स्वतंत्र समय, सतना
कभी-कभी ऐसी स्थिति सामने आ जाती है कि निर्णय लेने में सिर्फ औपचारिकता निभानी पड़ती है यही हाल बीजेपी के सीट से लोगों के सामने था जानते हुए भी निर्णय लिया गया। काफी मंथन के बाद वही नाम सामने आए जिन पर कयास लगाए जा रहे थे। पहले बात कर रहे हैं रैगांव विधानसभा की सुरक्षित सीट का जहां पर स्थिति स्पष्ट हो चुकी है भाजपा से प्रतिमा बागरी कांग्रेस से कल्पना वर्मा सिटिंग विधायक बहुजन से देवराज बागरी के अलावा अन्य दलों के प्रत्याशी भी हाथ पांव मारेंगे।
कल्पना की शैली से सामान्य मतदाताओं में बढ़ा भरोसा
महज 2 साल के कार्यकाल में वर्तमान विधायक कल्पना वर्मा ने सजातीय मतदाताओं का भरोसा पहले ही जीत लिया था लेकिन इन दो वर्षों में कल्पना वर्मा ने सामान्य वर्ग के मतदाताओं में अच्छी पकड़ मजबूत की है। इसके अलावा समूचे विधानसभा क्षेत्र में 2 साल से सक्रिय है विपक्ष में रहने के बावजूद क्षेत्र की जनता को निराश नहीं किया वहीं भाजपा प्रत्याशी जनमानस से दूर रहे इसका खामियाजा घटना पड़ सकता है ।
हाथी को कम आंकना पड़ सकता है महंगा
रैगांव विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर एससी एसटी ही वोटर है माना जा रहा है कि जिस तरह रुझान सामान्य मतदाताओं का हुआ वही समरजीत लेता है हम बात कर रहे हैं बसपा के उम्मीदवार देवराज अहिरवार की जिसने विगत 6 महीने पहले अपनी सीट सुरक्षित कर ली थी और क्षेत्र में सक्रिय रहे सिंबल भी कमजोर नहीं है लिहाजा आने वाले परिणाम कुछ भी कह सकते हैं क्षेत्र के राजनीतिक कर बताते हैं कि इस चुनाव में एससी एसटी मतदाता यह सोच रहा है कि सरकार किसकी बनने वाली है यह स्पष्ट है कि कांग्रेस व भाजपा की ही सरकार बनेगी ऐसे में कुछ भी स्पष्ट है कि बसपा अगर जीत हासिल करती है तो कांग्रेस में ही शामिल होगी क्योंकि इंडिया गठबंधन है। बहरहाल अब देखना यह है कि भाजपा प्रत्याशी अपने ही कार्यकर्ताओं से बच पाती है या फिर घिरने वाली है।
क्या कहते हैं राजनीति के विश्लेषक
रैगांव विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का ज्यादा दबदबा रहा है यहां से स्वर्गीय जुगल किशोर बागरी को ज्यादा पसंद किया गया था लेकिन वर्तमान स्थिति में बात बहुत अलग हो गई है सुरक्षित सीट पर चुनाव में जीत करना आसान नहीं क्योंकि बसपा कांग्रेस व भाजपा के रास्ते में जातीय समीकरण को लेकर खड़ी है यह बात अलग है कि बसपा के कट्टर मतदाता भी यह जान चुके हैं की बहन मायावती चुनाव के समय सिर्फ अपना उल्लू सीधा करती लिहाजा स्थानीय प्रत्याशी के प्रभाव पर ही कुछ उलट फेर की गुंजाइश हो सकती है वहीं कांग्रेस की वर्तमान विधायक कल्पना वर्मा ने अपने 2 साल समूची विधानसभा में सक्रिय रही जबकि चुनाव हारने के बाद प्रतिभा बागरी ने क्षेत्र का भ्रमण नहीं किया।
इधर अमरपाटन की नब्ज राजनीतिक डॉक्टरों को नहीं मिल रही
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अमरपाटन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस से मुकाबला सिर्फ रामखेलावन पटेल ही ले सकते है इसका सबसे बड़ा कारण है कि ब्राह्मण बहुल क्षेत्र होने के बावजूद किसी नेता ने अपनी जमीन नहीं बनाई इसके बावजूद रामखेलावन पटेल का विरोध होने पर भी दिल्ली से टिकट क्यों फाइनल हुई प्रतिष्ठापूर्ण सीट में रामखेलावन पटेल के अलावा कोई दमदार प्रत्याशी नहीं मिला लिहाजा भाजपा शीर्ष को रामखेलावन पटेल पर ही मोहर लगानी पड़ी आखिर क्यों अमरपाटन विधानसभा के सबसे चर्चित चेहरे अरुण द्विवेदी हरिशकांत त्रिपाठी दल बदल वाले धर्मेंद्र सिंह तिवारी के अलावा सुष्मिता सिंह परिहार सामने थी सबके रिज्यूम पर मंथन किया गया लेकिन कांग्रेस के सामने सभी कमजोर नजर आए बहरहाल हम कांग्रेस भाजपा व बसपा की बात कर रहे हैं इस पूरे चुनाव में दादा भाई शीर्ष पर है परंतु पिछले चुनाव की शर्त पर अगर पार्टी के लोगों ने रामखेलावन का साथ दिया तो परिणाम कुछ भी हो सकता है लेकिन रामखेलावन पर जातिगत राजनीति करने का गंदा आरोप लगा है लिहाजा बसपा को भी काम नहीं आता जा सकता क्योंकि छंगेलाल कोल का भी प्रभाव काम नहीं है अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है।