चुनावी जाजमः हार के डर से भाजपा ने काटा विधायक का टिकट, कांग्रेस ने हारी प्रत्याशी पर चला दांव

सारंगपुर सीट पर मतदाताओं की संख्या

कुल वोटरः 198017

पुरुष वोटरः 101891

महिला वोटरः 96125

(2023 की स्थिति में)

स्वतंत्र समय, इंदौर

सारंगपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ रही है और पिछले चुनाव में कांग्रेस की जीत की आसा जागते जागते रह गई। आखिरी बार कांग्रेस ने यह सीट 1998 में फतह की थी। इस तरह वह दो दशक से यहां जीत की बांट जोह रही है। यह चुनाव कांटे का माना जा रहा है, यही वजह है कि भाजपा ने अपने विधायक कुंवर कोठार को टिकट देने की बजाय पूर्व विधायक गौतम टेटवाल पर भरोसा किया। वहीं कांग्रेस ने पिछली बार कोठार को जोरदार टक्कर देने वाली कला मालवीय पर ही भरोसा जताया है। सारंगपुर विधानसभा से लगातार भाजपा को जीत हासिल हुई है। 1980 से लेकर 2018 तक के विधानसभा चुनावों में केवल दो बार ही कांग्रेस ने जीत हासिल कि है। एक बार 1985 में और दूसरी दफा 1998 में कृष्ण मोहन मालवीय 2071 वोट से जीते थे। वहीं भाजपा ने 7 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करके 2003 से लगातार कब्जा जमा रखा है।

कोठार परिवार का आज भी दबदबा

यहां पर कोठार परिवार चार दशक से अपना दबदबा बनाए हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी के अमर सिंह कोठार 1980 से विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस से 1985 में हजारीलाल मालवीय बने थे। 1990 और 1998 में फिर अमर सिंह कोठार चुनावी रण में रहे। हालांकि 1998 में कांग्रेस से कृष्ण मोहन मालवीय जीते थे। फिर 2003 में अमर सिंह कोठार भारी मतों से जीत हासिल की। इसके बाद पूर्व विधायक अमर सिंह कोठार का निधन हो गया। इस सीट पर 2008 में भाजपा ने गौतम टेटवाल को मैदान में उतारा और भाजपा की सीट कायम रही। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने टेटवाल को मौका नहीं दिया और पूर्व विधायक स्व अमर सिंह कोठार के पुत्र कुंवर कोठार को मैदान में उतारा। विधायक कुंवर कोठार 2013 और 2018 दोनों विधानसभा चुनाव में सीट पर अपनी पकड़ जमाए हुए हैं। हालांकि इस बार भाजपा कोठार को लेकर आश्वस्त नहीं थी। ऐसे में उन्हें गौतम टेटवाल ज्यादा सुरक्षित उम्मीदवार नजर आए। पिछले चुनाव में भाजपाई पदाधिकारी व कार्यकर्ता कुंवर कोठार के टिकट देने से नाराज थे। इस अंतर्विरोध का फायदा कांग्रेस की कला मालवीय को मिला था। यही वजह थी कि यह सीट पिछली बार फंस गई थी। कला मालवीय इस मुकाबले में कुंवर कोठार से 4381 वोट मिले।

कांग्रेस का जातिगत गणित दुरुस्त नहीं, अजा का विरोध

कांग्रेस सारंगपुर सीट पर लंबे समय से जीत की राह तक रही है। हालांकि पार्टी में टिकट वितरण के दौरान जातिगत समीकरण का ध्यान नहीं रखा जा रहा है, इस वजह से भी जीत की राह मुश्किल हो रही है। माना जाता है कि कांग्रेस सारंगपुर सीट से विधायक का टिकट मालवीय (बलाई) समाज को ही देती आ रही है जिससे अजा वर्ग के लोग विरोध करने लगते हैँ। वहीं कांग्रेस में आपस में भी विभाजन होने से जीत की राह दिक्कत है।

कोठार पर भारी पड़े टेटवाल

भाजपा के विधायक कुंवर कोठार के विरोध की खबर आलाकमान को लग गई। इस कारण आलाकमान ने कोठार ने नाम पर मुहर नहीं लगाई है। पूर्व विधायक गौतम टेटवाल की चर्चा गलियारों में चली और वे टिकट लाने में कामयाब रहे। वे 14 साल की उम्र से स्वयं सेवक बने। इसके साथ ही कृषि महाविद्यालय छात्र संघर्ष समिति सीहोर के अध्यक्ष, 1985 में अभाविप अध्यक्ष सारंगपुर, 1993 से 1995 भाजपा मण्डल अध्यक्ष सारंगपुर, 1995 से 1998 भाजपा जिला उपाध्यक्ष, 1998 से 2001 में सचिव सरस्वती शिशु मंदिर सारंगपुर रहे। वर्तमान में भाजयुमो प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रहे हैं। 2008 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा के टिकट पर सारंगपुर विधानसभा से चुनाव लडक़र जीते थे।

कांग्रेस से 19 दावेदार मैदान में थे

सारंगपुर में रायशुमारी के लिए आए दिग्विजयसिंह के सामने 19 दावेदारों ने दावेदारी पेश की थी और उन्हीं में से किसी भी एक को टिकट देने की मांग की। पिछले चुनाव के दौरान उद्यानिकी विभाग से नौकरी छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुए महेश मालवीय का नाम प्रमुखता से लिए जाने से सभी कांग्रेसी सक्रिय भागीदारी वाले कार्यकर्ता को टिकट देने की मांग कर रहे थे। उनकी पत्नी कला मालवीय 2010 में पहली बार कांग्रेस से जिला पंचायत सदस्य चुनी गई। 2015 में दोबारा सारंगपुर क्षेत्र से ही जिला पंचायत सदस्य चुनी गई। 2018 में कांग्रेस ने कला मालवीय को विधानसभा से टिकट दिया था। लेकिन उस समय भितरघात और अचानक भाजपा में आई सक्रियता के कारण 4381 मतों से भाजपा विधायक कुंवर कोठार से चुनाव हार गई थीं। अब कांग्रेस ने उनकी लोकप्रियता के चलते टिकीट रिपीट किया है।

अस्पताल की सुविधाओं में पिछड़ा

हाल यह है कि पूरे विधानसभा की जनता एकमात्र सिविल हॉस्पिटल पर निर्भर है। कॉलेज भी एकमात्र है और टीचर व डॉक्टर प्रभार पर काम कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि संघ की सक्रियता बहुत अधिक होने से भाजपा यहां आसानी से जीत जाती है। स्वास्थ्यगत संसाधनों में सारंगपुर पीछे है।