स्वच्छता को लेकर रेलवे की नई ठेका नीति बनी मुसीबत

स्वतंत्र समय, भोपाल
राजधानी भोपाल, इटारसी समेत देश भर के कई रेलवे स्टेशनों की स्वच्छता की रेलवे की ठेका नीति अब उसके लिए ही मुसीबत बन गई है। रेलवे की यह व्यवस्था फ्लाप साबित हो रही है। ठेका शर्तों में बदलाव के कारण स्टेशनों की सफाई प्रभावित हो रही है। इस बदलाव से अफसर करोड़ों रुपये की बचत होने का दावा जरूर कर रहे हैं लेकिन सफाई कंपनी में काम करने वाली महिला-पुरुष स्वच्छता दूतों का शोषण नई नीति में बढ़ गया है। जानकारी के अनुसार संक्रमित क्षेत्र में लगातार काम करने वाले सफाईकर्मियों को ठेका कंपनी गमबूट, मास्क, ग्लब्स, साबुन एवं संक्रमण से बचने किसी तरह के उपकरण नहीं देते हैं। काम के घंटे तक तय नहीं है, खास बात यह है कि इटारसी में काम लेने वाली रवि सिक्युरिटी कंपनी ने डेढ़ साल के ठेके में कर्मचारियों का पीएफ तक जमा नहीं कराया है।
कर्मचारियों को न्यूनतम वेज बोर्ड की दर से पगार दी जाती है, वह भी समय पर नहीं दी जाती। श्रम आयोग, मानव अधिकार समेत अन्य आयोग की अनुशंसा को ताक पर रखकर रेलवे कर्मचारियों का शोषण ठेकेदारों के जरिए करा रही है, रोजगार का विकल्प न होने की वजह से स्वच्छता दूत इनका शोषण सहन कर रहे हैं। एक कर्मचारी ने बताया कि कम वेतन के कारण हम ट्रैक पर गिरने वाली पानी बोतल और फॉइल पेपर शीट बीनकर कबाड़ में बेचकर खर्च निकालते हैं। स्वच्छता विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि पहले रेलवे के सफाई ठेके में मजदूरों की संख्या, मशीनों से सफाई समेत कई तरह की शर्ते जुड़ी रहती थी, इस वजह से ठेके महंगे होते थे। दो साल पहले रेलवे बोर्ड ने नीति में बदलाव कर स्क्वायर फीट की दर से सस्ते ठेके देना प्रारंभ कर दिया। इसमें मैकेनाइज्ड क्लीनिंग, सफाईकर्मियों की संख्या, सफाई में लगने वाले मटेरियल की गुणवत्ता समेत अन्य शर्तो में समझौता किया गया। नपाई के हिसाब से कंपनियों से काम लिया जा रहा है, लेकिन सफाई कितनी बार की जाएगी, किस तरह से होगी, इन नियमों में शिथिलता बरती गई।
सूत्रों के अनुसार देश भर में रेलवे के स्वच्छता निरीक्षकों के संगठन ने भी रेलवे बोर्ड से ठेका शर्तो में किए बदलावों पर आपत्ति जताई थी, लेकिन रेलवे बोर्ड का तर्क है कि नए सिस्टम में सफाई पर काफी कम खर्च हो रहा है, बचत के चक्कर में रेल मंत्रालय अपने स्टेशनों की स्वच्छता को दांव पर लगा रहा है। आडिट में रेलवे ने पाया कि सफाई का बजट ज्यादा है, इसमें कटौती करने के लिए ठेका शर्ते रेल मंत्रालय स्तर पर बदली गई, लिहाजा अब कोई भी अफसर अपने स्तर पर इस नीति में बदलाव नहीं कर सकता। अधिकारी खुद रेलवे की इस बड़ी खामी को मान रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार मंत्रालय आंख बंद कर बैठा है। स्टेशन पर पुराने सिस्टम पर काम करने वाली कंपनी में तीन पाली में करीब 175 कर्मचारी सेवाएं देते थे, लेकिन मौजूदा हालत में महज 50 कर्मचारी कंपनी ने लगाए हैं, इस लिहाज से एक शिफ्ट में सुपरवाइजर समेत करीब 12-14 कर्मचारी ही सातों प्लेटफार्म, रेलवे ट्रैक, रेलवे परिसर की सफाई संभाल रहे हैं, साथ ही स्क्रबिंग मशीन का उपयोग नहीं हो रहा है, मैनुअल सफाई से पानी की बर्बादी भी ज्यादा हो रही है।
स्टेशन पर रोजाना गिरने वाले कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निष्पादन एवं राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के नियमों को ताक पर रखकर सफाई कंपनी कचरे को आग के हवाले कर रही हैं, साथ ही आउटर एरिया में कचरा खुले में फेंका जा रहा है। इस बारे में जनसंपर्क अधिकारी सूबेदार सिंह का कहना है कि समय-समय पर अधिकारियों द्वारा स्वच्छता के संबंध में निगरानी की जा रही है। लापरवाही होने पर सफाई कंपनी पर जुर्माना एवं भुगतान रोकने की कार्रवाई होती है।
सुदामा नरवरे/30 नवंबर 2023