स्वतंत्र समय, इंदौर
इंदौर जिले की सांवेर विधानसभा में इस बार अनुभवी विधायक तुलसीराम सिलावट और कांग्रेस की युवा प्रत्याशी रीना बौरासी सेतिया के बीच मुकाबला है। पहली बार इस सीट पर किसी महिला प्रत्याशी को किसी भी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है, इससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है। रीना पिछले विधानसभा के बाद से ही इस क्षेत्र में लगातार मेहनत कर रही है तो तुलसी की परंपरागत सीट होने के कारण उन्हें पांचवीं बार इस क्षेत्र से जीत की उम्मीद है। हालांकि इस क्षेत्र से दावेदार रहे मूल भाजपाइयों का साथ उन्हें दूसरी जगह व्यस्त होने से नहीं मिल पा रहा है तो दूसरी ओर रीना को अपने पिता व भाई का ही साथ नहीं है। इस प्रकार दोनों ही प्रत्याशियों के सामने चुनौती है। रीना के पक्ष में प्रियंका ने सभा कर माहौल बनाया है तो भाजपा के लिए सिंधिया से लेकर तमाम बड़े नेता प्रचार करने आ चुके हैं। इस सीट का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यहां 25 सालों से कोई भी पार्टी लगातार दो चुनाव नहीं जीती है। हालांकि, तुलसीराम सिलावट यहां से लगातार 2 विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन उन्होंने एक बार कांग्रेस और दूसरी बार भाजपा से चुनाव लड़ा था। यहां का एक इतिहास भी है कि किसी भी पार्टी को दूसरी बार यहां के मतदाताओं ने जिताया नहीं है। तुलसी सिलावट लगातार दो बार दो पार्टियों से जीते हैं।
इस सीट पर कांग्रेस ने महिला दांव खेला है। वो अपने प्रचार में भी इसको ही हाईलाइट कर रही है। कांग्रेस की शीर्ष महिला नेता गांधी परिवार की प्रियंका गांधी की सभा इस क्षेत्र में होना भी इस बात का गवाह है कि कांग्रेस इस सीट को गंभीरता से ले रही है। इस क्षेत्र में महिला वोटर्स की संख्या भी लगभग बराबर है इस कारण कांग्रेस उन्हें फोकस कर रही है। रीना को इस बार युवा जीत की उम्मीद है तो उधर दूसरी ओर तुलसी सिलावट क्षेत्र में अपने द्वारा किए गए कामों के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों को भी भुनाने की बात करते हुए काम कर रहे हैं। उनका पूरा क्षेत्र देखा-भाला है र उन्हें पूरा गणित भी पता है। वो काफी निश्चित है कि उनका अनुभव इस बार भी भारी पड़ेगा।
दलितों के बाद खाती-राजपूत मतदाता
सांवेर विधानसभा सीट काफी अहम है यहां पर तकरीबन 3 लाख मतदाता निवास करते हैं। इस विधानसभा पर सबसे अधिक राजपूत समाज का मतदाता निवास करता है और राजपूत समाज जिस भी पार्टी के प्रत्याशी को एकमत होकर चुन लेते है उस पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से जीत जाता है। क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब 40 हजार से ज्यादा दलित मतदाता हैं। इस क्षेत्र में करीब 35 हजार से ज्यादा मतदाता खाती समाज के और 30 हजार से ज्यादा मतदाता कलोता राजपूत समाज से आते हैं। इस राजपूत और धाकड़ समाज के करीब 15-15 हजार वोट हैं। इस प्रकार जातिगत समीकरण में यह सीट फंसी हुई ही नजर आती है। 2018 में कांग्रेस की सरकार को गिराकर कई विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी का दामन थाम लिया था। उसी कारण तुलसीराम सिलावट ने भी कांग्रेस को छोड़ दिया और भाजपा में आ गए। 2020 में पहली बार इस विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए जिसमें तुलसीराम सिलावट ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमचंद गुड्डू को हराकर बीजेपी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली।
सात बार कांग्रेस, छह बार भाजपा
सांवेर विधानसभा सीट पर 1970 के एक उपचुनाव को मिलकर अब तक 15 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1962 में हुए पहले चुनाव से 2018 में हुए विस चुनाव में अब तक 98 उम्मीदवारों ने यहां से अपनी किस्मत आजमाई है। यहां से अब तक सबसे ज्यादा 7 बार कांग्रेस, 6 बार भाजपा, एक बार जनसंघ और एक बार जनता पार्टी को जीत मिली है। सिलावट सांवेर से तीन बार तो गुड्?डू ने 1998 में यहीं से विधायकी का चुनाव जीता था।
