बस…वोट का सौदा मत करना! अभी मैं खरीदूंगा, फिर खुद बिकूंगा…

राजनीति की बात…राजेश के साथ…

मैं एक उम्मीदवार हूं… मुझे पता है चुनाव जीतने के लिए मुझे बस्तियों के वोट खरीदने होंगे, पैसा बोलता है यह मुझे अच्छी तरह से पता है। मैं जबसे उम्मीदवार बना हूं तबसे सब कुछ खरीदने में भरोसा करने लगा हूं। मैंने सबसे पहले अपने जनसंपर्क में अपना झंडा उठाने वाले मजदूर खरीदे। उसके बाद जब मैं जनसंपर्क पर निकला तो मैंने अपनी आरती उतारने वालों को पैसे दिए, खासतौर से महिलाओं और बच्चियों को। यह खबर मेरी पूरी विधानसभा में फैल गई, अब तो सैकड़ों महिलाएं आरती की थाली लेकर दो-चार घंटे मेरा इंतजार करती रहती हैं। मैंने सबसे पहले वोट खरीदने के लिए भोजन-भंडारे चालू कराए, चुनाव आयोग को धोखा देने के लिए किसी का जन्मदिन मना दिया, किसी की शादी की सालगिरह मनवा दी। पैसा सबकुछ करा सकता है।  इस पर मेरा भरोसा तेजी से आगे बढ़ता चला गया। त्योहार देखकर मैंने अन्नकूट कराने के लिए हर समाज को पैसा देना शुरू किया। बस्तियों में शराब रोज बंटने लगी, महिलाओं को साडिय़ां देना शुरू कर दिया। बर्तन से लेकर चांदी के पायजेब तक बंटवा दिए। जो बांट सकता था सब बांटना शुरू कर दिया। राजनीति धंधा है साहब… बुरा मत मानना, जब मैं कमाने के लिए वोट खरीद रहा हूं तो मेरे कार्यकर्ताओं (सेल्समैन) को पैसा क्यों नहीं दूंगा।

मैंने सब कार्यकर्ताओं को भी खरीदना शुरू कर दिया। किसी को बाइक, किसी को स्कूटर तो किसी को मोबाइल और नकद पैसा देना भी शुरू कर दिया। देखते ही देखते मैं हजारों वोट से चुनाव जीत गया हूं। अब प्रदेश में सरकार बनाने के लिए विधायक खरीदने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया है। देखा… मैं कितना सफल बिजनेसमैन हूं। पैसे के लिए राजनीति करता हूं, फिर राजनीति में पैसा लगाता हूं और कमाता हूं। मैंने पहले वोटर खरीदे, अब मैं खुद बिक रहा हूं। जो मुझे खरीदने आ रहे हैं वो मेरा भाव-ताव कर रहे हैं। मैंने तो साफ कह दिया है… धंधा है भैया राजनीति तो। अपन ने 25-३० करोड़ लगा दिए चुनाव जीतने में, अब इससे डबल पैसा तो लूंगा ही। इसके अलावा गुंडे, बदमाश, हत्यारे-डकैत, लुटेरे-सटोरिए, ड्रग माफिया और भूमाफियाओं को बचाने की गारंटी भी लंूगा, देख लो… सौंदा पट रहा है तो… नहीं तो मैं दूसरी पार्टी से बात करूं। पैसा खुदा तो नहीं, लेकिन खुदा से कम नहीं। मैं पैसे की ताकत पर पूरे समाज को खरीद सकता हूूं। मैं समझदार हूं, रोटी के लिए भीड़ कहां नहीं होती। अब मैं एक जनप्रतिनिधि हूं, मुझे हर कोई बुलाता है। बड़ी गाड़ी में घूमता हूं और अगले चुनाव के लिए पैसा कमाने में लग गया हूं।

कहीं आप ऐसे जनप्रतिनिधि को तो नहीं चुन रहे हैं, बस एक बार यह जरूर सोच लेना, हमने विधायक ही नहीं बिकते हुए देखे, हमने तो सरकार भी खरीदते हुए देखा है। बाकी आप की मर्जी….