स्वतंत्र समय, भोपाल
मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव अगले महीने होने जा रहा है। चुनाव की तारीख पास आते ही ग्वालियर चंबल इलाके में सियासी सरगर्मी भी काफी तेज होती जा रही है, क्योंकि पूरे मध्य प्रदेश में ग्वालियर-चंबल अंचल एक ऐसा इलाका है, जहां से ही प्रदेश की सत्ता की चाबी हासिल होती है।
ग्वालियर-चंबल अंचल पूरे मध्य प्रदेश में राजनीति और सत्ता का केंद्र बिंदु है। यहां पर तमाम ऐसे बड़े दिग्गज नेता हैं, जो बीजेपी और कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करते हैं। यही कारण है कि आजादी से लेकर अब तक इस ग्वालियर चंबल अंचल में जिस पार्टी की ज्यादा सीटें आई है, उसी ने प्रदेश में सत्ता हासिल की है। पिछले 50 सालों में सिर्फ दो चुनावों को छोड़ दिया जाए तो ग्वालियर चंबल में जिस पार्टी को ज्यादा सीट मिली, मध्य प्रदेश में उसकी सरकार बनी। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल-अंचल की 34 सीटों में से 22 पर भाजपा को जीत मिली तो कांग्रेस को 15 साल के लिए रास्ता से बाहर होना पड़ा। वहीं 2018 की विधानसभा में इस अंचल की मतदाताओं का फिर मूड बदला तो भाजपा यहां मात्र 7 सीटों पर सीमित गई और कांग्रेस यहां से 26 सीटें लेकर सत्ता में वापसी कर गई।
दो अपवाद छोड़कर 50 साल से यही स्थिति
विगत 51 सालों में मध्य प्रदेश में 11 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। 1972 और 1998 का अपवाद छोड़ दिया जाए तो यहां से जिस पार्टी को बहुमत मिला, सरकार उसी की बनी। बीजेपी और कांग्रेस इस बार भी ग्वालियर चंबल अंचल पर नजर गड़ाए हुए हैं। लगातार दोनों पार्टियों के बड़े नेता इस अंचल को लेकर रणनीति बना रहे हैं, क्योंकि ग्वालियर चंबल अंचल से जिस पार्टी ने ज्यादा सीट हासिल की, मध्य प्रदेश में सत्ता उसी को मिली। इसलिए दोनों ही पार्टियों रणनीति मेहनत और यहां की वोटरों को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
साल 1977 में कांग्रेस को मिली थी 2 सीटें
1985 के बाद 2018 में चुनाव में भले ही कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से 26 पर जीत दर्ज की हो, लेकिन 1977 में कांग्रेस ग्वालियर चंबल अंचल में मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी। जबकि जनता पार्टी ने 32 सीटों पर कब्जा जमाया था। मध्य प्रदेश के इतिहास में ग्वालियर चंबल संभाग में इतनी ज्यादा सीटों पर एक साथ किसी ने जीत हासिल नहीं की है।