स्वतंत्र समय, अयोध्या
भगवान राम के मंदिर के उद्घाटन की तैयारी जोरशोर से चल रही है। इसके लिए देश-विदेश से मेहमानों को आमंत्रित किया जा रहा है, लेकिन इस कार्यक्रम से कुछ ऐसे बड़े चेहरे ही गायब हैं जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की लड़ाई लडऩे में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्हीं चेहरों में से एक हैं प्रवीण तोगडिय़ा। वे विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं। भाजपा ने पालमपुर अधिवेशन में जब राम मंदिर के लिए आंदोलन चलाने का निर्णय लिया था, तब से वे विहिप के सर्वप्रमुख पदाधिकारी रहते हुए उन्होंने आंदोलन चलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
कुछ राजनीतिक मतभेद के चलते वे इस समय संगठन से बाहर हैं। माना जा रहा है कि इस मतभेद के चलते ही उन्हें राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया है, लेकिन उन्हें इस बात का कष्ट नहीं है कि उन्हें इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किया गया, बल्कि अपने जीवन के सबसे बड़े लक्ष्य को पूरा होते देख उन्हें खुशी है।
प्रवीण तोगडिय़ा ने कहा कि राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया है। उन्होंने इस तरह के निमंत्रण के लिए नहीं, बल्कि लाठी-गोली खाने के लिए आंदोलन चलाया था। उन्हें इस बात की खुशी है कि उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य आज पूरा होने जा रहा है। उन्हें इस बात का सदैव गर्व रहेगा कि उन्होंने इस आंदोलन के लिए 1984 से 2018 तक हर मोर्चे पर अपनी सहभागिता दी। आंदोलन चलाने के पीछे हमारा उद्देश्य था कि भगवान राम को उनकी जन्मभूमि पर विराजमान किया जाए। आज वह संकल्प पूरा होते देख उन्हें बेहद हर्ष हो रहा है। इससे बढक़र कोई दूसरी बात उनके लिए नहीं हो सकती। प्रवीण तोगडिय़़ा ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण केवल एक मंदिर का बनना नहीं है। यह भारत के सनातन गौरव की वापसी और हिंदुत्व के वैश्विक पटल पर उत्थान का काल है। इस अवसर पर उन आंदोलनकारियों का सम्मान किया जाना चाहिए जिन्होंने राम मंदिर के लिए निस्वार्थ आंदोलन चलाया था और अपने प्राणों की आहूति दी थी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को उद्घाटन अवसर पर ही विहिप के सबसे बड़े नेता अशोक सिंहल, महंत अवैद्यनाथ, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, आचार्य धर्मेंद्र जैसे लोगों को भारत रत्न देने की घोषणा करनी चाहिए। साथ ही जिन राम भक्तों ने आंदोलन में अपने प्राणों को न्योछावर किया था, उन्हें भी पद्मश्री देकर उनका सम्मान करना चाहिए।
राम मंदिर बनने के बाद ही खुद के घर की रखेंगे ईंट
राम मंदिर आंदोलन की मुख्य धारा में रहे ढांचा विध्वंस के मुख्य आरोपी संतोष दुबे भी अब अपना आशियाना बनाएंगे। वर्ष 1986 में मंदिर का ताला खुलने पर उन्होंने प्रभु श्रीराम का मंदिर बनने तक अपना घर न बनाने का संकल्प लिया था। वह अभी भी सौ वर्ष पुराने उसी जर्जर भवन में रहते हैं, जिसके दरवाजे तक को पुलिस ने धरपकड़ के दौरान तोड़ दिया गया था।मूलरूप से बीकापुर के पातूपुर निवासी संतोष दुबे शहर के जमुनियाबाग में स्थित पैतृक निवास में परिवार के साथ रहते हैं। 30 जनवरी 1984 को विहिप की ओर से सरयू तट पर हुई संकल्प सभा में शामिल होकर उन्होंने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। उस समय वह हाईस्कूल में थे। इसी समय से वह मंदिर आंदोलन से जुड़े और समय-समय पर सभी आंदोलनों का नेतृत्व किया। दो नवंबर 1990 में कारसेवा के दौरान उन्हें चार गोलियां लगीं। छह दिसंबर 1992 को गुंबद तोड़ते समय वह नीचे गिरे और शरीर में 17 फ्रैक्चर हो गए। कई महीनों के इलाज के बाद वह स्वस्थ हुए और फिर रामकाज में जुट गए। वर्ष 2010 में वह बीकापुर तृतीय से जिला पंचायत सदस्य चुने गए। इस दौरान वह आर्थिक रूप से भी कुछ मजबूत हुए। महंगी गाड़ी ली और संसाधन पूरे किए, लेकिन घर न बनवाने का संकल्प बरकरार रखा।