सत्ता की मंडी में ‘हलाल-ए-बकरा’

राजनीति की बात… राजेश के साथ

मैं बचपन में इंदौर के लोधीपुरा में खेला-कूदा करता था। दो गली आगे बंबई बाजार है। वहां पर जब मैंने जीवन में पहली बार बकरों की भीड़ देखी तो आश्चर्य से उनको देखने लगा। मेरे साथ चल रहे मेरे मित्र से पूछा कि इतने सारे बकरे आज यहां क्यों दिख रहे हैं। उसने बताया कि कल बकरा ईद है और बड़े से बड़ा बकरा महंगी कीमत में बिकता है। मैंने पूछा, फिर इनका क्या होता है। फिर उसने बताया कि इनको दराते से मारकर, पकाकर खाया जाता है। अब कल भोपाल की सत्ता की मंडी में शाम 6 बजे के बाद से ईद के बकरे की तरह विधायकों की भीड़ रहेगी। किसी दल को सरकार बनाने में विधायकों की कमी रहेगी तो, बकरे हलाल होने के लिए तैयार रहेंगे। पर सवाल कीमत का है साहब…, बताओ कितने में खरीदोगे।
सत्ता के दलाल बकरे को खरीदने के लिए बात शुरू करते हैं, पहला ऑफर 20-25 करोड़ का रहता है। तोंद पर हाथ फेरते हुए विधायक कहते हैं, क्या बात करते हो यार, निर्दलीय चुनाव जीतकर आया हूं। कांग्रेस-भाजपा के विधायक से ज्यादा मेरी हैसियत है। अरे भूल गए क्या…, कोरोना आते ही कांग्रेस के विधायक कितने में खरीदे थे? पिछली बकरा ईद और इस बार की बकरा ईद में क्या महंगाई नहीं बढ़ी? चुनाव प्रचार के लिए झंडे उठाने से लेकर बूथ पर बिठाने कार्यकर्ताओं को हजारों रुपए दिए हंै मैंने। एक-दो प्लाट और जमीन बेचना पड़ी चुनाव लडऩे के लिए। चलो रहने दो, आपके बस की बात नहीं है मुझे खरीदना। कांग्रेसियों को वैसे भी खरीदने में बड़ी दिक्कत होती है। मैं तो भाजपा वालों से बात कर लूंगा, मेरे पास आफर आ चुका है। कांग्रेसी बोला-इतना नाराज क्यों होते हो यार…चलो 50 करोड़ देते हैं।
बकरा यानि निर्दलीय विधायक बोला… इतने अकेले से काम नहीं चलेगा, ये तो एक बार के पैसे हो गए, हर महीने क्या मिलेगा। जैसे, बकरा ईद पर सबसे बड़े बकरे को जब कोई खरीदने आता है और वह अपने कान तेजी से फडफ़ड़ाता है वैसे ही विधायक फडफ़ड़ाने लगा। कुछ अधिकारी भी मेरी पंसद के ट्रांसफर करना पड़ेंगे, अरे… हमने भी तो वोट खरीदे हैं। और सुनो एक बात और… मेरे इलाके के सारे गुड़े, बदमाश, सटोरिए, हत्यारे, लुटेरे, डकैत और मिक्सवेज माफिया, इन सबको भी मैं संरक्षण दूंगा। अब मैं चलता हूं, दो घंटे का टाइम है बताना हो तो बता देना।
बंबई बाजार की बकरा मंडी को छोडक़र सत्ता के दलाल रानीपुरा बकरा मंडी में पहुंच गए। वहां देखा कि बकरे और टनटनाट हैं, क्योंकि बकरे खरीदने वाले को यह भी देखना पड़ता है कि मटन कितना निकलेगा। मतलब, राजनीति के हिसाब से कितना काम आएगा। वहां भी यही हाल था, सत्ता की मंडी में बकरे खरीदने का काम कल से जो शुरू होगा वह अगले दो-चार दिन तक चलता रहेगा। हालांकि ये गुंजाइश राजनीति में हमेशा रहती है। यदि किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत कल मिल गया तो फिर बकरों की मंडी नहीं लग पाएगी। फिर भी इतना बुरा हाल नहीं है, सत्ता की मंडी में बकरे हलाल तो होंगे।
ञ्च राजेश राठौर