सीहोर विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या
कुल वोटरः 215025
पुरुष वोटरः 110203
महिला वोटरः 104814
(2023 की स्थिति में)
स्वतंत्र समय, इंदौर
सीहारे यानी प्रदेश के मामा और मुखिया शिवराज सिंह चौहान के एकछत्र राज का जिला। इससे बढक़र यह हिन्दुत्व का अभेद्य गढ़ रहा है। इस सीट पर कांग्रेस को केवल तीन बार जीत मिली है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सीट पर कांग्रेस के लिए डगर कितनी मुश्किल रही है। देश, काल और स्थितियां बदलती रहती हैं और इस बार यही भाजपा के साथ हो रहा है। टिकट वितरण में परिवारवाद के आरोप से घिरी भाजपा के लिए राह मुश्किल हो रही है। सुदेश राय जो मौजूदा विधायक हैं, उनका टिकट फाइनल होते ही यहां के कद्दावर नेता पूर्व जिला पंचायत, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष जसपाल सिंह अरोरा ने कांग्रेस में घर वापसी की। वे लंबे समय से भाजपा का स्तंभ बने हुए थे। सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए राजनीतिक रणनीतिकार इसे तगड़ा झटका मान रहे हैं। मजे की बात यह है कि भाजपा के मौजूदा विधायक सुदेश राय भी कभी कांग्रेस का हिस्सा हुआ करते थे। कांग्रेस ने सुदेश राय के सामने शशांक सक्सेना को मैदान में उतारा है। सक्सेना इस सीट पर चार बार भाजपा के टिकट पर विधायक रहे रमेश सक्सेना के पुत्र हैं। ऐसे में यह मुकाबला आसान नहीं है। सक्सेना ने यहां की जनता के बीच एक युग जीया है, ऐसे में उनके बेटे शशांक संभव है कि कमाल कर दें। वहीं उन्हें भाजपा के बागी जसपाल सिंह अरोरा का भी अच्छा साथ मिल सकता है।
शुरु में कांग्रेस जीती, बाद में भाजपा व हिन्दुत्व का गढ़ बना सीहोर
सीहोर शहर में 1957 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उमराव सिंह विधायक बने थे। नवाब के प्रभाव वाले इस इलाके में दो बार मुस्लिम समाज से भी विधायक बने। पहली बार 1962 में कांग्रेस ने इनायतुल्लाह खान को टिकट दिया और वे जीत गए। इस दौरान सीहोर विधानसभा में हिंदुत्व का माहौल बनना शुरू हो गया था। धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ और तीसरे ही विधानसभा चुनाव में संघ समर्थन से बनी पार्टी जनसंघ के आरके मेवाड़ा 1967 में विधायक बनकर सदन पहुंचे। हालांकि कांग्रेस के कद्दावर नेता अजीज कुरैशी ने 1972 के विधानसभा चुनाव में ये सीट वापस छीन ली थी और विधायक बने थे। कुरैशी ने भारतीय जनसंघ के सुदर्शन महाजन को 6782 वोटों से हराया था।
हिंदुत्व के हावी होने के बाद कांग्रेस के कार्ड फेल
वर्ष 1977 में जब जनसंघ की बजाय जनता पार्टी बनी तो सविता वाजपेयी को टिकट दिया गया। वहीं कांग्रेस ने इस बार भी अपने वरिष्ठ नेता और बड़े चेहरे अजीज कुरैशी पर दांव लगाया, लेकिन अब तक हवा बदल चुकी थी। कुल 38575 लोगों ने वोटिंग की और जनता पार्टी की सविता वाजपेयी को 22956 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के अजीज कुरैशी को 12708 वोट से संतुष्ट होना पड़ा और 10248 वोट से हार गए। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई और 1980 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने तेज तर्रार चेहरे सुंदरलाल पटवा को सीहोर से टिकट दिया। कांग्रेस ने हवा का रुख बदलते देखा तो चेहरा भी बदल दिया और अमर चंद रोहिला महज 176 वोट से चुनाव हार गए। इस चुनाव में कुल 43249 वोट पड़े, जिनमें से पटवा को 19833 और कांग्रेस के रोहिला को 19657 वोट मिले।
सुदेश राय ने रोका सक्सेना का रथ
लगातार चुनाव जीत रहे रमेश सक्सेना को रोकने का मौका कांग्रेस के बागी सुदेश राय को मिला। 2013 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े सुदेश राय ने टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय पर्चा भर दिया। इसका नुकसान रमेश सक्सेना को हुआ और उनकी पत्नी चुनाव हार गई। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी सुरेश राय विधायक बन गए, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी हरीश राठौर तीसरे नंबर पर पहुंच गए। इसके बाद सुदेश ने भाजपा को समर्थन दे दिया। इस तरह कांग्रेस ने हिन्दूवादी चेहरा रहे रमेश सक्सेना के बेटे को टिकट देकर बड़ा पत्ता फेंका है। ऐसे में इस सीट पर बेहद रोचक समीकरण बनेंगे।
