चुनावी जाजमः भाजपा के गढ़ में एक बार फिर विष्णु और जयश्री आमने-सामने, कांग्रेस को भितरघात का डर

विधानसभा बैरसिया सीट पर वोटर्स

कुल वोटरः 248008
पुरुष वोटरः 128604
महिला वोटरः 119400
(2023 की स्थिति में)

स्वतंत्र समय, इंदौर
बैरसिया सीट की बात करें तो इसमें भाजपा और कांग्रेस ने बिना जोखिम लिए टिकट दिया है। भाजपा ने मौजूदा विधायक विष्णु खत्री पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने पिछली बार उनके खिलाफ उतरीं जयश्री हरिकरण को मैदान में उतारा है। खत्री इस सीट पर दो बार विधायक रह चुके हैं और यह भाजपा का मजबूत गढ़ है। इस सीट का जबसे गठन हुआ है तब से अब तक कांग्रेस ने केवल एक दफा ही जीत दर्ज की है। ऐसे में कांग्रेस के लिए मुकाबला इस बार भी मुश्किल है क्योंकि कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर फिर रार हो गई। बागी फैक्टर सक्रिय हैं और भितरघात का डर भी है।
बैरसिया सीट 2008 में आरक्षित हो गई और बीजेपी ने आरक्षित वर्ग के ब्रह्मानंद रत्नाकर को पहली बार प्रत्याशी बनाया और चुनाव जीत गए। फिर 2013 में बीजेपी ने विष्णु खत्री को मौका दिया। खत्री कांग्रेस के महेश रत्नाकर को 29,304 वोटो से हराकर विधानसभा पहुंचे। भाजपा ने 2018 में विष्णु खत्री को ही प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी जयश्री हरिकरण को मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस को हार मिली।

भगवान सिंह बने पहले विधायक

बैरसिया सीट पर अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं जिनमें सिर्फ 2 बार कांग्रेस जीत सकी है। यहां पर वर्तमान में भी भाजपा काबिज है। 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस के भगवान सिंह विजयी हुए लेकिन 1962 के चुनाव में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के भैयालाल विधायक बने। इसके बाद 1967 में जनसंघ के लक्ष्मीनारायण शर्मा विधायक बने। 1972 में गौरीशंकर कौशल जीते। 1977 में भी गौरी शंकर कौशल को दोबारा जीते।

शर्मा चार बार माननीय रहे

1980 में भाजपा के लक्ष्मीनारायण शर्मा जीते और इसके बाद 1993 तक लगातार चार बार विधायक बने। 1998 में कांग्रेस के जोधाराम गुर्जर जीते। इस सीट पर कांग्रेस की यह आखिरी बार जीत थी। इसके बाद से अब तक पार्टी यहां जीत नहीं सकी है। 2003 में ठाकुर प्रत्याशी भक्तपाल सिंह जीते। 2008 में यह सीट रिजर्व हो गई। भाजपा के ब्रह्मानंद रत्नाकर यहां से विधायक बने। 2013 में बीजेपी के विष्णु खत्री विधानसभा पहुंचे। 2018 में भी विष्णु खत्री ने कांग्रेस की जयश्री हरिकरण को 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।

ग्रामीण सीट पर हावी अजा वोटर्स

यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बैरसिया सीट के गठन के बाद से अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं और सिर्फ 2 बार ही कांग्रेस जीत सकी है। भोपाल जिले की ग्रामीण सीट भी कहलाती है। इस सीट पर करीब 99 फीसदी क्षेत्र ग्रामीण है। इस सीट के पास जंगल का बड़ा एरिया है, जहां इंडस्ट्री क्लस्टर बनाने की घोषणा कर दी गई है। बैरसिया की तरावली वाली माता और जगदीशपुर (इस्लामनगर) पर्यटन के मामले में बड़ा क्षेत्र है। यहां पर नवाबों का शासन रहा है।

पिछली बार निर्दलीय रत्नाकर को 11 हजार से ज्यादा वोट मिले

2018 के विधानसभा चुनाव में बैरसिया सीट पर 8 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था. लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के विष्णु खत्री और कांग्रेस की जयश्री के बीच रहा। विष्णु खत्री को चुनाव में 77,814 वोट मिले तो जयश्री हरिकरण के खाते में 64,035 वोट आए, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार ब्रह्मानंद रत्नाकर को 11,815 वोट मिले। विष्णु खत्री ने यह मुकाबला 13,779 मतों के अंतर से जीत लिया।

बैरसिया में राम मेहर ने विरोध में मुंडन कराया था

बैरसिया में कांग्रेस ने जयश्री हरिकरण को अपना प्रत्याशी बनाया तो दावेदार राम मेहर सिंह विरोध पर उतर आए। जयश्री हरिकरण को टिकट मिलने के बाद उनका विरोध शुरू हो गया है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कमलनाथ के आवास के बाहर पहुंच कर विरोध जताते हुए मुंडन भी कराया। ऐसे में यहां भितरघात से इंकार नहीं किया जा सकता।

गुर्जरों का भी है दबदबा

बैरसिया सीट दलित बाहुल्य सीट है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों को मिलाकर 50 हजार से ज्यादा वोटर्स हैं। इनके बाद सबसे बड़ी संख्या 35 हजार गुर्जरों की हैं। अभी भोपाल जिला पंचायत अध्यक्ष और बैरसिया जनपद अध्यक्ष दोनों ही गुर्जर बिरादरी से आते हैं। तीसरे नंबर पर मीणा वोटर्स हैं और इनकी जनसंख्या करीब 25 हजार है। राजपूत 15 हजार से अधिक तो कुशवाह भी 10 हजार हैं। करीब 7 हजार ब्राह्मण हैं।

किसानी समस्या और बेरोजगारी बड़ा मुद्द

बैरसिया विधानसभा क्षेत्र भोपाल को विदिशा, राजगढ़ और गुना को जोड़ता है। यहां सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है. यहां पर ज्यादातर आबादी किसानों की है। किसानी मुद्दों को साधने वालों के लिए यह सुरक्षित सीट है। वे अब तक भाजपा पर भरोसा जताते आए हैं। बेरोजगारी के अलावा स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। लो-फ्लोर बसें भी बैरसिया तक नहीं आ पाई हैं। वहीं सडक़ों के हाल दुरुस्त नहीं हैं।