‘मजबूत’ सीट पर जीत की कोशिश में हार का ‘अंतर’ कम करने की चुनौती

स्वतंत्र समय, इंदौर

इंदौर की विधानसभा क्रमांक दो पिछली कई बार से भारतीय जनता पार्टी के गढ़ के रूप में पहचानी जाती है। श्रमिक क्षेत्र में कभी कांग्रेस इस सीट पर अग्रणी थी लेकिन पहले कैलाश विजयवर्गीय और अब रमेश मेंदोला ने इस सीट पर तगड़ी पकड़ बना ली है। भोजन, भंडारे के साथ दादा दयालु के रूप में जनता में अपनी छवि बनाने वाले रमेश मेंदोला के सामने कांग्रेसी चिंटू चौकसे की चुनौती इस बार सामने है। नगर निगम चुनाव में अपना दम दिखाने वाले चौकसे के सामने जीत से ज्यादा हार के अंतर को कम करने की चुनौती देखी जा रही है।

इस सीट के इतिहास को देखें तो आरंभ में यह सीट कांग्रेस के पास थी। इस सीट पर कम्युनिस्ट्स का भी काफी दबदबा था, हालांकि वो चुनाव नहीं जीत सके। आरंभ के चार बार कांग्रेस ने यह सीट जीती थी। 1990 में आखिरी बार सुरेश सेठ ने यह सीट जीती थी। उसके बाद तीन बार कैलाश विजयवर्गीय इस सीट पर चुने गए। 1993, 1998 और 2003 में विजयवर्गीय ने इस सीट को जीता। उसके बाद अंतिम तीन चुनाव से रमेश मेंदोला यहां से चुनाव जीत रहे है। शहर में विधानसभा क्रमांक चार और दो को ही भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है। मजेदार बात यह है कि विधानसभा दो के नतीजों में अब कांग्रेस की जीत से ज्यादा जीत का अंतर कम करने की ओर देखा जाता है।

तीन बार से जीत रहे हैं मेंदोला

विजयवर्गीय के खास माने जाने वाले रमेश मेंदोला को पार्टी ने 2008, 2013 और 2018 में टिकट दिया। मेंदोला ने ये सीट 40 हजार, 91 हजार और 71 हजार के बड़े अंतर से जीती। 2018 में इंदौर-2 में कुल 64 प्रतिशत वोट पड़े थे। भाजपा रमेश मेंदोला ने कांग्रेस के मोहन सिंह सेंगर को 71066 वोट के अंतर से हराया था। 2013 में मेंदोला ने कांग्रेस के छोटू शुक्ला को 91017 वोट के बड़े अंतर से हराकर रिकॉर्ड बनाया था। पहली बार मेंदोला 2008 में दिग्गज कांग्रेसी नेता माने जाने वाले सुरेश सेठ के खिलाफ चुनाव लड़े थे और जीत का अंतर 39937 रहा था। भाजपा ने एक बार फिर यानी चौथी बार रमेश मेंदोला को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने चिंटू चौकसे को चुनाव में उतारा है। इस सीट पर अन्य पार्टियों के प्रत्याशी भी चुनाव लड़ते हैं लेकिन उनकी उपस्थिति मात्र ही होती है। वो वोट प्रतिशत का एक प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाते हैं।

कांग्रेस लगा रही जोर

पहले मुकाबला एकतरफा माना जा रहा था। चूंकि पिछली बार के चुनाव में मेंदोला की जीत का अंतर कम हुआ था, इसके बाद से ही कांग्रेस और चिंटू चौकसे यहां पर लगातार सक्रिय है। इसका उदाहरण पिछला नगर निगम चुनाव रहा, जहां पर पहली बार कांग्रेस के तीन पार्षद जीतकर निगम में पहुंचे। विजयवर्गीय और मेंदोला के खास कहे जाने वाले चंदू शिंदे तक चुनाव हार गए। इससे कांग्रेसियों का हौंसला थोड़ा बड़ा है। कांग्रेस ने चिंटू चौकसे को पार्षद का चुनाव जीतने के बाद से ही विधानसभा प्रत्याशी घोषित कर दिया था। उसके बाद से ही वो जिस तरह से पिछले कई महीनों से तैयारी कर रहे हैं, इस बार हार का अंतर कम हो सकता है। यह अंतर 2008 के चुनावों के समान भी हो सकता है।

मिल क्षेत्र में दलितों के साथ वाल्मीकि, वैश्य, ब्राह्मण भी

यह सीट मिल क्षेत्र में आती है। मालवा मिल, पाटनीपुरा, नंदानगर, एमआईजी, एचआईजी जैसे इलाके इस सीट के अंतर्गत आते हैं, जिसमें मिल से जुड़े लोग रहते हैं। यहां दलित वर्ग बड़ी संख्या में है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं वाल्मिकि, वैश्य और ब्राह्मण समाज भी बराबर संख्या में है जो नेताओं के भविष्य का फैसला करते हैं। यह इलाका किसी जमाने में इंदौर की पहचान यानी मिल के नाम से पहचाना जाता है। यहां पर देश की नामी कपड़ा मिले हुआ करती थी, जो अब केवल इतिहास है। 1990 का साल आते-आते मिलों नें दम तोड़ दिया। इसके बाद बेरोजगारी एक बडा मुद्दा बनकर उभरा। इस सीट पर अधिकतर मजदूर तबका रहता है।

कौन-कौन हैं मैदान में?

चिंटू चौकसे               कांग्रेस

रमेश मेंदोला             बीजेपी

धर्मदास अहिरवार        बसपा

महेश गरूजे             जनहित पार्टी

प्रमोद नामदवे           सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया

निर्दलीय                भूपेंद्र तिवारी और राजा चौधरी

इस सीट पर कब-कौन जीता?

1977       योग्यदत्त शर्मा              कांग्रेस

1980       कन्हैयालाल यादव       कांग्रेस

1985       कन्हैयालाल यादव       कांग्रेस

1990       सुरेश सेठ                कांग्रेस

1993       कैलाश विजयवर्गीय     भाजपा

1998       कैलाश विजयवर्गीय     भाजपा

2003       कैलाश विजयवर्गीय    भाजपा

2008       रमेश मेंदोला           भाजपा

2013       रमेश मेंदोला           भाजपा

2018       रमेश मेंदोला          भाजपा