जसपाल सिंह का दमखम
कांग्रेस में घर वापसी करने वाले जसपाल सिंह अरोरा ने कहा कि वे भी अपनी घर वापसी पर प्रसन्न हैं। फिर से पार्टी संगठन को मजबूती देने के लिए मैदान संभालेंगे। इस दौैरान उन्होंने सीहोर विधानसभा सीट से कांग्रेस की जीत के प्रति भी आश्वस्त किया। जसपाल सिंह अरोरा ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी। वे लंबे समय तक कांग्रेस में रहे। इस दौरान यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी बने। संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 1999 से 2004 तक जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने 2003 में भाजपा का दामन थाम लिया था। तभी से वे भाजपा के सच्चे सेवक के तौर पर पार्टी और संगठन में काम कर रहे थे। उनकी धर्मपत्नी अमीता अरोरा भी नगर पालिका परिषद सीहोर की अध्यक्ष रहीं। अरोरा एक समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफी करीबी थे। उन्हीं के कहने पर उन्होंने कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थामा था। तब से ही वे शिवराज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे। सीहोर विधानसभा क्षेत्र में उनका खासा प्रभाव भी है। इसी वजह से वे इस बार भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार भी थे। पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अब वे कांग्रेस पार्टी के साथ में चुनाव की कमान संभालेंगे।
निर्दलीय ने मैदान मारा तो भाजपा ने अपने पाले में किया, फिर बने कद्दावर
भाजपा ने 1985 के चुनाव में प्रत्याशी बदलकर टिकट मदनलाल त्यागी को दिया। कांग्रेस ने भी चेहरा बदला और शंकर लाल को टिकट दिया, उनका दांव सही बैठा। कांग्रेस के शंकर लाल को 25549 वोट मिले, जबकि भाजपा के त्यागी को 21845 वोट मिले और वे 3704 वोटों से चुनाव हार गए। इस जीत के बाद भी कांग्रेस ने 1990 में शंकर लाल की बजाय इस बार रुकमणि रोहिला को टिकट दिया। वहीं भाजपा ने मदनलाल त्यागी को रिपीट किया और वे 7745 वोट से चुनाव जीत गए, जबकि दूसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी रमेश सक्सेना रहे। रुकमणि तीसरे क्रम पर रहीं। भाजपा उम्मीदवार को 26925 और निर्दलीय रमेश सक्सेना को 19180 वोट मिले। दूसरे नंबर पर रहे रमेश सक्सेना ने इसके बाद खुद की इमेज हिंदुत्व वाली बनाई और इसी कारण जब वर्ष 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो वे निर्दलीय विधायक बने। उन्हें 39182 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर भाजपा के मदनलाल त्यागी रहे, जिन्हें 25826 वोट मिले और वे 13356 वोट से हार गए। यह भाजपा की बड़ी हार थी। वहीं कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई। भाजपा ने रमेश की ताकत को देखते हुए 1998 में उन्हें टिकट दिया। इसके बाद वे 2003, 2008 और 2013 में भी पार्टी का चेहरा रहे और चार चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
अजा के साथ मुस्लिम वोटर्स की बड़ी तादाद
सीहोर सीट का जातीय समीकरण देखें तो यहां पर अनुसूचित जाति और मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में रहते हैं। दोनों ही समुदाय के वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यह जिला कृषि आधारित क्षेत्र है, लेकिन राजधानी भोपाल से लगे होने के बाद ही यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है। कृषि प्रधान इलाका होने के कारण यहां पर ज्यादातर पिछड़ा वर्ग की जातियां निवास करती है इसलिए रोजगार की बहुत अधिक चिंता नहीं रही। आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठन बजरंग दल का भी खास असर इस क्षेत्र में दिखाई देता है।
निर्दलियों को मिले थे इतने वोट
सीहोर में 2018 में भाजपा को 60117 और कांग्रेस को 39473 वोट मिले थे, जीत का अंतर करीब 20644 वोट का था। भाजपा और कांग्रेस के अलावा दो दिग्गज निर्दलीय मैदान में थे। जिसमें उषा सक्सेना को 26397 और गौरव सन्नी महाजन को 25916 वोट मिले। एक लाख 94 हजार 723 वोटर में से भाजपा को 38.0 और कांग्रेस को 24.95 प्रतिशत वोट मिले।