स्वतंत्र समय, इंदौर
जावद सीट पर वोटर्स की संख्या
कुल वोटरः 1,62,267
पुरुष वोटरः 83,905
महिला वोटरः 78,359
(2023 की स्थिति में)
जावद यानी सकलेचा परिवार के छह दशक की जबर्दस्त दबदबे वाली सीट। बीच में ऐसा समय भी आया जब जावद सीट से सखलेचा परिवार बाहर होता नजर आया लेकिन अंतोगत्वा ओमप्रकाश सकलेचा ने पिता वीरेंद्र कुमार सखलेचा की विरासत को बखूबी संभाला। यही कारण है कि पिछले 20 साल से ओमप्रकाश सखलेचा इस सीट पर काबिज हैं। दूसरी ओर यह बात भी सच है कि कांग्रेस की फूट भी सकलेचा की जीत में योगदान देती रही है।
इस बार कांग्रेस ने अपने उस उम्मीदवार को आजमाया है जो हाल ही में भाजपा से कांग्रेस में आया है। सिंधिया समर्थक समंदर ने 2020 में भाजपा का दामन थाम लिया था, ऐसे में समंदर भी भाजपा का हिस्सा हो गए थे। उन्होंने ओमप्रकाश सकलेचा व उनके समर्थकों पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था और पार्टी में लगातार अनदेखी के चलते कांग्रेस में वापसी की है। ऐसे में सकलेचा के लिए यह आसान मुकाबला नहीं है। समंदर कद्दावर उम्मीदवार हैं और पिछली बार कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बावजूद स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मैदान संभाला तो और लगभग कांग्रेस की तयशुदा जीत को हार में बदल दिया था। ओमप्रकाश सकलेचा कश्मकश भरे त्रिकोणीय मुकाबले में 4271 वोटों से जीते थे। कांग्रेस को जरूर नुकसान भुगतना पड़ा और अधिकृत प्रत्याशी राजकुमार अहीर ने जहां 48045 वोट हासिल किए व ओमप्रकाश सकलेचा ने 52316 वोट हासिल किए। वहीं समंदर ने 33712 वोट प्राप्त किए थे। इस तरह कांग्रेस को समंदर से खासा नुकसान पहुंचा था। अन्यथा ओमप्रकाश सखलेचा यहां से जीत नहीं पाते।
सकलेचा को मिलता रहा है कांग्रेस की बगावत का फायदा
2008 और 2013 के चुनाव से भाजपा के ओमप्रकाश सकलेचा को कांग्रेस की बगावत और गुटबाजी का फायदा मिलता रहा है। 2008 में कांग्रेस से राजकुमार अहीर चुनाव लडऩे आए तो स्थानीय राजनीति में बाहरी का ठप्पा लगाकर विरोध हुआ और करीब 5 हजार मतों से अहीर हारे। 2013 में जावद से दोबारा बाहरी उम्मीदवार के तौर पर नीमच के पूर्व नपाध्यक्ष रघुराजसिंह चौरडिय़ा को टिकट मिली तो राजकुमार बागी हो गए थे। ऐसे में सकलेचा के जीत की राह आसान हुई। चुनाव में अहीर निर्दलीय 43 हजार मत लाए थे, इसी के बूते वे 2018 में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी तो बने लेकिन पार्टी के फैसले के विरोध में समंदर बागी हो गए।
पहले चुनाव में कांग्रेस के बद्रीदत्त जीते थे
देश के पहले चुनाव में जावद मध्य भारत विधानसभा की सीट थी। यहां से 1951 में कांग्रेस के बद्रीदत्त विजयी रहे थे। इसके बाद 1957 से 1967 भारतीय जनसंघ से वीरेंद्र कुमार सकलेचा विजयी रहे थे। 1972 में सकलेचा कांग्रेस के कन्हैयालाल नागौरी से चुनाव हार गए थे। पुन: 1977 एवं 1980 में वीरेंद्र कुमार सकलेचा जनता पार्टी से और फिर भाजपा से विजयी रहे थे। 1985 में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमाया परंतु उन्हें कांग्रेस के चुन्नीलाल धाकड़ से पराजित होना पड़ा था। 1990 में सकलेचा की पुन: भाजपा में वापसी हुई। 1998 में वीरेंद्र कुमार सखलेचा का चुनाव आखिरी रहा और उन्होंने इसमें कांग्रेस के घनश्याम पाटीदार को हराया था।
