स्वतंत्र समय, भोपाल
अभा कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. रागिनी नायक ने गुुरुवार को मीडिया से चर्चा के माध्यम से मप्र की शिक्षा व्यवस्था और इससे जुड़े घोटालों को लेकर प्रदेश की शिवराज सरकार पर जमकर निशाना साधा। डॉ नायक ने कहा कि सही मायने में शिक्षा न केवल हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है, बल्कि घर, समाज, प्रदेश और देश की दशा व दिशा में अभूतपूर्व सुधार लाती है। पर जब मध्यप्रदेश के पात्र 95 लाख युवाओं में से 70 लाख उच्च शिक्षा से वंचित हों, स्कूलों में 98, 562 शिक्षकों के पद खाली हों तो प्रदेश के बच्चों को शिक्षा कौन देगा।
डॉ नायक ने कहा कि मप्र में 36,498 स्कूलों में बिजली नहीं, 95,102 स्कूलों में विज्ञान प्रयोगशाला नहीं, 35,491 स्कूलों में लायब्रेरी नहीं, तो मोदी और मामा दोनों बताएं कि देश और प्रदेश में अच्छे दिन कैसे आएंगे, सबका साथ सबका विकास कैसे होगा, 5 ट्रिलियन की एकानॉमी कैसे बनेगी, 4 लाख 2 हजार करोड़ का ऋण मप्र से कैसे उतरेगा, जब 21 तारीख को मोदी ग्वालियर में सिंधिया स्कूल आयेंगे, तब ये सवाल फिर पूछेंगे उनसे। डॉ रागिनी ने कहा कि छात्र-छात्राओं का सुनहरा भविष्य गढऩे का वादा जो तथाकथित मामा ने किया था – वो कितना खोखला है – ये मैं अब साक्ष्यों के सहारे साबित करती हूं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने यह दिए तथ्य
देश के शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के लिखित जबाव के अनुसार, मध्यप्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों के 98, 562 पद रिक्त हैं। शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा ने बताया कि मध्यप्रदेश के 17,085 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। एक शिक्षक वाले स्कूलों में देश में अव्वल नंबर होने की उपलब्धि मामा ने मध्यप्रदेश को दिला दी है। प्रदेश के 57 प्रतिशत स्कूलों में बिजली नहीं है। ‘बिंदास बोल’ एनजीओ के सर्वे के अनुसार शिवराज सिंह सरकार हर साल 8000 करोड़ रूपये आदिवासी बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद 40 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं जाते, ये बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। यूनेस्को की नो टीचर नो क्लास रिपोर्ट ये बताती है कि स्कूल स्तर पर बच्चों को उपलब्ध कराने में मध्यप्रदेश देश में सबसे पिछड़ा है। मप्र के केवल 11 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है, आज टेक्रो सेवी जमाने में ये हाल है। लोकसभा में 2022 में दी गयी जानकारी के अनुसार मप्र में 10,630 लड़कियों ने स्कूल छोड़ा है। 3127 स्कूलों में बच्चों के लिए टॉयलेट ही नहीं हैं। 2,762 गल्र्स स्कूलों में शौचालय इस्तेमाल करने लायक नहीं हैं। 1498 स्कूलों में क्लासरूम नहीं है। 19,465 स्कूलों में अत्यधिक क्षतिग्रस्त क्लासरूम हैं। 22,361 में कम क्षतिग्रस्त हैं। 1520 स्कूलों में पीने का पानी नहीं हैं। 95,102 स्कूलों में विज्ञान की प्रयोगशाला नहीं है। 32,541 स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है। 93,166 स्कूलों में दिव्यांग लडक़ों के लिए 94, 238 में दिव्यांग लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है।