चुनावी जाजमः पांच बार जहां से भाजपा के पटेल खिला रहे कमल, वहां इस बार कांग्रेस ने पटेल को हराने वाले पर खेला दांव

हरदा विधानसभा सीट पर वोटर्स

कुल वोटरः 235975

(2023 की स्थिति में)

 स्वतंत्र समय, इंदौर

भाजपा के कद्दावर प्रत्याशी और मंत्री कमल पटेल लगातार सातवीं बार मैदान में हैं लेकिन इस बार भाजपा अपनों के विरोध और अंतर्कलह की वजह से इस सीट पर बहुत आश्वस्त नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस ने भी इस सीट पर जबर्दस्त दांव खेलते हुए गुर्जर समाज के रहनुमा और 2013 में कमल पटेल को हराने वाले रामकिशोर दगाने को टिकट थमाया है। ऐसे में मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है। इस बार भाजपा की ओर से कई दावेदारों ने अपना दावा पेश किया था लेकिन आलाकमान को कमल खिलाने के लिए कमल पटेल ही मुफीद लगे।

मध्यप्रदेश के गठन के बाद 1957 में हुए पहले चुनाव में हरदा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। तब यहां से दो उम्मीदवार खड़े हुए थे और अनुसूचित जाति की गुलाबबाई रामेश्वर विजयी हुई थी, जबकि सामान्य वर्ग से नायक लक्ष्मण राव भीकाजी विजयी हुए थे। तब आरक्षित सीट से दो विधायक हुआ करते थे। एक सामान्य व एक आरक्षित। 1957 के बाद 1998 में यानी 41 साल बाद शमीम मोदी महिला उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़ी हुई थी। हरदा भाजपा का गढ़ माना जा सकता है, यहां से भाजपा नेता कमल पटेल पांच बार चुनाव जीत चुके हैं और इस बार फिर वे मैदान में हैं।

किसान मजदूर प्रजा पार्टी का था पहला विधायक

मध्य भारत के तहत जब 1951 में इस सीट पर पहली बार विधानसभा चुनाव हुए तो न जनसंघ और न कांग्रेस से इस सीट पर कोई विधायक बना। उस समय किसान मजदूर प्रजा पार्टी के  महेश दत्त मिश्र को विधायक बनने का मौका मिला। मध्यप्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद 1957  में हरदा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। तब यहां से दो उम्मीदवार खड़े हुए थे और अनुसूचित जाति की गुलाबबाई रामेश्वर विजयी हुई थी, वहीं सामान्य वर्ग से नायक लक्ष्मण राव भीकाजी विजयी हुए थे। उस समय आरक्षित सीट से दो विधायक हुआ करते थे। एक सामान्य व एक आरक्षित।

शुरुआत में कांग्रेस बाद में भाजपा का गढ़ बनी हरदा

शुरुआत में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1957 में कांग्रेस के खाता खोलने  के बाद 1962 में लक्ष्मणराव नाइक कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। वहीं 1969 में नन्हेलाल पटेल कांग्रेस के विधायक रहे। 1972 मेंं पटेल को दोबारा माननीय बनने का मौका मिला। 1977 में जनता पार्टी की लहर में बाबूलाल सिलारपुरिया इस पार्टी से विधायक बने और कांग्रेस पहली बार इस सीट पर पराजित हुई। हालांकि 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और विष्णु राजौरिया कांग्रेस के विधायक बने। 1985 में दोबारा इस सीट पर विष्णु राजौरिया विधायक बने।

महिला उम्मीदवार केवल एक बार

1957 के बाद 1998 में यानी 41 साल बाद शमीम मोदी महिला उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़ी हुई थी। हरदा भाजपा का गढ़ माना जा सकता है, यहां से भाजपा नेता कमल पटेल पांच बार चुनाव जीत चुके हैं और इस बार फिर वे मैदान में हैं। हरदा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए बद्रीनारायण अग्रवाल नींव के पत्थर रहे और उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व कायम करवाया। 1990 में पटवा सरकार के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें हरदा का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था। इसके बाद यह सीट भाजपा के कब्जे में चली गई। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के आर के दोगने ने भाजपा के मजबूत किले में सेंध मार दी और 4651 वोटों से मंत्री कमल पटेल को पटखनी दी।

