संस्कार और अहंकार…सोशल मीडिया पर ऑस्ट्रेलिया की जमकर आलोचना

विपिन नीमा, इंदौर

एक इवेंट के दो अलग-अलग फोटो। एक फोटो है 1983 का और दूसरा  2023 का है । इन दोनों फोटो में  कोई खास अंतर नहीं है, केवल संस्कार का फर्क है। पहले फोटो में संस्कार  और दूसरे फोटो में अहंकार साफ झलक रहा है। जिस विश्व कप को जीतने के लिए विगत एक माह से भारत की जमी पर 10 देशों के खिलाड़ी पसीना बहा रहे थे, उस कप का एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर मिशेल मार्श ने खुलकर अपमान किया। यही कप जब 1983 (ट्राफी का स्वरूप बदला) में  भारत के पास आया था तब कप्तान कपिलदेव ने जीत की खुशी का इजहार करते हुए विश्व कप को ग्रहण करते ही सम्मान स्वरूप कप को अपने सिर पर बैठा लिया। यह है हमारे संस्कार और वो है उनके अहंकार। जानी मानी टीवी एंकर रुबिका लियाकत ने ट्वीट करते हुए  बहुत बढिय़ा बात लिखी-  उन्होंने लिखा है।

इसलिए तो भारत सबसे अलग है…

ये वो देश है, जहां कण-कण को पूजा जाता है-अगर गलती से किसी को हमारा पैर लग जाता है तो माफी मांगते हैं, उसे आदरपूर्वक छू कर माथे से लगाते हैं…. यहां न करनी में फर्क है न कथनी में यहां तो ग्रंथों में भी यही लिखा है …

॥ ईशा वास्यम मिदं सर्वम यत किंचियाम जगत्याम जगत॥ यानी ‘ईश्वर इस जग के कण-कण में विद्यमान हैं’

कपिल भारत की जीत को सर-आंखों पर रखते हैं, माथे पर सजाते हैं क्योंकि वो जिस माटी में पले-बढ़ें हैं, ये वहां के संस्कार हैं।

हमारी और उनकी संस्कृति

3 साल में एक बार आने वाले विश्व कप को जीतने के लिए खिलाडिय़ों को कितना मेहनत परिश्रम करना पड़ता है। टीम इंडिया ने भी बहुत कप को जीतने के लिए खूब परिश्रम  किया, लेकिन….। विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया ने भले ही विश्व कप जीत लिया हो और वह अपने देश में जश्न मना रहा हो  लेकिन, विश्व कप हाथ में आने के बाद ऑस्ट्रेलिया के मिशेल मार्श का वायरल हुए फोटो ने पूरी जीत पर पानी फेर दिया। भारत में उस फोटो को लेकर चारों तरफ आलोचनाए हो रही है। फोटो कुछ ऐसा है ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर मिशेल मार्श विश्वकप पर अपने दोनों पैर रखकर, हाथ में शराब का गिलास, गले में स्वर्ण पदक के साथ  मुस्कुरा रहे हैं। हो सकता है ऑस्ट्रेलिया में ऐसी ही परंपरा होगी, या फिर खिलाडिय़ों के जश्न बनाने का यह तरीका होता होगा। लेकिन हमारे देश में ऐसी कोई परंपरा नहीं है, हमारे यहां तो हर छोटी बड़ी सफलताओं या उपलब्धियों में भी भगवान देखे जाते है। हमारे यहां पैर किसी पर रखे नहीं जाते हैं बल्कि पैरों को चरणों के रूप में देखकर उनका स्पर्श करके माथे पर लगाते हैं। यही हमारी संस्कृति है।