पिछले चुनाव में रही कांटे की टक्कर, उपचुनाव में तुलसी की बंपर जीत
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो सांवेर सीट पर 9 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हुआ। कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट ने 96,535 को वोट मिले तो बीजेपी के राजेश सोनकर को 93,590 वोट आए। दोनों के बीच कांटे की टक्कर रही और अंत में बाजी तुलसीराम के हाथ लगी। उन्होंने यह मुकाबला 2,945 वोटों के अंतर से जीता। तब के चुनाव में सांवेर सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 2,38,650 थी जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,24,536 और महिला मतदाताओं की संख्या थी। इसमें से कुल 1,96,955 (83।6त्न) वोट ही पड़े। जबकि नोटा के पक्ष में 2,591 वोट पड़े। 2020 के बदले राजनीतिक माहौल में सांवेर सीट पर उपचुनाव कराया गया।
कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए तुलसीराम को चुनाव में बंपर वोट मिले और उन्हें कुल पड़े वोटों में 61 फीसदी वोट (129,676 वोट) हासिल हुए। जबकि कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 76,412 फीसदी वोट मिले। तुलसीराम को 53,264 मतों के अंतर से हराया।
दोनों के पास मूल नहीं है साथ
इस सीट का मिजाज इस बार अलग है। पहले भाजपा प्रत्याशी की बात करें तो यहां पर बदले हुए समीकरण में भले ही वो विधायक हैं लेकिन वास्तव में यहां से मूलत: भाजपाई और विधायक रह चुके डॉ. राजेश सोनकर के साथ ही अजाक आयोग के अध्यक्ष सावन सोनकर दावेदारों में थे। डॉ. सोनकर यहां से काफी समय से जुड़े हुए हैं तो सावन सोनकर का परिवार यहीं का प्रतिनिधित्व करता रहा है। भाजपा ने सबसे पहले राजेश सोनकर को सोनकच्छ से टिकट देकर तुलसी सिलावट की राह आसान की तो सावन सोनकर को पहले से ही मंत्रीपद देकर संतुष्ट कर दिया गया है। यह काम अब उल्टा भी नजर आ रहा है। राजेश सोनकर के अधिकांश समर्थक यहां से पलायन कर सोनकच्छ में प्रचार करते नजर आ रहे हैं तो सावन सोनकर भी यहां के बजाय देपालपुर में प्रचार पर फोकस कर रहे हैं। इस प्रकार तुलसी सिलावट को पार्टी से ज्यादा अपनी व्यक्तिगत टीम पर ज्यादा काम करना पड़ रहा है। यही स्थिति रीना सेतिया बौरासी की भी है। उनके पिता प्रेमचंद गुड्डू यहां से विधायक रह चुके हैं और उनका यहां पर अच्छा प्रभाव है लेकिन चुनाव के कुछ समय पहले पारिवारिक लड़ाई अब आम हो चुकी है। गुड्डू खुद आलोट से निर्दलीय चुनाव लडऩे के कारण यहां तो विरोध में सीधे नजर नहीं आ रहे हैं लेकिन वास्तव में उनके समर्थक भी रीना के साथ पूरी तरह नहीं जुड़े हैं। इस प्रकार दोनों ही प्रत्याशियों के लिए यहां अपनों का साथ नहीं मिल रहा है।
कौन-कौन हैं मैदान में
- रानी सेतिया कांग्रेस
- तुलसीराम सिलावट बीजेपी
- सीमा गोकुल बसपा
- विनोद यादव अंबेडकर आजा समाज पार्टी कांशीराम
- निर्दलीय प्रेमचंद वासीवाल गुड्डू, बाबू सर, घनश्याम चंदेल
कब कौन जीता है इस सीट पर
- 1962 सज्जन सिंह विश्नार कांग्रेस
- 1967 बाबूलाल राठौर भारतीय जनसंघ
- 1972 राधाकिशन मालवीय कांग्रेस
- 1977 अर्जुनसिंह धारू जनता पार्टी
- 1980 प्रकाश सोनकर भाजपा
- 1985 तुलसीराम सिलावट कांग्रेस
- 1990 प्रकाश सोनकर भारतीय जनता पार्टी
- 1993 प्रकाश सोनकर भारतीय जनता पार्टी
- 1998 प्रेमचन्द गुड्डू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 2003 प्रकाश सोनकर भारतीय जनता पार्टी
- 2008 तुलसीराम सिलावट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 2013 राजेश सोनकर भारतीय जनता पार्टी
- 2018 तुलसीराम सिलावट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- 2020 (उप) तुलसीराम सिलावट भारतीय जनता पार्टी