टिकट नहीं मिलने से निराश सुरेंद्र जैन कांग्रेस में हुए शामिल

2023 के चुनाव काफी रोचक होने की संभावना है। भाजपा में असंतोष है और सुरेंद्र जैन, जिन्हें इस बार टिकट की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्थानीय मीडिया के सामने रोते हुए अपने दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ले ली।

कमल पटेल का राजनीतिक सफरनामा

कृषि मंत्री कमल पटेल कालेज शिक्षा के दौरान एबीवीपी से जुड़े। युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। 1993 में पहली बार विधायक बने। हरदा विधानसभा क्षेत्र से 1993,1998, 2003, 2008, 2018 में पांच बार विधायक रहे हैं। पिछली सरकार में चिकित्सा शिक्षा एवं राजस्व मंत्री रहे हैं। वहीं वर्तमान सरकार में कृषि मंत्री रहे हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के आर के दोगने को पराजित किया था। प्रदेश में जाट समाज के बड़े लीडर हैं। राजनाथ सिंह एवं जेपी नड्डा के करीबी माने जाते हैं।

राम किशोर दोगने को इसलिए टिकट

राम किशोर पंद्रह साल तक गुर्जर समाज के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व निभा चुके हैं और समाज पर खासा होल्ड रखते हैं। साथ ही मंत्री कमल पटेल का विजय रथ भी वे कांग्रेस के टिकट पर रोक चुके हैं। साथ ही गुर्जर समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैैं। ऐसे में कांग्रेस को दोगने पर दांव  चलना राजनीतिक विश्लेषक सुरक्षित मान रहे हैं।

मिनी पंजाब के नाम वाली सीट पर गुर्जर व जाट हावी

मिनी पंजाब कहे जाने वाले हरदा जिले की इस विधानसभा सीट पर आदिवासी वोटर्स की अहम भूमिका होती है। हालांकि गुर्जर, जाट बिरादरी भी खासी तादाद में होने से चुनाव में जबर्दस्त मुकाबला देखने को मिलता है। एक समय यह सीट रिजर्व हुआ करती थी, लेकिन बाद में यह सीट सामान्य वर्ग की सीट घोषित कर दी गई। गुर्जर बिरादरी के वोटर्स यहां पर निर्णायक भूमिका में होते हैं। क्षत्रिय और ब्राह्मण वोटर्स की भी अच्छी संख्या है। दूसरी ओर राजपूत समाज का भी अच्छा बाहुल्य है।

भाजपा की अंदरुनी कलह खुलकर सामने आई

इस सीट पर पहली बार भाजपा में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आने लगी है। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सुरेंद्र जैन ने हरदा विधानसभा सीट से टिकट मांगा तो यहीं से विधायक व मंत्री कमल पटेल के बेटे सुदीप पटेल नाराज हो गए। बात इतनी आगे बढ़ गई कि पटेल ने सोशल मीडिया पर शनिवार को एक पोस्ट में जैन को गद्दार बता दिया। हालांकि बाद में पटेल के टिकट मिलने के बाद से सुरेंद्र जैन ने भाजपा से इस्तीफा देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। ऐसे में जैन समर्थक पटेल के खिलाफ हैं। सुरेंद्र जैन और उनकी पत्नी साधना जैन हरदा से नगरपालिका अध्यक्ष रहे हैं। साथ ही जैन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। हालांकि भाजपा इसके बावजूद टिकट के दावेदार जैन को टिकट नहीं दे पाई। उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। ऐसे में वीडी शर्मा ने कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया।