ब्यावरा विधानसभा सीट पर वोटर्स
कुल वोटरः 2,41,362
पुरुष वोटरः 1,23,869
महिला वोटरः1,17,993
(2023 की स्थिति में)
स्वतंत्र समय, इंदौर
इस सीट पर जनता ने भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के अलावा निर्दलीयों को भी माननीय बनाने में कोर-कसर नहीं रखी। यही वजह है कि अब तक हुए 15 विधानसभा चुनावों में चार बार निर्दलीयों को माननीय बनने का अवसर मिला है। वहीं 6 बार कांग्रेस तो 5 बार भाजपा को जीत मिली है। हालांकि 1990 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी को आखिरी बार इस सीट से जीत मिली थी। ब्यावरा विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा ने चौथी बार नारायण सिंह पंवार को मैदान में उतारा है। 2013 के चुनाव में वे भाजपा के लिए सीट लाने वाले विजेता चेहरा थे। वहीं कांग्रेस ने उपचुनाव के अपने विजयी उम्मीदवार रामचंद्र दांगी का टिकट काट कर पुरुषोत्तम दांगी को मैदान में उतारा है। रोचक बात यह है कि पुरुषोत्तम दांगी भी एमएलए होने का गौरव हासिल कर चुके हैँ। वे 2008 में विधायक बने थे।
कांटे का था पिछला मुकाबला
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में ब्यावरा विधानसभा सीट पर कांटे का मुकाबला रहा था और अंत तक जीत का पलड़ा कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के खाते में जाता दिख रहा था। किसी के भी पक्ष में जाती दिख रही थी लेकिन मतगणना पूरी होते-होते जीत कांग्रेस के पक्ष में चली गई कांग्रेस के विधायक गोवर्धन दांगी महज 826 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए। गोवर्धन दांगी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के नारायण सिंह पंवार को हराया था।
डांगी के निधन पर हुए उपचुनाव, डांगी प्रत्याशी ही विजेता
कोरोना काल में विधायक गोवर्धन दांगी का निधन होने से यहां उपचुनाव की स्थिति बनी थी। 2020 में इस सीट पर भी उपचुनाव कराए गए, जिसमें कांग्रेस ने रामचंद्र डांगी को मैदान में उतारा था। उन्होंने भाजपा के नारायण सिंह पंवार को हराकर चुनाव जीत लिया।
दांगी रह चुके हैं विधायक
2008 के चुनाव में कांग्रेस के दांगी ने जीत हासिल करते हुए पार्टी की वापसी कराई। हालांकि 2013 में भाजपा के नारायण सिंह पंवार ने मैदान मार लिया। 2018 में बाजी एक बार फिर पलटी। इसचुनाव में कांग्रेस के गोवर्धन दांगी के खाते में जीत आई, उनके निधन के बाद 2020 के उपचुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के पास ही बरकरार रही।
दांगी समाज सबसे बड़ा
यह सीट राजस्थान के कई सीमावर्ती इलाकों को जोड़ती है। इस विधानसभा क्षेत्र में दोनों ही पार्टियां जातिगत समीकरण के आधार पर प्रत्याशी मैदान में उतारती आई हैं। इस विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण देखें तो करीब 46 हजार दांगी समाज के वोटर्स यहां रहते हैं। इनके अलावा 30 हजार के करीब सौंधिया समाज के वोटर्स, 20 हजार के करीब लोधी समाज, 12 हजार के करीब ही गुर्जर समाज के वोटर्स हैं। साथ ही 11 हजार के करीब यादव समाज के वोटर्सव और 8 हजार के करीब मुस्लिम वोटर्स हैं। अन्य कई समाजों के वोटर्स की भी अच्छी संख्या है.
सिंचाई, पेयजल की समस्या
नगर में अंजनीलाल मंदिर धाम है जो नगर की अटूट आस्था का केंद्र है। विधानसभा क्षेत्र में बन रही रेसई बांध परियोजना का काम किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिलने और भूमि अधिग्रहण नहीं होने के चलते काम काफी धीमी गति से चल रहा है। इस साल परियोजना का काम पूर्ण हो जाना था लेकिन नहीं हो सका। बड़ी संख्या में क्षेत्र के किसान उचित मुआवजा की मांग कई बार कर चुके हैं। कई लोगों की शिकायत है कि उम्र ज्यादा होने के कारण पेंशन का लाभ भी नहीं मिल रहा है। पेयजल की समस्या है। नल कभी चलते हैं तो कभी लाइन खराब हो जाती है। पीने के लिए ट्यूबवेल की सुविधा है, उसी से पानी भरते हैं।
पंवार का राजनीतिक जीवन
भाजपा ने 2020 उपचुनाव सहित नारायण सिंह पंवार को लगातार चौथी बार अपना प्रत्याशी बनाया है। 2013 का चुनाव नारायण सिंह जीते थे। वहीं 2018 के चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2020 के उपचुनाव में भी नारायणसिंह को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्हें फिर से हार का सामना करना पड़ा था। 1982 से 1984 तक भाजयुवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे। उसके बाद 1990 तक मण्डल अध्यक्ष रहे। 1990 से 1994 तक भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे। 2013 में ब्यावरा के विधायक बने थे।
15 साल बाद पुरुषोत्तम दांगी को फिर मौका
जिले की ब्यावरा विधानसभा सीट हाईप्रोफाइल सीटों में शुमार है। इस सीट को लेकर पिछले कई दिनों से खींचतान चल रही थी। यहां से पार्टी द्वारा 15 साल बाद एक बार फिर से पूर्व विधायक पुरुषोत्तम दांगी को मैदान में उतारा है। यहां 2020 में 12 हजार वोटों के अंतर से उपचुनाव जीतने वाले रामचंद्र दांगी का टिकट काट दिया गया। पुरुषोत्तम दांगी इसके पहले 2008 में पूर्व मंत्री बद्रीलाल यादव को लगभग 16 हजार वोटों से हराकर विधायक बने थे।