एजेंसी, लखनऊ
एक जज का शायद यही काम होता है कि वो बिना भेदभाव करें अपराधी को सजा दिलवाकर जिसके साथ भी अपराध हुआ है उसे न्याय दिलवाए, लेकिन आपने कभी सोचा है कि जो खुद दूसरों को न्याय देता है अगर उसके खिलाफ कोई अन्याय करे तो उसको कौन न्याय दिलाएगा? आखिर न्याय देने वाले को भी न्याय मिलने का भी अधिकार है। अगर न्याय वाला ही खुद के लिए ही न्याय नहीं मिल पाया तो जनता को कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा अपने हक़ के न्याय के लिए। मामला है उत्तरप्रदेश के बांदा जिले का, यहां तैनात महिला जज अर्पिता साहू ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम लेटर लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। इस लेटर में उनके साथ हुए शोषण के बारे में बताते हुए कहा है कि लोगों की सेवा करुंगी, ये सोचकर मैंने सिविल सेवा जॉइन की थी मगर मेरे साथ ही अन्याय हो रहा है। मुझे क्या पता था कि मैं जिस दरवाजे पर जाउंगी मुझे जल्द ही न्याय के लिए भिखारी बना दिया जाएगा,अब मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है, कृपया मुझे मेरी जिंदगी सम्मानजनक तरीके से खत्म करने की अनुमति दें। लेटर में अर्पिता साहू ये भी बताती है कि उनके साथ शारीरिक शोषण हुआ है और उन्हें रात को जिला जज से मिलने के लिए भी कहा गया था।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ लेटर
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को महिला जज, अर्पिता साहू द्वारा लिखा गया ये लेटर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। इस लेटर के वायरल होते ही सोशल मीडिया के माध्यम से सैकड़ों लोग अर्पिता साहू के लिए न्याय की गुहार लगा रहे हैं। इसके अलावा इस लेटर के वायरल होने के बाद कई लोग न्यायिका के सिस्टम पर भी सवाल उठाते हुए नजऱ आए।
बाराबंकी में पिछले साल हुआ था शोषण
महिला जज द्वारा लिखे गए पात्र के अनुसार उनके साथ शोषण 7 अक्टूबर 2022 को हुआ था। वे लेटर में बताती है कि उस दिन बाराबंकी जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य के भविष्कार का प्रस्ताव पारित कर रहा था तब वे सुबह 10 बजे अदालत में काम कर रही थीं उस समय बार एसोसिएशन के महामंत्री और वरिष्ठ उपाध्य कई वकीलों के साथ कोर्ट कक्ष में घुस गए और उनके साथ बदसलूकी करते हुए गाली गलौज शुरू कर दी और कमरे की बिजली भी बंद करने के बाद वकीलों को जबरदस्ती बाहर निकला गया और भरी कोर्ट में उन्हें अपमानित भी किया गया। पत्र के माध्यम से अर्पिता ये भी बताती है की पीओएसएच ( कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडऩ) एक्ट के इस गंभीर मामले में उन्हें सुनवाई लिए मात्र 8 सेकंड का समय दिया गया और उन्होंने इस पुरे मामले को लेकर एक याचिका भी दायर की थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया है और जब उन्होंने इस मामले की शिकायत की तो उसको 6 महीने बाद स्वीकारा गया जबकि ये 3 महीने भी हो सकता था।