है। जिसकी शिकायत पीडि़त द्वारा एसपी सतना, सिविल लाइन थाना, डीआईजी रीवा से की गई है। लेकिन 10 दिन बाद भी पुलिस विभाग द्वारा वन विभाग के अधिकारियों के उपर किसी भी प्रकार की कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। बात करने पर पुलिस विभाग द्वारा यही बोला जाता है कि हम लोग कार्रवाई कर रहे हैं। जिस तरह से पुलिस विभाग द्वारा कार्रवाई की जा रही है ऐसा लगता है कि पुलिस मामले में गंभीरता पूर्वक कार्रवाई नहीं क र रही है। आखिर आचार संहिता में क्या कर रहे थे बरौंधा,मझगवां रेजर व एसडीओ चित्रकूट 28 नवम्बर की रात्रि बरौंधा रेंजर वृजेन्द्र पाण्डेय,मझगवां रेंजर पंकज दुबे और एसडीओ चित्रकूट अपना मुख्यालय छोडक़र सतना में क्या कर रहे थे। अगर इन सबका फोन लोकेशन पुलिस द्वारा ट्रेस किया जाये तो पूरी कहानी सामने आ जायेगी। नियम के अनुसार आचार संहिता में अपना मुख्यलाय छोडक़र सतना नहीं आ सकते हैं। अगर वन विभाग के डीएफओ,एसडीओ,सतना व रेंजर सतना का फोन लोकेशन ट्रेस किया जाये तो पूरी पोल खुल जायेगी। पुलिस के पास मामले के कई महत्वपूर्ण फुुटेज, लेकिन फिर भी नहीं हुई एफआईआर पत्रकार के साथ मारपीट मामले से जुड़े कई अहम वीडियो पुलिस को सौंपे गये हैं। लेकिन इसके बाद भी पुलिस हांथ पर हांथ रखे हुई है। आखिर पुलिस उन अहम सुरॉगों की गंभीरता से जांच क्यों नहीं कर रहीं है। यह बात समझ से परे है।