क्षेत्र में धान की कटाई के साथ शुरू हुआ पराली में आग लगाने का सिलसिला

स्वतंत्र समय, बरेली
संपूर्ण क्षैत्र में धान की फसलें तेजी से रंग बदल कर पक और कटाई की स्थिति में पहुंच रही है। धान की कटाई थ्रेसिंग, हारवेस्टर चलाने से निकली धान की पराली को किसान आग लगा कर जलाने सक्रिय हो गए है। धान या गेंहू की पराली में आग लगाने पर जिला प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है। परंतु निचले स्तर पर लगे प्रतिबंध के पालन कराने की जिम्मेदारी किस पर है, और सही पाये जाने पर प्रभावी कार्यवाही हो पाएगी इसकी अनिश्चिता के कारण किसान रबी फसलों की बोवनी के लिए जल्द और आसान तरीका पराली में आग लगाना मानते है।

खेतों की उर्वरा शक्ति होती कमजोर

धान या गेंहू की पराली में आग लगाने के स्थान पर यदि खेतो की गहरी जुताई कर पराली को खेत की मिट्टी में मिला दिया जाए तो वह खाद बन उर्वरा शक्ति को बढाती है। यदि खेतो की पराली या कचरे में आग लगाई जाती है, तो पराली की आंच आग से खेतो के मित्र कीटाणु जीवाणु भी जल जाते है, और उर्वरा शक्ति कमजोर होती है। धान की फसल कटाई के बाद खेतो को साफ करना जरूरी होता है। जिससे किसान खेतो की बखरनी कर अगली फसलों की समय पर बोवनी कर सके। इसी कारण किसानों द्वारा पराली में आग लगाई जाती है। जो खेती किसानी के साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक है।

उड़ता जहरीला धुंआ, मरते हैं जीव जंतु

खेतों की मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जीव जंतु होते है। जो पराली में आग लगाने से मर जाते है। पराली का धुंआ आसमान और हवा में मिल कर नुकसान पहुंचाता है। यदि किसान पराली को न जला कर उसकी खाद बना ले तो खेतो की उर्वरा शक्ति बढने के साथ पर्यावरण ओर जीव जंतुओं की मौत भी रूक सकती है। पराली जलाने पर प्रतिबंध है। अभी धान की कटाई शुरू हुई है। किसानों को समझाईस आर कठोर प्रभावी कार्यवाही से पराली में आग लगाना कम हो सकता है।