स्वतंत्र समय, इंदौर
अब न तो स्मार्ट सिटी इंदौर में गरबे हो रहे हैं, न त्योहारी खरीदारी और न ही चुनावी सभाओं और रैलियों का जोर-शोर। इसके बावजूद शनिवार को जवाहर मार्ग और एमजी रोड पर दो किलोमीटर लंबा जाम लग गया। दिल्ली घूमकर आया कोई भी बंदा इसे देखकर कहेगा कि यह इंदौर है या दिल्ली। अच्छी बात यह है कि इतने बुरे हाल दिल्ली के भी नहीं हैं क्योंकि वहां पर उंगली पर गिनवाने वाले फ्लाईओवर नहीं बल्कि सैकड़ों फलाईओवर हैं जो देश के वीवीआईपी का दबाव झेलकर दिल्ली के यातायात को सुचारु बनाए रखते हैं। शनिवार को वीकेंड जाम ने अच्छे से अच्छे वाहन चालकों की हालत खस्ता कर दी। वहीं सांस के मरीज भी बेचैन हो उठे होंगे क्योंकि वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 227 रहा। कहना होगा कि सफाई में पूरे देश में कॉलर ऊंची कर हीरो बनने वाला इंदौर ट्रैफिक के मामले में जीरो है।
शनिवार को जवाहर मार्ग की ओर से आ रहे वाहन चालकों को नृसिंह बाजार के बाद गाडिय़ां चलाने में दिक्कत आने लगी। पिपली बाजार चौराहे तक पहुंचते-पहुंचते अंदाज लगाना मुश्किल था कि यह जाम कहां तक है। रोजाना वाहन चलाने वाले इसे यशवंत रोड और ज्यादा से ज्यादा नंदलालपुरा चौराहे तक की रेलपमेल समझ रहे थे। गाड़ी जैसे जैसे आगे बढ़ी, वाहन के साथ ही चालक का भी दम फूलने लगा। संजय सेतु की ओर मुड़े तो ऑटो से लेकर टू-व्हीलर और फोर व्हीलर वाले भी बोल पड़े कि ऐसा जाम तो न त्योहार में न चुनाव में लगा। संजय सेतु जैसे तैसे पार किया तो एमजी रोड पर भी पहले बार वाहन गुत्थमगुत्था नजर आए। यह राहत शास्त्री ब्रिज के आने तक रही।
जाम के चलते ऑटो का धंधा 50 फीसदी हुआ
ऑटो चालक वसीम भाई ने बताया कि अब शहर में ट्रैफिक की वजह से ऑटो वालों की कमाई आधी हो गई है। जाम की वजह से अब डबल टाइम पहुंचने में लग रहा है। वहीं कई बार जाम के चलते सवारियों को बैठाने से मना करना पड़ रहा है। ऐसे में ऑटो की कमाई मर रही है। अब यह पार्टटाइम काम रह गया है। वहीं हरि भाई कहते हैं कि ई रिक्शा से बहुत कॉम्पीटिशन मिल रही है। ये लोग आठ-दस किलोमीटर दूर की सवारी बैठा रहे हैं। प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है। इससे धंधा खराब हो रहा है।
इन वजहों से लग रहा जाम
- देश में वाहन घनत्व में सबसे आगे इंदौर। यहां करीब 18 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं।
- कई जगह महज 500 से भी कम मीटर पर दूसरा सिग्नल आ रहा है, यह स्थिति सबसे व्यस्त जवाहर मार्ग और एमजी रोड की।
- बेतरतीब वाहन पार्किंग से जाम। सडक़ का पार्किंग के रूप में इस्तेमाल खतरनाक रूप से बढ़ रहा
- शहर में कई सिग्नल 150 से 180 सेकंड तक।
- व्यस्त इलाकों में सिटी बस की एंट्री
इंदौर ट्रैफिक मैनेजमेंट में यहां हो रहा नाकाम
- इंदौर की हवा को साफ रखने के तीन साल में 193 करोड़ कर चुके है, लेकिन बदलाव खास नहीं हुआ।
- फ़्लाईओवर की कमी सुगम यातायात में बन रही परेशानी।
- सड़कों की चौड़ाई ज्यादा नहीं है, जबकि वाहनों की तादाद बहुत ज्यादा
- प्लानिंग की कमी, रीवर साइड और संजय सेतु पर सडक़ का इस्तेमाल वाहन पार्किंग के रूप में हो रहा है।
- गलियों, कॉलोनियों व सर्विस रोड के लिए शुरू हुए ई-रिक्शा अब लंबे रूट की सवारी ले रहे। वे सिटी बस, ऑटो, मैजिक, वैन का विकल्प बने।
- नगर निगम में एक हजार से ज्यादा डीजल वाहन डोर टू डोर कलेक्शन करते हैं। इनसे प्रदूषण भी फैल रहा है और व्यस्त समय में कचरा कलेक्शन से ट्रैफिक भी रुक रहा। कई कमर्शियल गाडिय़ां साइज में बहुत बड़ी हैं जिसके मोडऩे में बहुत दिक्कत होती है।
इन इलाकों में लंबा जाम
जवाहर मार्ग, नंदलालपुरा, एमजी रोड, सियागंज, राजवाड़ा, यशवंत रोड चौराहा, खजूरी बाजार, कपड़ा बाजार, मारोठिया, जूनी इंदौर, सुभाष मार्ग, रीवर साइड रोड, धार रोड, मालवा मिल, हाथी पाला मुख्य मार्ग, छावनी, सपना-संगीता रोड।
लगातार बढ़ रहा प्रदूषण
अब तो सरकारी आंकड़े भी कड़वा सच बयान करने लगे हैं। शनिवार को एक्यूआई का स्तर 227 रहा जो घातक श्रेणी में आता है। 2015-16 में पीएम-10 का स्तर 100 के करीब था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह अब 300 और उससे भी अधिक तक पहुंच गया है। प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। कुछ साल पहले तक, क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) मुख्य रूप से 60 वर्ष से ऊपर के लोगों में देखा जाता था, लेकिन अब कम उम्र में ही लोगों को यह समस्या होने लगी है।
बढ़ सकते हैं मरीज
क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों की संख्या में अभी और बढ़ोतरी हो सकती है। शहर में बड़ी संख्या में लोग क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी बीमारियों से पीडि़त हैं और त्योहार के दौरान प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के कारण यह संख्या तेजी से बढ़ेगी।
विशेषज्ञ की सलाह लें मरीज
जिन लोगों को लंबे समय से खांसी चल रही हो, उन्हें विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए। यह दमा के लक्षण हो सकते हैं। मौसम भी बदल रहा है और गाडिय़ों का प्रदूषण बढ़ रहा है। खासकर उन्हें जिन्हें कोई बीमारी हो। हर साल दीपावली के बाद मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।
– डॉ. मोईन अली, श्वसन रोग विशेषज्ञ