स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र के चुनावी रण में 230 सीटों पर शुक्रवार को मतदान संपन्न हो गया। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कई सीटों पर बागी और छोटी पार्टियों के प्रत्याशी धाकड़ प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। ये प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत का समीकरण बिगाड़ते दिख रहे हैं। मप्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस द्वारा जीत के अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं…लेकिन चुनाव मैदान में उतरे कई बागी कई सीटों पर दोनों ही पार्टियों की जीत-हार के गणित गड़बड़ा सकते हैं। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के करीब 74 नेताओं ने बगावत की है। इनमें से कई बतौर निर्दलीय या फिर दूसरी पार्टी ने चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इनमें से एक दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर यह बागी प्रत्याशी भाजपा-कांग्रेस के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरने वाले कई नेताओं ने भाजपा-कांग्रेस के आंकड़ों को गड़बड़ा दिया था। कई सीटों पर निर्दलीय बागी जीतकर भी आए। कमोवेश ऐसी ही स्थिति मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी दिखाई दे रही है। टिकट न मिलने से नाराज होकर बगावत का रास्ता चुनने वाले 39 नेताओं को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया है। इसी तरह भाजपा ने भी 35 नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है। यह नेता अब चुनावी मैदान में हैं…कोई निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है, तो कोई सपा, बसपा और आप जैसी पार्टियों से चुनाव मैदान में है। माना जा रहा है कि करीब एक दर्जन से ज्यादा नेता भाजपा-कांग्रेस को सीधे तौर से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
24 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला
प्रदेश के 5 करोड़ 60 लाख से ज्यादा मतदाता अपने मतदाधिकार का उपयोग कर सकेंगे। विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला है। हालांकि बागी और क्षेत्रीय दल भाजपा व कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकते हैं। कई बागियों ने बसपा, सपा, गोंगपा, आप जैसे दलों से हाथ मिलाकर भाजपा और कांग्रेस की परेशानी बढ़ा दी है। करीब 24 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है। कुछ बागी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। इन सीटों पर मुकाबला रोचक हो गया है। भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव में संभावित नुकसान को देखते हुए बागियों को मनाने के लिए भरपूर कोशिश की, लेकिन कुछ बागियों को मनाने में पार्टियां सफल नहीं हो पाई। इनमें से कई बागियों का विधानसभा क्षेत्र में अच्छा होल्ड है और उन्हें जनता का समर्थन भी मिल रहा है। विंध्य अंचल में आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है। बागियों के मैदान में उतरने से किस दल को कितना नुकसान होता है, यह 3 दिसंबर को सामने आएगा।
ग्वालियर-चंबल अंचल की बात करें तो लहार से भाजपा के बागी रसाल सिंह बसपा, अटेर से मुन्ना सिंह भदौरिया सपा, भिंड से संजीव सिंह कुशवाह बसपा, मुरैना से राकेश सिंह बसपा और चाचौड़ा से ममता मीणा आप के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। कमोबेश यही हालात कांग्रेस के बागियों के हैं। इनमें सुमावली से कुलदीप सिकरवार आप से और पोहरी से प्रद्युमन वर्मा बसपा से चुनाव मैदान में हैं। दिमनी में बलवीर डंडोतिया बसपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। ऐसे ही बुंदेलखंड के जतारा में कांग्रेस से बागी धर्मेंद्र अहिरवार (बसपा) और बंडा में भाजपा के बागी सुधीर यादव (आप) ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। टीकमगढ़ में भाजपा के बागी केके श्रीवास्तव निर्दलीय ने मुकाबला रोचक बना दिया है। महाकौशल में बिछिया से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कमलेश टेकाम ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया, तो डिंडोरी पूर्व कांग्रेस नेता रुद्रेश परस्ते निर्दलीय मैदान में हैं। ऐसे ही विंध्य में जयसिंहनगर, नागौद, सतना, सिरमौर, जैतपुर, कोतमा, सीधी, निमाड़ में बुरहानपुर, मालवा में मल्हारगढ़, महू, मध्य क्षेत्र में होशंगाबाद, भोपाल उत्तर सीट पर बागियों ने चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है।
2018 के आंकड़ों ने डराया
2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरने वाले कई नेताओं ने भाजपा-कांग्रेस के आंकड़ों को गड़बड़ा दिया था। कई सीटों पर निर्दलीय बागी जीतकर भी आए। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त करीब 81 सीटों पर ऐसा हालात पैदा हुए थे। यहां भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत का खेल बिगाड़ दिया था। इन अन्य पार्टी या उम्मीदवारों ने इतने वोट लिए कि प्रमुख पार्टियों के बीच हार-जीत का गणित बिगड़ गया। दरअसल, 2018 के चुनाव में इन सीटों के विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसी फंसी हुई सीटों पर हार-जीत अनिश्चित है। ऐसी फंसी हुए चुनावों में पार्टी को सीट बचाना मुश्किल होता है। पिछली 81 सीटों में 55 की थी, इनमें से भाजपा करीब 53 फीसदी सीट ही बचा सकी। यानी कूल 26 सीटें ही भाजपा दोबारा जीत सकी। 29 सीट गंवा दी थी। हालांकि 13 नई सीटों भी जीती। इसी तरह कांग्रेस की इन 81 सीटें में से 22 सीटें थी, जिनमें 9 सीट बचा सकी, 13 सीटें गंवा दी। इसमें बसपा के दो विधायक, 4 निर्दलीय और 1 सपा उम्मीदवार इन्हीं 81 सीटों को जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस विधानसभा चुनाव में बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे करीब 40 प्रत्याशी भाजपा-कांग्रेस की जीत-हार का गणित बिगाड़ सकते हैं। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि करीब 40 बागी उम्मीदवार ऐसे मैदान में हैं, जो दमदार हैं और वोट काटने की क्षमता रखते हैं। यदि इन्होंने 4 हजार वोट ही काट लिए तो नुकसान उसे होगा, जिसके वह बागी है। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो बागी प्रत्याशी कांग्रेस के ज्यादा हैं। इस बार चुनाव पार्टी की विचारधारा, घोषणाओं के अलावा स्थानीय उम्मीदवार और बागी पर केन्द्रित होता रहा है।
विनोद/ 17 नवम्बर 23