राजनीति की बात…
राजेश के साथ
ये लो हमारी बात सच हो गई, डाकिया डाक लाया… डाकिया डाक लाया, मुख्यमंत्री के नाम का संदेशा लाया…। मध्यप्रदेश का मुखिया तय करने के लिए देश के दो मुखिया नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के नाम की चिट्ठी लेकर भाजपा के पर्यवेक्षक मनोहर लाल खट्टर, डा. के लक्ष्मण और आशा लकड़ा को भोपाल भेजा। उनसे साफ कह दिया था कि जिस तरह से गुजरात जाकर पर्यवेक्षक के रूप में नरेंद्र सिंह तोमर ने विधायक दल की बैठक में विजय रूपाणी का नाम घोषित किया था, प्रदेश भाजपा के किसी भी नेता और कार्यकर्ता को यह तनिक अहसास भी नहीं था कि जिस मोहन यादव को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मजबूरी में मंत्रीमंडल में रखे हुए थे, जिस मोहन यादव को उज्जैन के मास्टर प्लान को लेकर कैबिनेट की बैठक में शिवराज ने दपट दिया था, वही मोहन मध्यप्रदेश का प्यारा हो जाएगा, यह शायद किस्मत के अलावा कहीं नहीं लिखा था। यादव उज्जैन के तमाम नेताओं में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं इसमें कोई दो मत नहीं, वहां के कार्यकर्ताओं में भी लोकप्रिय हैं, इस सच को हर कोई स्वीकार करता है।
यादव ने संघ के सुरेश सोनी के जरिए मंत्री मंडल में पहली बार प्रवेश किया था। उसके बाद जब जगतप्रकाश नड्डा भाजपा के अध्यक्ष बनें तो यादव का कद बढ़ गया। यादव ने कभी इस बात का दिखावा नहीं किया कि उनके नड्डा से व्यक्तिगत संबंध हैं। विधायक दल की बैठक में मौजूद तमाम दिग्गज नेता नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, वीडी शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह चौहान को यह पता भी नहीं था कि विधायकों की भीड़ में पीछे कुर्सी पर बैठे मोहन यादव की लाटरी ऐसी लगेगी। कहते हैं न कि ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। ईश्वर से बड़ा कोई नहीं और राजनीति में किस्मत से बड़ा कोई नहीं। जिसकी किस्मत में जो लिखा है वह होकर रहेगा, यह बात कम से कम राजनीति करने वालों को तो आखिरी बार समझ लेना चाहिए।
महाकाल के मंदिर में हर रोज जाकर मत्था टेकने वाले मोहन यादव ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन महाकाल भगवान उन्हें प्रदेश का राजा बना देंगे। ठेठ पहलवान और पहलवानी करने वाले यानि कि अखाड़े की कुश्ती लडऩे वाले मोहन यादव को पिछड़ा होने का भी लाभ मिला। बनिये नेता अब भाजपा में कुछ बनने के लिए अपनी जात बदल सकते हैं। जब मोहन यादव का नाम पुकारा गया तो पीछे बैठे यादव संपट भूल गए, फिर खड़े हुए और सबके हाथ जोड़ लिए। तमाम विधायक बैठक में यादव के पहले पहुंच गए थे लेकिन वे खुद साढ़े तीन बजे वहां पहुंचे। सबसे मिलकर जहां कुर्सी मिली वहां बैठ गए। यादव के बारे में कहा जा रहा है कि तीन दिन पहले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रमुख संघ के अजय जामवाल उनसे मिलने उज्जैन गए थे, तब भी किसी को अंदेशा नहीं हुआ कि कुछ खिचड़ी पक रही है। यादव के नाम की घोषणा के बाद जब वो बैठक हाल से बाहर निकले तब भी वे हंस तो रहे थे लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यह सब कैसे हो गया। इधर से उधर कार्यकर्ताओं से लेकर मीडियाकर्मी उनके आगे-पीछे घूम रहे थे।
मोहन यादव ने तमाम दिग्गज नेताओं के साथ ही कई वरिष्ठ विधायकों के पैर भी पड़े। फिर वहां से निकल गए राजभवन, जहां उन्होंने सरकार बनाने का दावा किया। भाजपा दफ्तर में जितने नेता, कार्यकर्ता और मीडियाकर्मी थे, सब एक-दूसरे से पूछ रहे थे कि तुमको इस बात की संभावना थी क्या कि मोहन यादव मुख्यमंत्री बनेंगे। सब कह रहे थे, यह सब नरेंद्र मोदी और अमित शाह का कमाल है, अर्श से फर्श तक और फर्श से अर्श तक किसी भी नेता को वो पलक झपकते ही कहीं भी बिठा सकते हैं। अब मोहन यादव के साथ दो उप मुख्यमंत्री, जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला को बना दिया ताकि जातिगत समीकरण भी फिट बैठ जाए। जो नरेंद्र सिंह तोमर का नाम मुख्यमंत्री के लिए चल रहा था, उनको विधायकों का हेडमास्टर यानि कि विधानसभा अध्यक्ष बना डाला। भाजपा दफ्तर का एक और लाइव दृश्य भी मैंने यह देखा कि बैठक शुरू होने के पहले और उसके बाद प्रहलाद पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम के नारे लग रहे थे। वह दोनों नेता सत्ता के गलियारे से बाहर हो गए। जब दिग्गज नेता बाहर निकल रहे थे तो उनके चेहरे पर नकली हंसी के साथ चिंता की लकीरें दिख रही थी। शिवराज सिंह चौहान तो गुमसुम दिख रहे थे, वैसे उनको इस बार अहसास हो गया था कि पांचवी वार वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे इसलिए दिल्ली भी नहीं गए। भाजपा दफ्तर से राजभवन तक नरेंद्रसिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय एक गाड़ी में बैठकर गए, यह बात भी सबको चौंका रही थी। दोनों के लगातार बढ़ते मधुर संबंध सबको दिखाई दे रहे हैं।
अब सवाल इस बात का उठता है कि भाजपा शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं को कब, किस पद से नवाजेगी, यह भी चौंकाने वाले परिणाम रहेंगे। इन नेताओं का भविष्य भी डाकिया डाक लाया… की तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ही पता है।