चुनावी जाजमः गौर परिवार का 4 दशक से एकतरफा दबदबा, कांग्रेस को 51 साल से जीत का इंतजार

गोविंदपुरा विधानसभा सीट पर वोटर्स

कुल वोटरः 392905

पुरुष वोटरः 203556

महिला वोटरः 189333

(2023 की स्थिति में)

स्वतंत्र समय, भोपाल।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल गौर की यह सीट रिकॉर्डधारी सीट है क्योंकि यहां से उन्होंने लगातार आठ बार विधायक बनने का रिकॉर्ड बनाया। यह किसी भी पार्टी, व्यक्ति के लिए गर्व की अनुभूति का विषय भी है। कभी प्रदेश में बुल्डोजर मैन का दर्जा हासिल करने वाले बाबूलाल गौर ने यह रुतबा अपने दम पर हासिल किया और विजय के ऐसे रथ पर सवार हुए कि आज तक कोई भी इस आकाश को छू नहीं पाया है। उनकी परंपरा को अब बहू कृष्णा गौर आगे बढ़ा रही हैं। पिछली बार की विधायक कृष्णा इस बार फिर मैदान में हैं और भाजपा इस सीट पर पूरी तरह आश्वस्त है। इधर कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी के बतौर रविन्द्र साहू को आजमाया है। भाजपा 9 बार से इस सीट पर विजयी बनी हुई है जबकि कांग्रेस ने आखिरी बार यहां पर 1972 में जीत हासिल की थी। इसके बाद से कांग्रेस यहां जीत के लिए तरस रही है।

1967 में अस्तित्व में आई सीट, दो बार ही कांग्रेस जीती

इस विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो यह 1967 में अस्तित्व में आई थी। पहली बार हुए चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस प्रत्याशी केएल प्रधान विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस 1972 के चुनाव में भी कामयाब रही। पार्टी ने मोहनलाल अस्थाना को टिकट दिया और वे कांग्रेस की नैया पार लगाने में आगे रहे। 1977 में इमरजेंसी के समय इस सीट पर कांग्रेस की हार हुई। इसके बाद से यहां कांग्रेस का उम्मीदवार सफलता हासिल नहीं कर सका। 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से जनता पार्टी के प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण शर्मा विधायक बने थे।

1980 के बाद बाबूलाल गौर का युग

इमरजेंसी के तीन साल बाद ही चुनाव की घोषणा हो गई। भाजपा ने बाबूलाल गौर पर भरोसा जताते हुए टिकट थमाया। पार्टी रणनीतिकारों को अनुमान नहीं था कि बाबूलाल गौर यहां पर विजयश्री का इतिहास लिख देंगे और यह भाजपा की ऐसी हाईप्रोफाइल सीट बनेगी कि देश-भर में पार्टी का मस्तक ऊंचा हो जाएगा। खैर बाबूलाल गौर पहले ही चुनाव में मैदान मार गए।गोविंदपुरा सीट को देशभर में भाजपा की सबसे मजबूत सीट के रूप में माना जाता है।  इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल गौर लगातार 8 विधानसभा चुनाव जीते। वे 1980 के बाद 1985, 1990, 1993, 1998, 2003, 2008 और 2013 के चुनाव में विजयी हुए। 2019 में गौर का निधन हुआ।

कृष्णा गौर ने एकतरफा जीत दर्ज की

2018 में खराब स्वास्थ्य के चलते बहू कृष्णा गौर ने मैदान संभाला था। 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो गोविंदपुरा सीट पर 17 उम्मीदवारों ने दावेदारी पेश की थी लेकिन मुख्य मुकाबला तो बीजेपी की कृष्णा गौर और कांग्रेस के गिरीश शर्मा के बीच रहा। कृष्णा गौर ने 58.6त्न यानी 125,487 वोट मिले तो गिरीश शर्मा के खाते में 79,128 वोट आए। एकतरफा मुकाबले में बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा ने 46,359 (21.6त्न) मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया।

कांग्रेस ने स्थानीय कार्ड खेला

10 बार से बाजी मार रही भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी का दांव खेला है। कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र साहू को लोग झूमर वाला के नाम से भी जानते हैं। दरअसल उनका झूमर बनाने का पुश्तैनी कारोबार है। वे पिछड़ा वर्ग के हैं और कांग्रेस महासचिव के पद पर हैं।

सामान्य व ओबीसी वर्ग बाहुल्य

इस सीट के जातिगत समीकरणों का गौर परिवार के सामने कोई मायने नहीं है। 1980 से ही यह परिवार काबिज है और जनता के बीच श्रद्धेय बना हुआ है। गोविंदपुरा सीट पर सामान्य और ओबीसी वोटर्स की संख्या 78 फीसदी से अधिक है जबकि अनुसूचित जाति के वोटर्स की संख्या 15 फीसदी है। इस क्षेत्र में शेष 3 फीसदी मुस्लिम वोटर्स भी हैं।

सीएम का रोड शो वायरल हुआ था

पिछले दिनों इस सीट पर सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी कृष्णा गौर ने भी रोड शो किया था। इस दौरान दोनों ने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। सीएम इस दौरान सबकी तरफ देख हाथ हिलाते और उनका अभिवादन स्वीकार करते आगे बढ़ रहे थे। सोशल मीडिया ङ्ग पर पोस्ट सीएम शिवराज ने अपनी खुशी जाहिर की। उन्होंने लिखा, ‘बिटिया के लिए सपने, अम्मा के चेहरे पर सुकून मुझे ये भरोसा देता है कि सही रास्ते पर आगे बढ़ रहा हूं. सपने पूरे होते रहेंगे, चेहरों पर ये खुशी व सुकून बना रहेगा.’ इसी के साथ सीएम ने रोड शो का वीडियो भी शेयर किया। यह काफी वायरल हुआ था।