धूमधाम से मनाया श्रीगुरुनानक देवजी का प्रकाश पर्व

स्वतंत्र समय, ललितपुर

श्रीगुरुसिंह सभा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के तत्वाधान में गुरुनानक देवजी का 554 वा प्रकाश पर्व श्रद्धा भावना के साथ गुरुद्वारा साहिब लक्ष्मीपुरा में मनाया गया। सर्वप्रथम 12 दिनों से लगातार चल रहे कार्यक्रमों का आज समापन हुआ जिसमे स्त्री साध संगत द्वारा लगातार चल रहे नितनेम जी पाठों का वा प्रभातफेरियों व सुबह शाम लगातार लंगर चलते रहे सुबह वा शाम के लंगर की सेवा जितेंद्र सिंह सलूजा, सुरजीत सिंह सेंटल बैंक, ओंकार सिंह सलूजा, जोगिंदर कोर छाबड़ा आदि द्वारा की गई। आज सर्वप्रथम श्रीअखंडपाठ साहिबजी की समाप्ति सरदार सतनाम सिंह व सरदार मनिंदर सिंह परिवार की ओर से हुई। निशान साहिब के चोले की सेवा सरदार सुरजीत सिंह व गुरुबचन सिंह, हरविंदर सिंह सलूजा परिवार की ओर से हुई। सुबह व रात के लंगर की सेवा ताला चाबी खालसा परिवार नेहरूनगर संगत द्वारा हुई।

इस अवसर पर मुख्य ग्रंथि अरविंदर सिंहजी ने देश में अमन चैन एकता व अखंडता की अरदास की रात्रि में भी बच्चों द्वारा संस्कृति कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। इस अवसर पर दिल्ली से पधारे संत मानी सिंहजी ने अपने जत्थे के साथ गुरबाणी कीर्तन वा कथा को संबोधित किया। उन्होंने कहा किगुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु थे। उनकी जयंती प्रकाश पर्व या गुरु पर्व के रूप में मनाई जाती है। नानक जी का जन्म पाकिस्तान (पंजाब) में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन इनका जन्म हुआ था इनका जन्म पिता मेहता कालू जी और मां तृप्ती देवी के घर हुआ। सिख धर्म में मान्यता है कि बचपन से ही नानक देव जी विशेष शक्तियों के धनी थे।
उन्हें अपनी बहन नानकी से काफी कुछ सीखने को मिला। 16 वर्ष की ही आयु में ही इनकी शादी सुलक्खनी से हो गई। सुलक्खनी पंजाब के (भारत) गुरदासपुर जिले के लाखौकी की रहने वाली थीं। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थे। इन दोनों बच्चों के जन्म कुछ समय बाद ही नानक जी तीर्थयात्रा पर निकल गए। उन्होंने काफी लंबी यात्राएं की। इस यात्रा में उनके साथ मरदाना, लहना, बाला और रामदास भी गए। 1521 तक उन्होंने यात्राएं की। इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ कहा जाता है। गुरु नानक जी ने अपनी यात्राओं के दौरान कई जगह डेरा जमाया।
उन्होंने समाजिक कुरितियों का विरोध किया। उन्होंने मू्र्ति पूजा को निर्थक माना और रूढि़वादी सोच का विरोध किया। उन्होंने अपने जीवन का आखिरी समय पाकिस्तान के करतारपुर में बिताया। करतापुर सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल है। लेकिन उन्होंने अपने पीछे सिख धर्म के अनुयायियों के लिए अपने जीवन के तीन मूल सिद्धांत नाम जपो, कीरत करो और वंडा चखो बता गए। करतारपुर में गुरु नानक देव जी की दिव्य ज्योति जोत में समा गई। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी बनाया, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव कहालाए। वे सिखों के दूसरे गुरु माने जाते हैं।

इस अवसर पर गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा, संरक्षक जितेंद्र सिंह सलूजा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा, उपाध्यक्ष डा.सुरेंद्र कौर वालिया, मंत्री मंजीत सिंह पत्रकार, कोषाध्यक्ष परमजीत सिंह छतवाल, चरणजीत सिंह, मुन्नालाल, पार्षद आलोक मयूर, धर्मेंद्र रूपेश, रमेश श्रीवास्तव, जगजीत सिंह, दलजीत सिंह, आनंद सिंह, मजबूत सिंह, प्रदीप सिंह, सूरज सिंह, गौरव सिंह, सुमेर सिंह, भगत सिंह, गुरबचन सिंह, जीवन सिंह, मनिंदर सिंह, वीरेंद्र सिंह वीके, दलजीत सिंह, सिमरन सिंह सलूजा, नाती राजा, असलम खान, जसप्रीत सिंह रहे। संचालन महामंत्री सुरजीत सिंह सलूजा ने किया।