बीआरटीएस के मामले में ‘भोपाल’ जैसा नहीं है ‘इंदौर’

स्वतंत्र समय, इंदौर

भोपाल में बीआरटीएस हटाने का निर्णय होने के बाद इंदौर में भी इसे हटाने की चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि, भोपाल व इंदौर दोनों की परिस्थितियों में बहुत अंतर है। भोपाल में बीआरटीएस पर सिटी बस से ज्यादा दूसरे वाहन आसानी से चलते देखे जा सकते हैं, लेकिन इंदौर में इस लेन में मात्र सिटी बस और विशेष परिस्थितियों में एंबुलेंस को चलाने का सख्ती से पालन करवाया जाता है। इंदौर में काफी समय तक बीआरटीएस को हटाने की मांग होती रही लेकिन हर बार इसे नकार दिया गया। अभी भी जनप्रतिनिधि इसे हटाने पर एकमत नजर नहीं आ रहे हैं। मामला कोर्ट में भी पहुंचा है और इसे हटाने की याचिका पर काफी समय से सुनवाई चल रही है। इस लिहाज से 450 करोड़ रुपए की बड़ी लागत से बने बीआरटीएस को इंदौर में हटाना एकदम से संभव नहीं दिख रहा है। भोपाल में सरकार द्वारा बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाने के निर्णय के बाद अब इंदौर शहर का बीआरटीएस कॉरिडोर को भी हटाने की मुद्दे पर चर्चा शुरू हो चुकी है। इस चर्चा के पीछे अभी मात्र भोपाल में इसे हटाना ही है लेकिन वास्तविकता बहुत कुछ अलग है क्योंकि दोनों शहरों में इसे बनाने और अब हटाने के पीछे के कारण अलग-अलग हैं।

450 करोड़ की राशि हुई है खर्च

इंदौर में जब एबी रोड के मुख्य मार्ग पर बीआरटीएस बनाया गया था तब यह बात लगातार उठी थी कि इससे कोई खास फायदा नहीं होगा लेकिन भारत सरकार की स्कीम के अंतर्गत 450 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च करके बनाए गए बीआरटीएस पर सिटी बस के पब्लिक ट्रांसपोर्ट की आसानी बताई गई थी। इस बीआरटीएस का लगातार विरोध हुआ लेकिन सरकार अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुई थी। उस समय इसके सैकड़ों फायदे गिनाए गए थे। समय के साथ यह पूरे फायदे तो नजर नहीं आए लेकिन इस लेन पर केवल सिटी बस और एम्बुलेंस ही सख्ती के साथ चलाई गई। जबकि भोपाल में बीआरटीएस आरंभ से बीआरटीएस रहा ही नहीं। यहां पर लगातार वीआईपी मूवमेंट होने और जनता के नियमों को दरकिनार कर बीआरटीएस लेन में भी वाहन चलाते रहे। इससे साफ हो गया था कि यह कभी न कभी फिर से हटना ही है।

परिस्थितियां भोपाल जैसी नहीं

इंदौर में भोपाल के निर्णय के बाद भले ही इसे हटाने पर चर्चा हो रही है लेकिन भोपाल जैसी परिस्थितियां इंदौर में बिल्कुल नजर नहीं आती हैं। यहां पर कई सालों से पब्लिक ट्रांसपोर्ट यानी सिटी बस का संचालन बहुत ही अच्छे से किया जा रहा है। हमारी सिटी बस सर्विस देश में नंबर दो के स्थान पर है और बीआरटीएस पर संचालित होने के कारण यह टाइम-टू-टाइम बिना रोक-टोक के चलती है। हजारों लोग इस सर्विस का लाभ भी लेते हैं। सामान्य से लेकर एसी, ग्रीन और पिंक जैसी बसें इस लेन में चलाई जाती हैं। राजीव गांधी चौराहा से लेकर लसूडिय़ा तक के सिटी बस निर्बाध गति से चलती रहती है।

आसपास की लेन का ट्रैफिक बाधित

बीआरटीएस के कारण आसपास चलने वाले ट्रैफिक हमेशा कई स्थानों पर बाधित रहता है। खासकर नवलखा से लेकर एमजीएम चौराहा तक ट्रैफिक का कचूमर नजर आता है। वहीं पलासिया से लेकर अमलतास और रसोमा से लेकर विजय नगर तक भी कई स्थानों पर आसपास का ट्रैफिक बहुत ज्यादा होने से लोग परेशान होते रहते है। वर्तमान में विजयनगर के पास मेट्रो का काम चलने और भंवरकुआं पर सिक्सलेन का काम होने के कारण यहां पर बीआरटीएस मामला ब्रेक हो गया है। बरसात में तो बीआरटीएस जैसे पानी के बीच में बांध नजर आता है और निकासी नहीं होने के कारण जगह-जगह पानी भर जाता है। इसी कारण से कई बार इसे हटाने की बात उठी है, लेकिन फायदों को बताकर इसे नकार दिया गया है।

मूल उद्देश्य पूरा नहीं होने पर याचिका

बीआरटीएस का मामला सालों पहले ही हाईकोर्ट तक पहुंचा है। सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है लेकिन इनका निराकरण नहीं हुआ है। एक याचिका 2013 में प्रस्तुत हुई थी तो दूसरी वर्ष 2015 में। याचिकाकर्ता पहले ही अपनी याचिकाओं का सार 13 पेजों में समेट कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि शहर की दो प्रतिशत जनता के लिए सरकार ने 48 प्रतिशत सडक़ पर बीआरटीएस बना रखा है। यह आम आदमी के समानता के अधिकार का हनन है। इस प्रोजेक्ट की वजह से जितने लोगों को फायदा पहुंच रहा है उससे कहीं ज्यादा लोग इसका नुकसान उठा रहे हैं। बीआरटीएस का मूल उद्देश्य निजी वाहनों की संख्या कम करना, सभी वर्गों के लिए लोक परिवहन उपलब्ध कराना, लोगों को वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराना था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

सड़क का 37 प्रश बीआरटीएस के लिए

बीआरटीएस की वजह से आम यात्रियों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सडक़ का 37 प्रतिशत बीआरटीएस के लिए, 33 प्रतिशत सामान्य परिवहन के लिए और 30 प्रतिशत अन्य वाहनों के लिए इस्तेमाल हो रहा है। इस 37 प्रतिशत सडक़ पर 2.3 यात्री यात्रा कर रहे हैं जबकि 33 प्रतिशत सडक़ पर 97.7 प्रतिशत यात्री यात्रा करने को मजबूर हैं। इस तरह 50 हजार यात्रियों की सुविधा के लिए 25 लाख लोगों को परेशानी झेलना पड़ रही है। बीआरटीएस प्रोजेक्ट में कई नियमों का उलंघन किया गया है। नगर तथा ग्राम निवेश से विधिवत नक्शा भी स्वीकृत नहीं करवाया गया।