मतदान के बाद अटकीं भाजपा कांग्रेस के दिग्गजों की सांसें

स्वतंत्र समय, भोपाल

मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजे ने भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। ये भाजपा के लिए पहला रेड फ्लैग था। इसके बाद भाजपा ने जोड़तोड़ की राजनीति से सत्ता हासिल करने में सफल पाई, लेकिन कहीं ना कहीं इन नतीजों ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया। यही वजह है कि विधानसभा 2023 में सबसे कमजोर मानी गई सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने स्थानीय नेता या दावेदारों की बजाय एक राष्ट्रीय पदाधिकारी के अलावा 7 सांसदों को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतार दिया है। जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, लेकिन ये चुनाव ऐसे हुए कि इन दिग्गजों की भी जान अपनी सीट पर अटकी नजर आ रही है। उधर, कांग्रेस खेमे में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री पीसी शर्मा की सीट भी संकट में बताई जा रही है।

दिमनी से नरेंद्र सिंह तोमर

मुरैना की दिमनी विधानसभा सीट से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भाजपा ने चुनाव में उतारा है, उम्मीद थी कि वे आसानी से चुनाव जीत लेंगे क्योंकि वे इस क्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं, उनके सामने कांग्रेस ने विधायक रवींद्र सिंह भिड़ोसा को टिकट दिया है। दोनों ही प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव जीतना कांटे की टक्कर है। जहां केंद्रीय मंत्री के आगे कांग्रेस प्रत्याशी  कमजोर माने जा रहे हैं, लेकिन दिमनी क्षेत्र में जनता नरेंद्र सिंह से कुछ-कुछ नाराज भी बताई जा रही है। भाजपा की ओर से प्रत्याशी घोषित होने के काफी समय तक नरेंद्र सिंह जनता के बीच तक नहीं पहुंचे थे। उन्होंने नामांकन से पहले हुई सीएम के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान पहली सभा की थी। यहां जनता इस बात से नाराज है कि सांसद होने के बावजूद उन्होंने इस क्षेत्र में विकास पर ध्यान नहीं दिया। उनके पैतृक गांव उरेठी में भी जनता में नाराजगी है। वही हाल ही में उनके बेटे रामू तोमर के करोड़ों के लेनदेन को लेकर बातचीत के एक के बाद एक तीन वीडियो वायरल हुए। जिन्होंने राजनीतिक छवि पर असर डाला है। इसका असर भी चुनाव के नतीजों पर देखने को मिल सकता है। ऐसे में इस सीट पर अब केंद्रीय मंत्री की सांसे अटकी हुई हैं।

निवास से फग्गन सिंह कुलस्ते

मण्डला जिले की निवास सीट पर इस बार चुनाव कांटे की टक्कर का है। कांग्रेस के प्रभाव वाली इस सीट पर जहां कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ आदिवासी नेता चैन सिंह वरकड़े को टिकट दिया है, तो वहीं भाजपा ने इस सीट पर हर हाल में कब्जा करने की उम्मीद में केंद्रीय राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्तेे मैदान में उतारा हैं। वैसे 2018 के पहले तीन बार से भाजपा का कब्जा था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट को हथिया लिया है। फग्गन सिंह कुलस्ते के छोटे भाई जो इस सीट पर भाजपा के प्रत्याशी थे 30 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। हालांकि इस बार केंद्रीय मंत्री कुलस्ते की स्थिति इस सीट पर मजबूत मानी जा रही हैं, क्योंकि अपने केंद्रीय मंत्री रहते उन्होंने क्षेत्र के औद्यौगिक विकास पर काफी ध्यान दिया। जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलने की पूरी उम्मीद है। वे इससे पहले 1990 में विधायक बने थे और 2023 में दूसरी बार विधानसभा लड़ रहे हैं।

नरसिंहपुर से प्रहलाद पटेल

केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को भाजपा  ने नरसिंहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया है। यहां से कांग्रेस ने लाखन सिंह को उम्मीदवार बनाया है। नरसिंहपुर विधानसभा सीट के वर्तमान समीकरण भाजपा के पक्ष में 70 प्रतिशत और कांग्रेस के लिए 30 प्रतिशत माने जा रहे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में भाजपा समर्थित जनसमुदाय अधिक है। लेकिन इस क्षेत्र में भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में अंदरूनी विरोध भी देखा जा रहा है, जो गणित प्रभावित कर सकता है। नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक भाजपा पदाधिकारी का कहना है अगर पार्टी बड़े क्षत्रपों को विधानसभा जैसे अपेक्षाकृत छोटे चुनाव में उतारेगी तो नये दावेदारों को मौका कैसे मिलेगा। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी लाखन सिंह लगातार क्षेत्र में पैठ बना रहे हैं। ऐसे में इस बार नरसिंहपुर का चुनाव भी कांटे की टक्कर का हुआ माना जा सकता है।