कांग्रेस ने दिए हैं चौंकाने वाले नतीजे
मूलत: यह भाजपा के प्रभुत्व वाली सीट रही है। बीच-बीच में कांग्रेस ने चौंकाने वाले नतीजे देकर जीत हासिल की है। 1957 में पहले चुनाव में जनसंघ से वीरेंद्र कुमार सकलेचा जीते। इसके बाद 1962, 1967 में लगातार जीत हासिल की। 1972 में कांग्रेस के कन्हैयालाल नागौरी, 1977 में जनता पार्टी से वीरेंद्रकुमार सकलेचा, 1980 में भाजपा से पांचवीं बार जीते। 1985 में कांग्रेस के चुन्नीलाल धाकड़, 1990 में भाजपा के दुलीचंद, 1993 व 1998 में कांग्रेस के घनश्याम पाटीदार तथा 2003, 2008 व 2013 में भाजपा के ओमप्रकाश सकलेचा निर्वाचित हुए। 2018 में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनी है। कांग्रेस के बागी इसमें निर्णायक साबित हो सकते हैं।
सकलेचा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन की शिकायत
पिछले दिनों मंत्री व जावद विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश सकलेचा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन की शिकायत हुई है। मंत्री सखलेचा के खिलाफ जो शिकायत हुई है उसके मुताबिक उन्होंने बिना मंजूरी के बैठक का आयोजन किया, इसके वीडियो के आधार पर निर्वाचन आयोग को शिकायत की गई। शिकायत होते ही तुरंत बैठक छोडक़र वहां से निकल गए। जिला निर्वाचन विभाग की टीम इस पूरे मामले की जांच करने में जुटी है।
समंदर के पास हिसाब बराबर करने का मौका
समंदर ओमप्रकाश सकलेचा पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर कांग्रेस में घर वापसी की है। वे इलाके के दामाद हैं और अपना खास दबदबा रखते हैं। धन और बाहुबल में वे मंत्री सकलेचा के पासंग हैं। राऊ विधानसभा क्षेत्र के लिम्बोदी हिस्सा जब इंदौर ग्रामीण में आता था, तब समंदर पटेल इस ग्राम पंचायत से 4 बार सरपंच रह चुके हैं। 1994 से 2015 तक लगातार वे सरपंच रहे हैं। उनके पास खेती व अन्य प्रॉपर्टी मिलाकर करीब एक अरब की संपत्ति है।
धाकड़ समाज का दबदबा
जावद सीट के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां पर धाकड़ बिरादरी के वोटर्स सबसे अधिक हैं। यहां पर करीब 30 फीसदी धाकड़ तो 17 फीसदी आदिवासी समाज है। वहीं पाटीदार, ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की संख्या समान है। यही नहीं इस क्षेत्र में करीब 18 फीसदी मुस्लिम समुदाय भी है।
2003 से लगातार जीत रहे ओमप्रकाश सकलेचा
वर्ष 2003 से वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र ओमप्रकाश सखलेचा को भाजपा का टिकट दिया गया और वे तब से लगातार जीतते आ रहे हैं। वर्तमान में शिवराज मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री हैं। जावद से उन्हें भाजपा ने फिर उम्मीदवार बनाया है। सकलेचा विजयी होते हैं तो वे अपने पिता के पांच बार विजय होने के करीब पहुंच जाएंगे। लगातार चार बार जावद से जीतने का रिकॉर्ड भी ओमप्रकाश सकलेचा के नाम है।