डेली कॉलेज से पास होकर निकले 12 में से 7 चुनावी रण में फतह

स्वतंत्र समय, इंदौर

डेली कॉलेज, इंदौर से पास होकर निकले जनप्रतिनिधियों ने भी मैदान संभाला था। भाजपा ने जहां चार उम्मीदवारों पर दांव चला था तो कांग्रेस ने 8 को टिकट दिए थे। भाजपा के सभी चारों प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे। वहीं कांग्रेस के 8 में से तीन ही प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हो सके।

सुदेश राय ने हासिल की सबसे बड़ी जीत

भाजपा ने डेली कॉलेज के पासआउट में नागेंद्र सिंह, सुदेश राय, बृजेंद्र प्रताप सिंह और कामाख्या सिंह को टिकट दिया। ये सभी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सबसे बड़ी जीत इनमें 1988 बैच के सुदेश राय ने सीहोर विधानसभा सीट से दर्ज की और उन्होंने कांग्रेस के शशांक सक्सेना को 37851 वोटों से हराया। सुदेश राय तीसरी बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं। इससे पहले वह एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं, जबकि दो बार भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी रहकर चुनाव जीत हासिल की है। नागोद सीट से भाजपा प्रत्याशी रहे नागेंद्र सिंह 1960 बैच के पासआउट हैं और उन्होंने कांग्रेस के दिलीप बुनकर को 17369 वोटों से हराया। वहीं बृजेंद्र प्रताप सिंह जो 1986 बैच के पासआउट हैं, उन्होंने पन्ना विधानसभा सीट से कांग्रेस के मिलन पांडे को 17910 वोटों से हराया। इसके अलावा भाजपा के महाराजपुर प्रत्याशी कामाख्या सिंह ने विधानसभा सीट से कांग्रेस के दीक्षित नीरज विनोद को 26617 वोटों से हराया।

कांग्रेस के ये खिलाड़ी ही मैदान मार पाए

कांग्रेस ने डेली कॉलेज के पास आउट में 8 प्रत्याशियों को टिकट दिया था। इसमें तीन ही बाजी मार पाए और तीनों ही विधायक रह चुके हैं। विजेताओं में सुरेंद्र सिंह (हनी बघेल), सचिन यादव, डॉ. विक्रांत भूरिया शामिल रहे। इसमें सबसे बड़ी जीत सुरेंद्र सिंह (हनी बघेल) की रही जिन्होंने कुक्षी विधानसभा सीट से भाजपा के जयदीप पटेल को 49888 वोटों से हराया। 1996 बैच के सुरेंद्र 2018 में भी चुनाव जीते थे। वहीं कसरावद सीट से पूर्व मंत्री अरुण यादव के भाई सचिन यादव ने अपने चिर-परिचित भाजपाई प्रत्याशी आत्माराम पटेल को 5672 वोटों से शिकस्त दी। सचिन 1999 बैच के पासआउट हैं और पहले भी पटेल को पराजित कर चुके हैं। वहीं 2002 बैच के पासआउट डॉ. विक्रांत भूरिया ने झाबुआ सीट से भाजपा के भानु भूरिया को 15693 वोटों से पराजित किया। वे कांग्रेस के कद्दावर कांतिलाल भूरिया के पुत्र हैं। यहां से भाजपा भानु भूरिया की जीत को लेकर आश्वस्त थी क्योंकि भानु युवाओं में खासा लोकप्रिय चेहरा हैं लेकिन डॉ. विक्रांत भूरिया ने बाजी पलटकर रख दी।

कांग्रेस के ये प्रत्याशी नहीं निकाल पाए सीट

ओल्ड डेलियंस में अन्य प्रत्याशियों की बात की जाए तो पांच जनप्रतिनिधि अपनी सीट नहीं निकाल पाए। नरसिंहपुर के गोटेगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस के नर्मदा प्रसाद प्रजापति को बीजेपी के महेंद्र नागेश से जोरदार टक्कर मिली और वे 47788 वोटों से पराजित हुए। बता दें कि कांग्रेस ने शुरुआत में नर्मदा प्रसाद प्रजापति का टिकट काट दिया था, लेकिन बाद में उनके मजबूत नेतृत्व को देखते हुए फिर उन्हीं को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। उधर, बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के करीबी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष महेंद्र नागेश को उम्मीदवार बनाया था।  प्रजापति 1976 बैच के पासआउट हैं। ओल्ड डेलियंस में सबसे बड़ी हार की बात की जाए तो यह चांचौड़ा सीट से चुनाव लडऩे वाले और 1972 के पासआउट लक्ष्मण सिंह के खाते में गई है।

दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह की बड़ी हार

दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा सीट का त्रिकोणीय सीट पर मुकाबला था। 21 चरण की मतगणना के बाद भाजपा की प्रियंका मीणा ने 61570 मतों से शानदार जीत दर्ज की। उन्हें कुल 110654 वोट मिले, वहीं कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह इससे आधे मत भी प्राप्त नहीं कर पाए और 48684 मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे। उधर, भाजपा से बगावत कर आप प्रत्याशी के रूप में उतरीं ममता मीणा को 27405 मतों से संतोष करना पड़ा। वहीं 1994 बैच के शैलेंद्र पटेल को इछावर सीट पर भाजपा के करण सिंह वर्मा के हाथों 16346 वोटों से पराजय मिली। वहीं 1995 के पासआउट व खिलचीपुर प्रत्याशी प्रियव्रत सिंह को बीजेपी के हजारी लाल डांगी ने 13678 वोटों से हरा दिया। मजे की बात यह है कि हजारी लाल डांगी कभी कांग्रेस का ही हिस्सा रहे हैं। रीवा जिले के गढ़ प्रत्याशी और 1996 बैच के कपिध्वज सिंह ने भाजपा के नागेंद्र सिंह को कड़ी टक्कर दी और वे 2493 वोटों से पराजित हुए।