सुवासरा सीट पर वोटर्स की संख्या
कुल वोटरः 270419
पुरुष वोटरः 138104
महिला वोटरः 132310
(2023 की स्थिति में)
स्वतंत्र समय, इंदौर
भाजपा और कांग्रेस ने इस सीट पर 2020 के उपचुनाव में आजमाए हुए चेहरों पर ही दांव खेला है। 2020 में भाजपा के हरदीप सिंह डंग ने कांग्रेस के राकेश पाटीदार को जोरदार पटखनी दी थी और वे 29 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित हुए थे। हरदीप सिंह डंग ने 2020 के घटनाक्रम के बाद कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थामा था, इसके बाद भी वे अपनी बढ़त बनाने में कामयाब रहे थे। वहीं पाटीदार वोटों को टारगेट करने के लिहाज से चला कांग्रेस का पत्ता राकेश पाटीदार के रूप में फेल हो गया था। हरदीप सिंह डंग का यह पांचवां चुनाव है और वे तीन बार के विधायक हैं। इस बार स्थिति अलग है क्योंकि डंग के दलबदल के अलावा स्थानीय और पुराने भाजपा नेताओं की अनदेखी के साथ ही जनता का विरोध भाजपा को यहां नुकसान पहुंचा सकता है। दूसरी ओर इस बार भाजपा कार्यकर्ता भी उपचुनाव की तरह सक्रिय नहीं है और विभाजन सतह पर आता दिखाई दे रहा है। ऐसे में कांग्रेस ने पिछले हारे हुए प्रत्याशी पर पत्ता चलना ही सुरक्षित समझा है।
विकास यात्रा में लोगों ने करा दिया था चुप
इस साल यहां निकली विकास यात्रा में सुवासरा के विधायक और नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग के मंत्री हैं. मंत्री हरदीप सिंह डंग की सभा में जमकर हंगामा हुआ था। मंत्री डंग जब यहां सभा को संबोधित कर रहे थे कि तभी लोगों ने उन्हें घेर लिया कि क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ, जबकि विकास यात्रा में इसे बढ़ा चढ़ाकर बताया जा रहा है। लोगों की जबर्दस्त नाराजगी के सामने डंग की बोलती बंद हो गई थी। डंग वैसे खुद ही अच्छे वक्ता हैं लेकिन लोगों का चरम आक्रोश उन्हें शांत रहने पर मजबूर किए हुए था।
दलबदल लेकिन जीते डंग, पांचवीं बार मैदान में
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर बेहद नजदीकी मुकाबले में 350 वोटों से चुनाव जीते थे। 2020 में डंग भाजपा में शामिल हो गए थे और फिर उपचुनाव में जीतकर भाजपा के सरकार में मंत्री बने। इसी तरह वर्ष 2013 में सुवासरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी हरदीप सिंह डंग को जीत मिली थी और उन्होंने 87517 वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार राधेश्याम नानालाल पाटीदार को 80392 वोट मिले थे और वह 7125 वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर रहे थे। इससे पहले, सुवासरा विधानसभा क्षेत्र में 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के राधेश्याम नानालाल पाटीदार ने कुल 66753 वोट हासिल किए थे। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार हरदीप सिंह डंग दूसरे स्थान पर रहे थे जिन्हें 59904 मतदाताओं का समर्थन मिला था और 6849 वोटों से विधानसभा चुनाव हार गए थे।
भाजपा का गढ़ रही सुवासरा सीट
सुवासरा विधानसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। इसके बाद से इस सीट पर 14 चुनाव हो चुके हैं। इसमें से 9 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, जबकि 5 बार कांग्रेस जीती है। 1998 के बाद कांग्रेस के हिस्से में यह सीट 2013 में आई थी, तब इस सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह डंग जीतकर आए। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांटे के मुकाबले में उन्होंने भाजपा के देवीलाल धाकड़ को 350 वोटों से हराया था।
मंत्री नहीं बनाने पर छोड़ी पार्टी
डंग ने कमलनाथ की सरकार में सिख समुदाय से आने और दो बार के विधायक होने के बाद भी मंत्री न बनाए जाने से नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि बाद में सिंधिया समर्थकों के पार्टी छोडऩे से सरकार गिर गई। 2003 तक यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही है। इस कारण मौजूदा वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा इस सीट से चुनाव लड़ते रहे। वे तीन बार इस सीट से विधायक चुने गए।
पहले ससुर, फिर बहू जीती चुनाव
वैसे इसके पहले इस सीट पर कांग्रेस से ससुर और बहू दोनों जीतकर विधायक बने. ससुर रामगोपाल भारतीय 1972 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने, जबकि बहू पुष्पा भारतीय 1998 में कांग्रेस के ही टिकट पर जीती, लेकिन पिता-पुत्र की जोड़ी विधायक बनने में पिछड़ गई। कांग्रेस के आशाराम वर्मा 1985 में विधायक का चुनाव जीते, लेकिन उनके बेटे गिरीश वर्मा चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर सके। हमेशा उज्जैन से चुनाव लड़ते रहे सत्यनारायण जटिया भी एक बार इस सीट से चुनाव लड़े लेकिन हार गए।
युवाओं में लोकप्रिय चेहरा राकेश पाटीदार
दसवीं तक पढ़ाई करने वाले राकेश पाटीदार के राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत छात्र संगठन से हुई। वे युवक कांग्रेस के स्थानीय और लोकसभा क्षेत्र के कई पदों पर रहे हैं। 2005 में पहली बार गुराडिय़ा प्रताप पंचायत में पंच चुने गए। वहीं साल 2011 के मंडी समिति चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। 2011 से 13 तक मंदसौर लोकसभा क्षेत्र में युवक कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। 2013 से 18 तक लोकसभा क्षेत्र में युवक कांग्रेस उपाध्यक्ष भी रहे हैं। 2018 से अभी तक जिला कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। 2017 के किसान आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। इन पर 11 धाराओं में केस भी दर्ज हैं। 2020 के उपचुनाव में डंग का मुकाबला कर चुके हैं।
पोरवाल समाज के साथ ही राजपूत समाज हावी, सबसे ज्यादा एससी
यहां पर जातिगत समीकरणों की बात करें तो किसान बाहुल्य होने के साथ ही पोरवाल समाज का दबदबा है। पोरवाल समाज के करीब 25 हजार मतदाता हैं। वहीं सौंधिया राजपूत भी करीब 20 हजार की तादाद में हैं। इसके अलावा पाटीदार वोटर्स भी 17 हजार के करीब हैं। वहीं एससी वर्ग के करीब 60 हजार वोटर्स हैं।
फसलों के भावों से नाराजगी, विधायक आते ही नहीं
यहां किसानों का कहना है कि महंगाई से परेशान हैं। फसलों के भाव बीते साल की तुलना कम हैं। वहीं सिंचाई के संसाधनों का भी पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। पेंशन लेने जाते हैं तो इतने कागज मांगते हैं और सुनवाई भी किसी प्रकार की नहीं होती। विधायक फरवरी के बाद से यहां आए ही नहीं हैं। विधानसभा क्षेत्र के बसई-डिगांव मार्ग की हालत खराब है। वहीं शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य के मामले में इलाका फिसड्डी है।