हुजूर विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या
कुल वोटरः 370348
पुरुष वोटरः 190452
महिला वोटरः 179888
(2023 की स्थिति में)
स्वतंत्र समय, इंदौर
हुजूर विधानसभा सीट पर भाजपा ने अपने दो बार के विधायक पर दांव चलकर बेफिक्री की बंसी बजाई थी कि कभी उनकी पार्टी के कद्दावर रहे जितेंद्र डागा ने निर्दलीय नामांकन भर दिया। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार बन गए थे। डागा इस सीट से पहली बार विधायक रह चुके हैं और इस सीट पर काफी होल्ड रखते हैं। डागा ने कुछ समय पहले कांग्रेस का दामन इस उम्मीद में थामा था कि पार्टी उन्हें टिकट से नवाजेगी। हालांकि कांग्रेस ने अपने पूर्व प्रत्याशी और सिंधी समुदाय पर दबदबा रखने वाले नरेश ज्ञानचंदानी को ही मौका दिया। इससे डागा का राजनीतिक समीकरण डगमगा गया। कांग्रेस से टिकट की मायूसी मिलते देख उन्होंने दोनों ही पार्टियों के गणित को दांव पर लगाकर निर्दलीय ताल ठोंक दी। खैर, नामांकन वापसी के अंतिम दिन उन्होंने खुद का नाम वापस ले लिया, जिससे कांग्रेस के साथ भाजपा को भी राहत हो गई। हुजूर विधानसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो यह 2008 में अस्तित्व में आई। इस सीट पर भाजपा का 15 साल से कब्जा है। गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र से परिसीमन के बाद हुए चुनाव में भाजपा से जितेंद्र कुमार डागा विधायक बने। 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने रामेश्वर शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा। वहीं कांग्रेस ने राजेंद्र मंडलोई पर भरोसा जताया था। शर्मा ने इस चुनाव में मंडलोई को 59604 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था। 2018 में भी भाजपा ने रामेश्वर शर्मा पर भरोसा जताया जो जीतकर विधायक बने। उन्होंने नरेश ज्ञानचंदानी को करीब 15000 मतों से हराया था।
शर्मा की लीड ज्ञानचंदानी ने कम की
पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां पर जबर्दस्त बढ़त लेने के इरादे से रामेश्वर शर्मा को दोबारा मौका दिया। इधर कांग्रेस ने सिंधी समुदाय पर पकड़ रखने वाले नरेश ज्ञानचंदानी को मौका दिया। शर्मा को 107,288 वोट मिले थे, जबकि ज्ञानचंदानी को 91,563 वोट मिले थे। 2018 में हुजूर में कुल 51 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस तरह ज्ञानचंदानी ने पिछली लीड को कम किया और वे 15725 वोटों से हारे।
लंबे समय प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं शर्मा
हुजूर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं। वे हिंदुत्व पर खुलकर बयान देते हैं, जबकि कमलनाथ सरकार गिरने के बाद बनी शिवराज सरकार के दौरान रामेश्वर शर्मा को विधानसभा का प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था। इस दौरान प्रदेश में कई विधायकों ने इस्तीफे दिए थे, जबकि उपचुनाव में जीते विधायकों को शपथ दिलाने का काम भी रामेश्वर शर्मा ने किया था। रामेश्वर शर्मा के नाम प्रदेश में सबसे लंबे समय तक प्रोटेम स्पीकर रहने का रिकॉर्ड भी है।
गांवों की तादाद ज्यादा, समस्याएं भी कम नहीं
हुजूर विस क्षेत्र तीन हिस्सों में बंटा हैं, तीनों इलाकों की समस्याएं अलग-अलग हैं। यहां सबसे ज्यादा खराब सडक़ों के साथ ही पीने की समस्या व्याप्त है। यहां प्रत्याशियों को कैचमेंट विवाद, पानी समस्या और मर्जर विवाद से जूझना पड़ रहा है। हुजूर में गांवों की संख्या अधिक है। ग्रामीण बहुल इस सीट में किसानों की समस्याएं सबसे अहम हैं। सीवेज की समस्या भी हल नहीं हुई है। वहीं फसलों के उचित दाम ना मिलना, सिंचाई के लिए पानी ना मिलना और भावांतर के नाम पर किसानों के साथ हो रहे धोखे से ग्रामीण नाराज हैं। हुजूर विधानसभा सीट का तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा कोलार का है। जहां पर कर्मचारी, रिटायर्ड कर्मचारी, छोटे व्यापारी औऱ झुग्गी बस्तियां हैं। कोलार में वॉटर लेवर नीचे होने से पानी से लिए लोगों को ज्यादा परेशान होना पड़ता है।
डागा ने जनसंपर्क भी किया था
इस सीट से पहली बार विधायक चुने गए जितेंद्र डागा की ताल ठोंकने ने भाजपा और कांग्रेस को पसोपेश में आ गए थे। उन्होंने कहा था कि जनता की राय है कि वे चुनाव लड़ें। डागा ने यहां तक अपना जनसंपर्क भी शुरू कर दिया था। पहले दिन तुमड़ा, बरखेड़ा, पठानिया और भौंरी में जनसंपर्क किया। उन्होंने कहा कि जनता चाहती है कि मैं चुनाव लड़ूं। दरअसल पूर्व विधायक डागा हुजूर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष-2008 में भाजपा से चुनाव लड़े थे। भाजपा की कद्दावर नेता स्वर्गीय सुषमा स्वराज की सलाह पर भाजपा आलाकमान ने डागा को प्रत्याशी घोषित किया था। जब डागा को टिकट मिला तो सभी अचंभित हो गए थे, क्योंकि उन दिनों वो क्षेत्रवासियों के बीच चर्चित नेता नहीं थे।
यह रही थी डागा का पिछली बार टिकट कटने की वजह
वर्ष 2013 में भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए)के पूर्व सीईओ एमजी रूसिया की मौत के मामले में नाम आने पर भाजपा ने छवि धूमिल होने के डर से जितेंद्र डागा का टिकट काट कर रामेश्वर शर्मा को उम्मीदवार बनाया था। शर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र मंडलोई को 50 हजार से अधिक मतों से हराया था। वर्ष-2018 में भाजपा ने फिर शर्मा को उम्मीदवार बनाया। वहीं कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक नरेश ज्ञानचंदानी को टिकट दिया। शर्मा व ज्ञानचंदानी के बीच कड़ी टक्कर हुई। कांग्रेस की हार का अंतर 50 को कम करके 15 हजार किया था। इधर भाजपा से नाराज पूर्व विधायक जितेंद्र डागा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था।