जिले के चालीस हजार से ज्यादा युवा किसको करेंगे वोट?

संजय खरे , कटनी
प्रत्याशियों के लिए कल की आखिरी रात भारी रही सारे संसाधन और तमाम हथकंडे झोंक देने के बाद अब फैसले का वक्त आ गया है। कल दिन भर प्रत्याशियों ने मतदाताओं से संपर्क भी किया अब मतदाताओं को तय करना है कि उन्हें किस उम्मीदवार ने प्रभावित किया। आज सुबह 7 बजे से लोकतंत्र के इस महायज्ञ के लिए वोटों की आहुति का सिलसिला शुरू हो जाएगा, जो शाम 5 बजे तक चलेगा। जिले के चार विधायकों को चुनने के लिए बनाये गए सभी 1192 मतदान केंद्रों में प्रशासन ने चाक चौबंद इंतजाम किए है। इस बार करीब 40 हजार से ज्यादा युवा वोटर पहली बार सूबे की सरकार चुनने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।यंग वोटर्स की यह संख्या चुनाव में बड़ा फैक्टर बनकर उभरी है। आधी आबादी यानी महिला वोटर्स का झुकाव किस तरफ होगा, यह भी देखने लायक होगा। इस बार महिलाएं किसी भी राजनीतिक दल की तकदीर बना भी सकती हैं और खेल बिगाड़ भी सकती हैं इसलिए प्रत्याशियों ने अपने चुनाव प्रचार का फोकस महिलाओं पर रखा।
मतदान से चंद घण्टे पहले जिले की चारों सीटों पर कड़े संघर्ष की स्थितियां निर्मित हो गई हैं। तीन सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है जबकि एक सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष है। जिले में इस बार का विधानसभा चुनाव कुछ अलग ही मिजाज लेकर आया। मुद्दे तो हावी थे ही, उम्मीदवारों के चेहरे भी फैक्टर बने। कांग्रेस और भाजपा ने सभी चारों सीटें मिलाकर केवल एक एक टिकट ही बदली, लिहाजा मतदाताओं के सामने यह भी एक चुनौती है कि उन्हें पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताना है या बदलाव करना है। बीजेपी इस बार एन्टीइनकमबेंसी से जूझती नजर आई। प्रत्याशियों को लेकर भी कुछ नाराजगी बनी हुई है जिसका सीधा असर चुनाव पर पड़ता नजर आया। सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस के पक्ष में अंडरकरेंट के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार इसका फायदा उठा पाएंगे या नही, यह भी आज की वोटिंग के रुझान से तय हो जाएगा। विजयराघवगढ छोडक़र बाकी तीन सीटों पर इस बार कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों की निर्दलीयों और अन्य छोटे दलों ने नींद हराम की। 2018 के चुनाव नतीजों पर गौर करें तो चारों विधानसभा क्षेत्रों में हार जीत का अंतर कुल 12 से 16 हजार वोट के बीच ही रहा है। जानकार इस अंतर को इस चुनाव की हवा के परिप्रेक्ष्य में बहुत ज्यादा नही मानते। इनका कहना है कि 2018 के इलेक्शन में बीजेपी के खिलाफ जनता में इतना आक्रोश नही था और न ही स्थानीय स्तर पर पार्टी के प्रत्याशियों की ही इतनी मुखालफत थी,लेकिन इस बार ये दोनों फैक्टर असर दिखा रहे हैं, इसलिए नतीजे अगर चौकाने वाले रहे तो कोई आश्चर्य नही। बीजेपी को लाडली बहना योजना के चमत्कार पर भरोसा है लेकिन कांग्रेस की सभाओं और रैलियों में उमड़ी महिलाओं की भीड़ ने भाजपा की इन उम्मीदों को झटका भी दिया है।
सारे दिन चली बूथ मैनेजमेंट की तैयारी: प्रत्याशियों के कैम्प में कल सारा दिन मतदान को लेकर बूथ मैनेजमेंट की तैयारियां नजर आईं। चारों विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ताओं की फौज हर बूथ पर है लिहाजा उनके सामने काउंटर पर बैठने वालों की कमी नही लेकिन छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों को काउंटर लगाने के लिए भी कल सारा दिन मशक्कत करना पड़ी। मतदान सामग्री के थैले कार्यकर्ताओं को देकर मतदान के लिए जरूरी टिप्स भी दिए गए। आज सुबह से पोलिंग एजेंट अपना काम सम्हाल लिया । प्रत्याशियों की ओर से मतदान केंद्रों से 100 मीटर दूर टेंट या काउंटर का इंतजाम कल रात में ही कर लिया गया। मतदान अभिकर्ताओ के लिए चाय, नाश्ते और खाने का इंतजाम किया जा रहा है।
