स्वतंत्र समय, इंदौर
कमजोर प्रदर्शन पर बेहतर प्रदर्शन करने की रणनीति के तहत इस सीट पर करीब डेढ़ महीने पहले भाजपा ने अपने उम्मीदवार की घोषणा की थी। आलाकमान को अपने ही प्रत्याशी ताराचंद गोयल की ऐसी लानत-मलानत की उम्मीद नहीं थी कि उसे पार्टी पदाधिकारी ही जंग लगा सरिया बताने लगे। भाजपा कार्यकर्ताओं ने यहां चुनाव का हाल हवाल देखने आई गुजरात की विधायकों की टीम पर भी नाराजगी जताकर प्रत्याशी बदलने की मांग की है। दरअसल, ताराचंद गोयल 2003 में विधायक रह चुके हैं और उन्होंने उस समय उन्होंने कांग्रेस के बाबूलाल मालवीय को करीब 13 हजार वोटों से हराया था। बाबूलाल मालवीय 1998 में कांग्रेस के विधायक थे। पार्टी ने उन्हें 25 साल पुराने प्रदर्शन के आधार पर टिकट थमाकर वर्तमान में अपने पदाधिकारियों की नाराजगी मोल ले ली है। वहीं कांग्रेस को अपने मौजूदा विधायक महेश परमार पर भरोसा है। संभव है वे पार्टी के लिए इस रण में फिर तारणहार बनें। उज्जैन जिले के तराना विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार महेश परमार ने 2018 में जीत हासिल की थी। परमार ने भाजपा के अनिल फिरोजिया को 2 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। पूर्व सीएम कमलनाथ के खास होने की वजह से इस बार भी महेश परमार को दोबारा यहां से मौका मिल सकता है।
तराना सीट पर कांग्रेस ने खोला था खाता
उज्जैन जिले की 7 विधानसभा सीटों में से एक तराना विधानसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1962 में हुआ था। पहला चुनाव का कांग्रेस के माधव सिंह ने 8 हजार 104 वोटों के अंतर से जीता था। 1962 से लेकर अभी तक 13 विधानसभा चुनाव हुए हैं, इसमें 7 विधानसभा चुनाव भाजपा और 6 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। तराना सीट पर 1990 से 7 विधानसभा चुनाव में से 5 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां बाजी मारी है। भाजपा ने 1990, 1993, 2003, 2008, 2013 के विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल की है। जबकि कांग्रेस ने इन 7 चुनाव में सिर्फ 2 बार यानि 1998 और 2018 का विधानसभा चुनाव जीता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के महेश परमार ने बीजेपी के पूर्व विधायक अनिल फिरोजिया को 2209 वोटों से हराया था।
परमार ने खत्म किया था 20 साल का सूखा
भाजपा ने दिग्वियसिंह के नेतृत्व में भी इस सीट पर जीत हासिल की थी। 1993 में भी भाजपाई उम्मीदवार माधव प्रसाद शास्त्री ने यहां जीत हासिल की थी। 1998 में जरूर कांग्रेस उम्मीदवार बाबूलाल मालवीय जीतने में कामयाब रहे थे। वहीं इसके बाद 2003, 2008 और 2013 में भाजपा ने तराना में जीत की हैटट्रिक लगाकर कांग्रेस की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया था। 2018 में नजदीकी मुकाबले में महेश परमार ने भाजपा के दिग्गज अनिल फिरोजिया का रथ थाम लिया।
ये थे दावेदार, जिन्हें मिली मायूसी
बीजेपी की ओर से तराना विधानसभा सीट से सबसे मजबूत दावा पिछली बार के पराजित उम्मीदवार अनिल फिरोजिया का था। वे पराजय के बाद भी क्षेत्र में पांच साल सक्रिय रहे। वहीं फिरोजिया उज्जैन-आलोट सीट से मौजूदा समय में सांसद हैं। फिरोजिया ने 2013 के चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय को करीब 16 हजार वोटों से पराजित किया था। इसके अलावा लक्ष्मी नारायण मालवीय भी इस सीट से दावेदार थे। नारायण का दबदबा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त माना जाता है। वहीं मदन लाल चौहान, शक्ति सिंह परिहार को भी टिकट के दावेदार के रूप में भाजपाई विश्लेषक मान रहे थे।
कांग्रेस परमार को कर सकती है रिपीट
महेश परमार विधायक बनने से पहले उज्जैन जिला पंचायत के तीन बार सदस्य और एक बार अध्यक्ष रह चुके हैं, इसलिए तराना विधानसभा से महेश परमार को पार्टी फिर चुनाव मैदान में उतार सकती है। इसके पूर्व तराना से कांग्रेस विधायक महेश परमार को नगरीय निकाय चुनाव में उज्जैन से महापौर पद के लिए कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा था। हालांकि जीत उन्हें नसीब नहीं हुई। हार की बड़ी वजह पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी बताई जाती है। बताया जाता है कि उज्जैन के बड़े कांग्रेस नेताओं ने अधूरे मन से चुनाव में काम किया।
इस समाज का सबसे ज्यादा असर
तराना विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर बलाई और गुज्जर समाज का प्रभाव देखने को मिलता है। इस सीट पर कुल मतदाताओं की तादाद 184529 है। दोनों ही समाज के वोट किसी भी पार्टी के जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गोयल के खिलाफ वीडियो भी वायरल
तराना जिले में बीजेपी प्रत्याशी ताराचंद गोयल को टिकट मिलने से नाराज कार्यकर्ताओं के बगावती सुर गुजरात के विधायकों को सुनने को मिले। इसका वीडियो भी वायरल हुआ। गुजरात से तराना पहुंचे विधायक कल्पेश भाई परमार फीडबैक लेने आए तो पदाधिकारियों ने कहा कि पिछली बार 3 हजार वोट से हारे थे। इस बार 10 हजार वोट से बीजेपी हारेगी। कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ताराचंद गोयल को टिकट दिया, लेकिन सब नया चेहरा लाना चाहते थे। पूर्व विधायक अनिल फिरोजिया भी अच्छे कैंडिडेट थे, लेकिन नए चेहरा लाना था जैसे मदन लाल चौहान, शक्ति सिंह परिहार, लक्ष्मी नारायण मालवीय किसी को भी देना था सभी सक्रिय नेता थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं नहीं दिया गया। पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष रहे मदन लाल चौहान को इस बार तराना विधानसभा सीट का प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। उन्होंने बताया कि विरोध इस बात का था कि भारतीय जनता पार्टी में जो लोग काम कर रहे हैं, उन्हें पद नहीं मिल रहा है, 15 वर्ष से घर बैठे कार्यकर्ता को टिकट दे दिया गया। इसका विरोध था हमने अपनी बात रखी है। जंग लगे सरिये को मार्केट में ला रहे हो कौन लेगा।