चुनावी जाजमः सिरोंज यानी 30 साल से शर्मा परिवार काबिज, कांग्रेस में फूट पड़ सकती है भारी

सिंरोज विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या

कुल वोटरः 222529

पुरुष वोटरः 117228

महिला वोटरः 105290

(2023 की स्थिति में)

स्वतंत्र समय, इंदौर

सिरोंज सीट को शर्मा सीट कहना गलत नहीं होगा। पिछले पच्चीस साल से इस सीट पर शर्मा परिवार काबिज रहा है। केवल एक बार पराजित होने का वाकया छोड़ दें तो यह सीट भाजपा की सुरक्षित सीट कही जा सकती है। अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस केवल तीन बार ही इस सीट पर जीत सकी है। इस बार भी शर्मा परिवार के उमाकांत अपना भाग्य भाजपा के टिकट पर आजमा रहे हैं, वहीं कांग्रेेस ने इस बार रघुवंशी उम्मीदवार पर दांव चलकर चुनावी मैजिक साधने का प्रयास किया है। हालांकि बागियों को एक राह पर लाने में नाकाम कांग्रेस के लिए यह सीट इतनी आसान नहीं लग रही है।

2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सिरोंज सीट पर कुल 15 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था, लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी के उमाकांत शर्मा ने बाजी मार ली। चुनाव में उमाकांत शर्मा को 83,617 वोट मिले तो कांग्रेस के मसर्रत शाहिद के खाते में 48,883 वोट आए. जबकि तीसरे नंबर पर बसपा रही।

हिंदू महासभा का शुरुआत में दबदबा रहा

सिरोंज विधानसभा सीट पर नजर डालें तो यह सीट 1957 में अस्तित्व में आई। शुरुआत के 3 चुनाव में इस सीट पर हिंदू महासभा और भारतीय जनसंघ को जीत हासिल हुई। पहले चुनाव में हिन्दू महासभा के मदनलाल विजयी हुए। 1962 के चुनाव में भी मदनलाल ने ही खाता खोला। 1967 में जनसंघ उम्मीदवार मंगलसिंह विजयी हुए। कांग्रेस को पहली बार 1972 में जीतने का मौका मिला और इनायतउल्ला खां तरजीह मशरिकी विधायक बने। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी ने जीत हासिल की। 1980 का चुनाव भी भाजपा के नाम रहा। 1985 में एक बार फिर कांग्रेस के हाथ में बाजी लगी और गोवर्धन उपाध्याय विधायक बने।  1990 के बाद के चुनाव परिणाम को देखें तो तब बीजेपी के भवानी सिंह यहां से जीते। फिर 1993 के चुनाव में लक्ष्मीकांत शर्मा की एंट्री होती है और फिर वह इस सीट पर लगातार 4 बार चुनाव में जीते। लक्ष्मीकांत शर्मा ने 1993, 1998, 2003 और 2008 के चुनाव में जीत हासिल की। हालांकि 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने लगातार हार का बदला लेते हुए बीजेपी से यह सीट छीन ली। गोवर्धन उपाध्याय ने शर्मा को चुनाव में हरा दिया। 2018 में स्वर्गीय लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई उमाकांत शर्मा ने विजय हासिल की।

व्यापमं घोटाले में नाम फिर भी जनता का भरोसा कायम रहा

लक्ष्मीकांत शर्मा 1993 में पहली बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1998, 2003 और 2008 में सिरोंज विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक चुने गए। 2018 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट न देकर उनके छोटे भाई उमाकांत शर्मा को टिकट दिया था। जो अभी सिरोंज से विधायक हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पहले कार्यकाल में लक्ष्मीकांत शर्मा खनिज मंत्री थे। शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल 2008 से 2013 में लक्ष्मीकांत शर्मा उच्च शिक्षा जनसंपर्क एवं संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे हैं। व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में लक्ष्मीकांत आरोपी थी। यह केस अभी कोर्ट में चल रहा है। व्यापम की ओर से आयोजित संविदा शिक्षक, सहकारिता, पीएमटी सहित कई परीक्षाओं में धांधली के मामले में लक्ष्मीकांत शर्मा को एसटीएफ और सीबीआई ने आरोपी बनाया था। हनी ट्रैप मामले में भी लक्ष्मीकांत शर्मा का एक कथित ऑडियो 2019 में सामने आया था। इसके बाद आरएसएस और बीजेपी ने लक्ष्मीकांत शर्मा से किनारा कर लिया था। दो साल पहले कोरोना काल में हृदयाघात के चलते लक्ष्मीकांत शर्मा की मृत्यु हो गई।

इन जातियों का दबदबा

सिरोंज विधानसभा सीट के जातीय आंकड़ों को देखें तो इस सीट पर दलित वोटर्स की अधिकता है। जबकि इसके बाद मुस्लिम वोटर्स भी अधिक संख्या में हैं। 5 साल पहले हुए चुनाव में करीब 50 हजार दलित वोटर्स थे तो 32 हजार के करीब मुस्लिम वोटर्स थे। इनके अलावा 22 हजार यादव और करीब 9 हजार कुशवाह वोटर्स यहां के प्रतिनिधि का फैसला करते हैं। यानी मुस्लिम, यादव और रघुवंशी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। बीजेपी की कोशिश इस सीट को बचाए रखने की होगी तो वहीं कांग्रेस 2013 वाला प्रदर्शन करना चाहेगी।

गगनेंद्र इसलिए बने पहली पसंद

विदिशा जिले की सिरोंज सीट पर बीजेपी के विधायक उमाकांत शर्मा के सामने कांग्रेस ने गगनेंद्रसिंह रघुवंशी को चुनावी मैदान में उतारा है। जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में गगनेंद्र रघुवंशी की पत्नी पार्वती ने भाजपा समर्थित प्रत्याशी को जबर्दस्त मात दी थी। इससे उनकी कांग्रेस में दावेदारी मजबूत हो गई थी। सिरोंज में कांग्रेस का टिकट घोषित होते ही उठा पटक शुरू हो गई। कांग्रेस ने गगनेंद्र रघुवंशी को सिरोंज विधानसभा से टिकट दिया। इसके विरोध में टिकट के अन्य प्रबल दावेदार अशोक त्यागी ने निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ तहसील कार्यालय जाकर नामांकन फार्म खरीदा। अशोक त्यागी के साथ वरिष्ठ कांग्रेसी अनीस नेता भी थे।

2018 में मिला था अशोक को टिकट

पिछले चुनाव में अशोक त्यागी को कांग्रेस से टिकट मिला था। उन्होंने पूरी तैयारी कर ली और प्रचार सामग्री भी मंगा ली। लेकिन आखिरी मौके पर उनका टिकट काट कर मसर्रत शाहिद को टिकट दिया। जो भाजपा के उमाकांत शर्मा से 34734 वोट से हार गईं। इस बार अशोक त्यागी पूर्ण रूप से आश्वस्त थे कि टिकट उनको ही मिलेगा, लेकिन कांग्रेस ने गगनेंद्र रघुवंशी को टिकट दिया। विदिशा के सिरोंज विधानसभा से लगभग 06 संभावित प्रत्याशी टिकट की मांग कर रहे थे। इनमें गगनेन्द्र रघुवंशी, सुरेन्द्र उपाध्याय, अशोक त्यागी, रिंकी रघुवंशी, देवीसिंह बघेल और विनय सिंह यादव शामिल हैं।