सम्मान है… इसीलिए तो नहीं बुलाया!

प्रकाश पुरोहित, वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार

क्रिकेट के जिम्मेदार अधिकारी ने बताया कि दुख की बात है कि कपिल को सम्मान की वजह से नहीं बुलाया और वे ही दु:खी हो रहे हैं।
जय शाह यदि क्रिकेट के आका हैं तो इसमें कपिल देव का कोई योगदान नहीं है। ठीक है, कपिल ने पहला कप जीत लिया, लेकिन उस बात को हो गए चालीस साल। कब तक उनको याद किया जाए। उसके बाद तो 2011 में भी जीत चुके हैं। इस तरह यदि हर बार के विजेता खिलाडिय़ों को फाइनल दिखाने बुलाया जाता रहेगा तो स्टेडियम में आम आदमी के लिए कहां जगह रह जाएगी। आप तो जानते ही हैं कि यह सरकार ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ पर काम करती है।
कहने लगे- बताइए, कल अगर कपिल और डेविल्स को बुला लिया जाता तो हार का जख्म और गहरा नहीं हो जाता! क्या लोगों को याद नहीं आता कि इन विजेता खिलाडिय़ों के पास ढंग के किट नहीं थे और कोई सुविधा भी नहीं थी, यहां तक कि जीत की रात खाने लायक भी पैसे नहीं थे, तब इन्होंने विश्वकप उठा लिया था। फिर यह भी कि पूर्व विजेता खिलाडिय़ों को क्या यह देखना अच्छा लगता कि विज्ञापन से ही करोड़ों कमा रहे हमारे होनहार खाली हाथ जा रहे हैं। जीत रही होती टीम तो इनको बुलाया जाना समझ आता है, अच्छा ही हुआ नहीं बुलाया तो ये नजरें झुकाने से बच गए और हमारे नए खिलाड़ी शर्मिंदा होने से।
फिर बोले, अब तक याद हो जाना चाहिए कि यह प्रोटोकॉल है कि ‘जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि’ की ही तर्ज पर ‘जहां पहुंचे मोदी, वहां हर एक को खो दी।’ मोटा भाई और प्रधान सेवक जहां होते हैं, वहां किसी ‘महान’ को इसलिए नहीं बुलाया जाता कि सारा बंदोबस्त तो उनके लिए ही खर्च हो जाता है। सोचिये, कल अगर भारत यह मैच जीत रहा होता (जबकि बैटिंग करते समय ही हार गया था) तो कैमरा खेल दिखाता या फिर ताली मारते मोदी-शाह या कपिल देव को! गनीमत रही कि भारत खेलने से पहले ही हार गया और टीवी के सामने यह दुविधा नहीं रही कि इधर जाऊं या उधर जाऊं।
उन्होंने बताया, यह तो कह नहीं सकते कि कपिल-टीम के किसी मेंबर को नहीं बुलाया। सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री तो हमारे पे-रोल पर ही हैं, उन्हें बुलाने की क्या जरूरत थी। रोजर बिन्नी भी तो हमारे पाले में ही खड़े थे और उनकी बहू को तो आपने कॉमेंट्री करते देखा ही होगा। कहते हैं ना, फूल नहीं, पांखुरी ही सही, तो हमने पूरा गुलदस्ता नहीं मंगाया, लेकिन टोकन-फूल तो चढ़ा ही दिए हैं ना। वैसे भी विश्व कप-विजय के जब पचास साल होंगे और तब तक जय शाह और बाकी शाह पद पर बने रहे तो अलग से इवेंट मैनेज कर देंगे, तब कपिल सहित सभी को बुला लेंगे, जो जीवित बचे हैं।
कहने लगा- फिर सोचिये, अगर भारत जीत रहा होता और टीवी कैमरा मोदी को दिखाता तो भी यह शिकायत होती कि कपिल को तो नहीं दिखा रहे। उससे भी आगे सोचिये, अगर भारत जीत जाता और मोदीजी कप दे रहे होते रोहित को और ऐसे में कहीं कैमरे की फ्रेम में कपिल देव भी आ रहे होते, और कोई एक हाथ आता और उन्हें कोने में सरका देता तो क्या अच्छा लगता! ऐसी अनहोनी की आशंका मोदी के साथ तो हमेशा बनी रहती है, पता तो होगा ना आपको!
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)