स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र विधानसभा की नकल कर अब भोपाल नगर निगम परिषद की बैठक में अभद्र या अमर्यादित शब्द कहने पर पार्षदों के लिए पाबंदी लगा दी है। ऐसे 838 शब्द सदन के सदस्य यानी पार्षद नहीं बोल पाएंगे। अगली ही मीटिंग से इस पर अमल शुरू हो जाएगा। ऐसा करने वाली भोपाल देश की पहली नगर निगम है। बेईमान, एक थैली के चट्टे-बट्टे, पप्पू, डाकू या फिर भोपाल के तालाब में आपको डूब जाना चाहिए। विधानसभा और लोकसभा की तर्ज पर ही अमर्यादित, असंसदीय शब्दों पर शुक्रवार को बुकलेट जारी की है। इन शब्दों को सदन में प्रतिबंधित कर दिया है। कई बार सदन में मौजूद सदस्य जाने-अनजाने या आवेश में आकर ऐसे शब्दों का उपयोग कर लेते हैं, जिससे सदन की मर्यादा भी प्रभावित होती है। कहीं न कहीं उन शब्दों का इस्तेमाल करने वाले सदस्य की छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नगर निगम की बैठक के दौरान कई बार विपक्षी पार्षद अध्यक्ष की आसंदी भी घेर लेते हैं।
दो पार्षदों का नाम ही पप्पू है तो क्या करेगी सदन?
कांग्रेस के पार्षद और नेता प्रतिपक्ष शबिस्ता जकी ने बताया कि कोई भी नियमावली बनाने का अधिकार परिषद हो है, वहां प्रस्ताव लाकर धारा 33 के तहत कार्यवाही करना चाहिए। जकी ने यह भी सवाल उठाया कि हमारी ननि में दो पार्षदों के नाम ही पप्पू से शुरू होते हैं तो क्या उनका नाम भी सदन में नहीं लिया जाएगा। कांग्रेस के पार्षद गुड्डू चौहान ने आपत्ति जताते हुए कहा कि नगर निगम के अध्यक्ष को पहले सदन के सभी सदस्यों महापौर, नेता प्रतिपक्ष समेत सभी सदस्यों को विश्वास पर लेना चाहिए था, फिर अमर्यादित शब्दों को हटाने की कार्यवाही करना चाहिए, ननि अध्यक्ष का यह निर्णय तानाशाही पूर्ण है।
विधानसभा अध्यक्ष से चर्चा करने के बाद फैसला
भोपाल ननि अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने बताया कि इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से चर्चा की गई थी। प्रदेश की विधानसभा में असंसदीय और अमर्यादित शब्दों का अध्ययन किया। इनमें से 838 शब्दों को हमने चुना है, जो भोपाल निगम पर लागू किए हैं। नगर निगम में यह परंपरा लागू की है, जो देश में पहली बार है। यह लोकाचार, लोक व्यवहार, सदन मर्यादा, आसंदी का सम्मान और सदन में सदस्यों के एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव को देखते हुए शुरू कर गई है। यह इनोवेशन देश की अन्य निकायों के लिए मिसाल बनेगी। संसदीय परंपरा को लेकर यह बड़ा कदम है।
जान-बूझकर शब्द कहने पर सदन से होंगे बाहर
जाने-अनजाने में कोई सदस्य यदि पाबंदी वाले शब्द का उपयोग करते हैं तो माना जाएगा कि यह प्रोसेडिंग का हिस्सा नहीं है, लेकिन जान-बूझकर ऐसा करने पर सदस्य को सदन से बाहर करने की कार्रवाई की जा सकती है। परिषद की मीटिंग के दौरान कई बार बीजेपी और कांग्रेस पार्षद आमने-सामने आ जाते हैं।
पार्षदों को दी जाएगी बुकलेट
अमर्यादित एवं असंसदीय शब्दों की निगम ने बुकलेट भी छपवाई है, जिसकी एक-एक प्रति पार्षदों को दी जाएगी। अध्यक्ष ने कहा कि आवश्यकता के अनुसार संशोधन करेंगे। शब्द घटाए या बढ़ाए भी जा सकते हैं।
इन शब्दों पर परिषद में लगेगी पाबंदी
838 शब्दों पर पाबंदी लगाई गई हैं, उनके प्रमुख रूप से ससुर, गंदी सूरत, 420, उल्लू का पट्ठा, बुद्धि मारी गई है, झूठा, बेशर्म, एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, गरीब सदस्य बेचारे, जंगली सुअर, पागलखाना, निकम्मे, पागल, चोर, सडक़ छाप, बदमाश, बूढ़ा शेर, लफंगे लोग, शेखी बघारना, कम अकल, भ्रष्ट, शैतान, लफंगा, दो-दो कौढ़ी के लोग, उचक्का, नंगा घूमना, बेशर्म लोग हैं गुंडागर्दी कर रहे हैं, सावन के अंधों को हरा ही दिखता है। ढोंगी, पाखंडी, चुढ़ल, टुच्चा, टुच्चों, मैं पांव पकडक़र समय मांगता हूं, पापी, नमक हराम, चोरी और सीनाजोरी, भ्रष्टाचारियों की पार्टी, रंगरूट, गुंडों को संरक्षण देना, बेईमानों की पार्टी है, मंद दिमाग, बंधुआ मजदूर, निकम्मी सरकार, गुलाम, जूते लगाएंगे, अप्पू महाराज, चमचे, लानत, आदमखोर, लालच, घूस, मुर्ख आदमी, गेंडे की खाल ओढ़े बैठे हैं, तुमको शर्म आनी चाहिए, खलनायक, रंगा-बिल्ला, चंगु-मंगू, आपकी औकात क्या है, आपको शर्म आना चाहिए, बेचारा, पप्पू पास हो जाएगा, मजाक उड़ाएंगे, नौटंकी, कुकर्म जैसे शब्द। 900 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, यह सदन के ठेकेदार हैं, सब में कमीशन बंटा हुआ है या बंधा हुआ है, आपकी सोच शर्मनाक है, घढिय़ाली आंसू, लूटपाट, आपके लोगों ने लूटा है, बूचढख़ाना, माई का लाल, सांप बनकर, देशद्रोही हो तुम, बढ़ा हेड मास्टर बनता है, थोढ़ी तो शर्म करों, बिल्कुल कीढ़े पढग़े, मगरमच्छ अधिकारी, मगरमच्छ अधिकारी बैठे हैं, चमचागिरी, पाप का घढ़ा।