लहार से डॉ. गोविंद सिंह

मध्य प्रदेश की लहार सीट कांग्रेस का अभेद किला माना जाता है। यहां से नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह पिछले 33 वर्षों से विधायक हैं। 1990 में जनता दल और इसके बाद 1993 में कांग्रेस से जीते डॉ गोविंद सिंह अब तक 7 बार से लगातार विधायक हैं। इतने वर्षों में भाजपा यहां चुनाव नहीं जीत सकी, लेकिन इस बार पूरी रणनीति के तहत नेता प्रतिपक्ष को भारतीय जनता पार्टी ने घेर लिया है। यहां से उनके खिलाफ ब्राह्मण चेहरे अम्बरीश शर्मा को टिकट दिया है। पहले ही डॉ गोविंद सिंह से क्षेत्र का ब्राह्मण वोटर नाराज है। वहीं उनका वैश्य और राजपूत समाज भी उनकी कार्यप्रणाली से खुश नहीं बताया जा रहा है। भाजपा के पूर्व विधायक रसाल सिंह भी इस बार लहार से बसपा के टिकट पर मैदान में हैं और वे एक बड़ा वोट बैंक अपने साथ रखते हैं। ऐसे में इस बार मामला त्रिकोणीय माना जा रहा है। साथ-साथ ही दो हफ्तों पहले चुनाव में उनका एक विवादित ऑडियो भी वायरल हुआ है। जिसने उनकी छवि पर असर डाला है। ऐसे में इस चुनाव ने नेता प्रतिपक्ष की नींद उड़ा रखी है।

गाडरवाड़ा से उदय प्रताप सिंह

गाडरवाड़ा विधानसभा सीट पर भाजपा ने भले ही सांसद उदय प्रताप सिंह को मैदान में उतार दिया हो, लेकिन इस विधानसभा सीट पर चुनाव में कांटे की टक्कर है, क्योंकि यहां कांग्रेस ने सुनीता पटेल को टिकट दिया है। वहीं पूर्व विधायक गोविंद पटेल के बेटे गौतम सिंह पटेल भाजपा छोड़ कांग्रेस में गये थे, लेकिन टिकट नहीं मिला था। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन कर दिया। वहीं सांसद उदय प्रताप सिंह की बात करें तो इस चुनाव में वे संकट का सामना करते हुए माने जा रहे हैं। इस सीट पर भी भाजपा-कांग्रेस में टक्कर मानी जा रही है। जीत हार का अंतर भी पांच-सात हजार वोटों के आसपास हो सकता है।

सीधी से रीति पाठक

मध्यप्रदेश की सीधी विधानसभा सीट में चुनाव इस बार सीधा नहीं है। विधानसभा चुनाव में इस बार सिटिंग विधायक की बजाय भाजपा ने सांसद रीति पाठक को प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने ज्ञान सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, लेकिन भाजपा का मुकाबला अपने ही निष्कासित विधायक केदारनाथ शुक्ला से है। जो निर्दलीय चुनाव में उतरे हैं और भाजपा के लिये मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया है। हालांकि अब यह चुनाव विकास का नहीं बल्कि जनता के बीच वर्चस्व का है। ऊपर से पहले ही सीधी में हुए पेशाब कांड  ने इस क्षेत्र में भाजपा की हवा खराब कर रखी है। मामला भले ही निपट गया हो, लेकिन यह सीट जीतना भाजपा के लिये किसी चुनौती से कम नहीं है। इस वजह से ये जिम्मेदारी रीति पाठक को दी गई है। लेकिन चुनाव के आखिर में केदार शुक्ला ने भाजपा प्रत्याशी को सीधी कांड का मास्टर माइंड बता कर मुसीबत को और बढ़ा दिया है। ऐसे में अब चुनाव परिणाम क्या होगा, यह वक्त ही बताएगा।

जबलपुर पश्चिम में राकेश सिंह

जबलपुर पश्चिम सीट पर कांग्रेस के तरुण भनौट दो बार लगातार चुनाव जीतने के बाद खुद को मजबूत उम्मीदवार के रूप में स्थापित कर चुके हैं। ऐसे में भाजपा के पास इस सीट पर कोई बेहतर विकल्प नहीं होने से सांसद राकेश सिंह को मैदान में प्रत्याशी बनाकर उतारा गया है। 2004 में पहली बार राकेश सिंह जबलपुर लोकसभा से जीत कर सांसद बने। इसके बाद 2009, 2014 और 2018 में भी सांसद चुने गये हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव वे पहली बार लड़ रहे हैं। हालांकि यह चुनाव जीतना उनके लिए भी आसान नहीं है, क्योंकि सांसद रहते हुए उनकी इस विधानसभा सीट पर उतनी सक्रियता नहीं रही, जितनी विधायक तरुण भनौट की। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के बीच यहां भी कांटे की टक्कर है।