स्वच्छता का ये कैसा सिक्सर, शौचालयों में कहीं मशीन बंद तो कहीं नैपकिन ही नहीं

स्वतंत्र समय, इंदौर

पिछले महीने नगर निगम ने 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय शौचालय दिवस पर जमकर सफाई का राग अलापा लेकिन इस ब्रांडिंग में वह महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति परवाह पालना भूल गया। इंदौर के अधिकांश सार्वजनिक शौचालयों में महिलाओं के लिए आवश्यक सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध नहीं है। कहीं मशीन काम नहीं कर रही है तो कहीं नैपकिन की रीफिलिंग ही नहीं की गई। यह ऐसा मुद्दा है कि महिलाएं इस कमी की कहीं शिकायत भी नहीं कर पातीं और शौचालयों से आगे बढ़ जाती हैं। पिछले दिनों स्वतंत्र समय का ध्यान इस ओर महिलाओं ने दिलाया और बताया कि सफाई का मतलब यह नहीं कि मूलभूत सुविधाओं की अनेदखी की जाए। कम से कम महिलाओं के लिए सैनेटरी नैपकिन तो समय रहते रीफिल किए जाने चाहिए। खास तौर से नौकरीपेशा के साथ कॉलेज जाने वाली युवतियों को ऐसे में असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है।

मशीन में सिक्का फंसा, नैपकिन भी नहीं निकला

स्वतंत्र समय से बातचीत में गृहिणी नसरीन ने बताया कि उन्हें पिछले दिनों सार्वजनिक शौचालय की इस खामी से काफी परेशानी हुई। सबसे पहले वे हरसिद्धि के सामने बने शेखर नगर के सार्वजनिक शौचालय में गईं। यहां उन्होंने नैपकिने के लिए पांच रुपए का सिक्का डाला। नैपकिन तो नहीं मिला उल्टा सिक्का भी अंदर रह गया। इस बारे में जब सुलभ शौचालय का प्रबंधन देख रहे व्यक्ति से बात की तो बोले कि यह मशीन का जिम्मा हमारा नहीं है।

दो किलोमीटर में कहीं नहीं मिले नैपकिन

इसके बाद जेएमबी स्वीट्स और कलेक्टोरेट के करीब बने सुलभ शौचालय पर गईं। यहां मशीन में नैपकिन तो थे लेकिन मशीन काम नहीं कर रही थी। इसके बाद लाल बाग के सामने बने सार्वजनिक शौचालय गईं तो यहां पर टैंकर से पानी भरा जा रहा था। वहां से बताया गया कि महू नाका में संभावना है। नसरीन ने बताया कि महू नाका के सार्वजनिक शौचालय में भी नैपकीन नहीं मिले। इस तरह दो किलोमीटर के एरिया में नैपकिन नहीं मिलने से निराशा हुई। साथ ही व्यवस्था के प्रति भी टीस उठी।

सुप्रीम कोर्ट : राष्ट्रीय मॉडल विकसित करने के लिए केंद्र को निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने आवासीय स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग महिला शौचालयों और फ्री सैनेटरी पैड देने के लिए एकरूपता देने के निर्देश दिए। सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर ने स्कूली छात्राओं के स्वास्थ्य के दृष्टिगत याचिका दायर की थी। इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश  दिए कि सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय विद्यालयों में अलग महिला शौचालयों के साथ ही कक्षा छठी से बारहवीं तक की छात्राओं के लिए मुफ्त सैनेटरी पैड देने के लिए राष्ट्रीय मॉडल विकसित करने के निर्देश दिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश दिए

  • मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हम केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों में प्रति महिला छात्र आबादी पर लड़कियों के शौचालयों की संख्या के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल स्थापित करना है।
  • साथ ही सैनिटरी नैपकिन के वितरण के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों में एकरूपता लाएं. रिपोर्ट को लिस्टिंग की अगली तारीख (नीति जो तैयार की गई है) से अवगत कराया जाएगा।
  • मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तमिलनाडु छात्राओं को 18 पैकेट देता है, प्रत्येक में 6 नैपकिन होते हैं. उन्होंने कहा कि वह भी उस आयु वर्ग की एक युवा लडक़ी के लिए पर्याप्त नहीं होगा।