चारों सीटों का यह है समीकरण: परसो शाम 5 बजे शोर शराबे का प्रचार बंद हो जाने के बाद प्रत्याशियों ने डोर टू डोर कैम्पेन के जरिये वोटर्स को साधने के जतन किये। वोटिंग के कुछ घण्टे पहले जो तस्वीर सामने आई है उसके मुताबिक विजयराघवगढ़ में भाजपा प्रत्याशी संजय पाठक और कांग्रेस प्रत्याशी नीरज सिंह बघेल के बीच कड़ा मुकाबला है। परसो प्रचार के अंतिम दौर में कमलनाथ की सभा में उमड़ी भीड़ से कांग्रेसियों का उत्साह बढ़ा हुआ है। यहां क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले तमाम नेता इस बार एक होकर संजय पाठक के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं लेकिन गांव गांव फैले संजय के अभेद नेटवर्क के सामने पार पाना आसान नही। हर चुनाव में इस सीट का ट्रेंड यही रहता है लेकिन नतीजे संजय पाठक के पक्ष में ही आते रहे हैं। इस बार संजय पाठक ने आक्रामक प्रचार शैली के जरिये मतदाताओं तक पैठ बनाने की कोशिश की। वे क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच पहुंचे तो नीरज सिंह बघेल ने अपना पूरा प्रचार अभियान भाजपा प्रत्याशी पर निजी हमलों तक केंद्रित रखा।
बहोरीबंद में अंतिम क्षणों में शंकर महतो बड़ा फैक्टर बनकर उभरे हैं। अगर महतो ज्यादा वोट बटोर ले गए तो भाजपा प्रत्याशी प्रणय पांडे की राह कठिन हो जाएगी। यहां त्रिकोणीय संघर्ष के बीच यह नही कहा जा सकता कि किसकी स्थिति मजबूत है। कांग्रेस के सौरभ सिंह ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है। यहां जातीय समीकरण ही चुनावी जीत हार का पैमाना है। यह सीट इस बार आश्चर्यजनक नतीजे देने की ओर बढ़ रही है।
जिले की आदिवासी बाहुल्य बड़वारा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बसन्त सिंह के समर्थन में माहौल बनाने इस बार कांग्रेस का कोई बड़ा नेता नही आया। बसन्त अकेले ही पूरे प्रचार अभियान की बागडौर सम्भालते दिखे। इसके उलट बीजेपी के धीरेंद्र सिंह के पक्ष में जहां प्रदेश भाजपा के मुखिया वीडी शर्मा ने सभा की तो दूसरी ओर जिला संगठन भी यहां पूरी ताकत लगा रहा है। इस सबके बावजूद यहां भाजपा की राह आसान नही दिख रही। वजह है मोती कश्यप। बड़े नेताओं की बात मानकर कश्यप चुनाव मैदान से तो हट गए लेकिन बीजेपी को उनका साथ पूरी ताकत से नही मिल पाया। जानकारों के मुताबिक माझी समाज के लगभग 33 हजार वोट इस चुनाव में जीत हार का समीकरण तय कर देंगे, जिनमे कश्यप की पकड़ है। यह वोट बैंक किसके पाले में ट्रांसफर होगा यह मतदान के ट्रेंड से ही पता चलेगा। जिला मुख्यालय की शहरी सीट मुड़वारा में चुनाव फस गया है। मतदान के चंद घण्टे पहले भी कोई कह सकने की स्थिति में नही है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। परसो कांग्रेस ने मिथलेश जैन के समर्थन में शहर में बड़ी रैली निकालकर माहौल बनाने की कोशिश की। इसके एक दिन पहले भाजपा प्रत्याशी सन्दीप जायसवाल ने रैली और सभा के जरिये मतदाताओं से वोट मांगे। मुड़वारा का समीकरण निर्दलीय प्रत्याशियों ज्योति दीक्षित, संतोष शुक्ला और आप के प्रत्याशी सुनील मिश्रा अगर ज्यादा प्रभावित कर ले गए तो नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। ब्राम्हण वोटों के अलावा माधवनगर का साथ किस उम्मीदवार को मिलेगा यह भी देखने लायक होगा। इस बार इस सीट पर किसी के पक्ष में कोई लहर नही दिखी अलबत्ता जनता में बदलाव की चर्चा जरूर खूब रही। अब मतदाता खामोशी से वोट कर रहा है। कांग्रेस इस बार अधिक एकजुटता के साथ चुनाव लड़ती दिखी जबकि भाजपा में अंत तक नाराजगी का साया मंडराता रहा। खबर यही मिलती रही कि पार्टी के लोग काम नही कर रहे। एक बड़ा वर्ग कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी की मदद कर रहा है। इस सबके बावजूद सन्दीप जायसवाल अपने विकास कार्यों के बल पर समर्थन मिलने को लेकर आश्वस्त हैं तो मिथलेश जैन अपने अनुभव और बदलाव की हवा को लेकर निश्चिंत हैं।