गुमनामी के अंधेरे में खो गया गैरतगंज का सक्रांति मेला

स्वतंत्र समय, गैरतगंज

नगर में हर वर्ष सक्रांति के महापर्व पर लगने वाला सक्रांति मेला गुमनामी के अंधेरे में खो गया है तथा अब मेले की महज यादें ही शेष हैं। प्रशासन और जनप्रतिधियों की उपेक्षा के चलते यह मेला बंद हुआ है। मेले की शुरूआत सन् 1948 में नबाबी शासन के समय हुई थी तथा 1995 में बिना किसी कारण बंद कर दिया गया। विभिन्न प्रमुख त्यौहारों पर आम लोगों को परंपराओं से जोडऩे, खासतौर पर ग्रामीणों के लिए मनोरंजन, सैर सपाटे एवं खरीद फरोख्त के लिए मेलों का बड़ा महत्व होता है। वर्तमान में तो मेले ग्रामीण क्षेत्र के अलावा शहरी परम्परा के भी अंग बन गए हैं, ऐसे में वर्षो तक लगा गैरतगंज का सक्रांति मेला उपेक्षा के चलते बंद होकर अब मात्र स्मृतियों में ही बचा है। 29 साल से बंद पड़े मेले की इस वर्ष एक बार फिर सक्रांति नज़दीक आते ही नगर वासियों को कमी खल रही है। प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के स्तर पर पुन: मेला शुरू कराने की पहल न होने से लोगों में निराशा है।
प्राचीन महत्व है सक्रांति मेले का: गैरतगंज के टेकापार क्षेत्र स्थित चिंताहरण महादेव मैदान में लगने वाले सक्रांति मेले का प्राचीन महत्व है। मेले की शुरूआत सन् 1948 में हुई थी। तथा नागरिकों की रूचि को ध्यान में रखते हुए भोपाल स्टेट के नबाब हमीदउल्ला ने मंत्री बाबू कामता प्रसाद की अनुशंसा पर प्रतिवर्ष आर्थिक सहायता आयोजन समिति को दी थी। मेला परिसर स्थित चिंताहरण महादेव मंदिर एवं प्राचीन तपोभूमि रडिय़ा मंदिर पर महायज्ञ के आयोजन मेले के समय ही होते थे। जिसमें क्षेत्रभर की आस्था रहती थी तथा बड़ी संख्या में लोग यहां आते थे।

इनका रहा मेले में योगदान

क्षेत्र के वरिष्ठ समाजसेवी स्वतंत्रता सैनानी हरगोविन्द नायक, तत्कालीन सरपंच जाकिर अली, शिवप्रसाद नायक, गबडू सिंह ठाकुर, मेहताब सिंह ठाकुर, पत्रकार छगनलाल नायक, श्यामलाल सोनी, पन्नालाल शर्मा, लालसिंह प्रजापति, नर्मदा प्रसाद तिवारी, बाबूलाल बडकुल, प्रेमगिरी गोस्वामी, गिरजा प्रसाद तिवारी जैसे गैरतगंज के समाजसेवी रहवासियों ने मेले की स्थापना एवं उसके संचालन में अपना अथक योगदान दिया था। इनमें से अधिकांश लोग अब इस संसार में ही नही है।

ग्राम पंचायत ने बंद कराया मेला

47 साल तक सफलतापूर्वक चले सक्रांति मेले को सन् 1995 में तत्कालीन ग्राम पंचायत ने बिना किसी कारण बंद करा दिया। जिससे क्षेत्र के लोगो को काफी निराशा हुई। मेले को बंद कराने में जहां प्रशासनिक एवं जनप्रनिधियों की उपेक्षा का योगदान रहा, तो वहीं जन जागरूकता के अभाव ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई।

यह रहता था आकर्षण

उस समय लगने वाले सक्रांति मेले में रामलीला, झूले, नाटक कंपनी, सिनेमा घर, प्रदर्शनी व अन्य मनोरंजन के साधन आकर्षण का केन्द्र रहते थे। साथ ही विभिन्न सामग्रियों की लगने वाली दुकानें भी लोगों की जरूरतें पूरा किया करती थीं। मेले का सैर सपाटा लोगों को आंनदित एवं रोमांचित करता था।

नहीं हो रहे प्रयास

29 साल से बंद पड़े सक्रांति मेले को शुरू कराने की ओर प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों का कोई ध्यान नहीं है जिससे प्राचीन महत्व के इस आयोजन की पुन: शुरूआत नहीं हो पा रही है। आधुनिक युग में मेले के बढ़ते महत्व से भी लोग अंजान बने हुए हैं। यदि मेले की पुन: शुरूआत करने की योजना पर कार्य किया जाए तो जहां प्राचीन परम्परा की रक्षा होगी वहीं नए समय के अनुसार लोगो को मनोरंजन का कार्यक्रम भी मिलेगा। साथ ही धार्मिक परम्परा को पुन: स्थापित किया जा सकेगा। नागरिक डा. पीके गुप्ता, पंडित शिवशंकर शर्मा, मुकेश शर्मा, बीसी जैन, विनीत जैन, मनोज जैन, राकेश साहू, मुकेश नायक, गगन गौर आदि ने प्रशासन से पुन: मेला शुरू कराने की मांग की है।